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Kumar Vikrant

Children Stories

4  

Kumar Vikrant

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लैला का थैला

लैला का थैला

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"सुन बेटे तुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू और लिली पिछले जन्म के बिछड़े लैला-मजनू हो?" घुड़साल के मालिक छक्कन दादा ने चंपक से पूछा।

"उस्ताद स्कूल के दिनों से जानता हूँ उसे, जब भी मेरे सिर पर मास्टर जी की चपत पड़ती थी वो अपना सिर खुजलाने लगती थी।" चंपक ने उत्साह के साथ कहा।

"बेटे सिर खुजाने की तो बहुत सारी वजह होती है, खैर ये बता मेरे पास क्यों आया है?" छक्कन दादा ने अपना गंजा सिर खुजाते हुए पूछा।

"उस्ताद आप तो आशिकों के सरपरस्त हो, कुछ ऐसा करो की मेरी मुहब्बत की नैया पार हो जाये।" चंपक ने उत्साह के साथ कहा।

"देख बेटे ये गुलफाम नगर है, नाम बड़ा आशिकाना लगता है लेकिन मुहब्बत करने वालो के सिर पर जूते भी बहुत पड़ते है"

"पता है उस्ताद इसलिए ही तो आपकी शरण में आया हूँ.." चंपक छक्कन दादा की बात काटते हुए बोला।

"बात मत काट बेटे, ये लिली बलवान सिंह की लड़की है न?"

"हाँ उस्ताद।"

"तो सुन बेटे ये बलवान सिंह पशु चारे का कारोबारी है, अगर उसके हत्थे चढ़ गया तो तुझे चारा काटने की मशीन में डाल देगा।"

"डराओ मत उस्ताद कुछ मदद की बात करो।"

"क्या मदद चाहिए तुझे?"

"उस्ताद मुझे बस एक दिन के लिए लैला का थैला चाहिए।"

"लैला का थैला?" छक्कन दादा ने आश्चर्य के साथ पूछा।

"हाँ उस्ताद जो आपने उस दिन रंगमंच पर दिखाया था जिसमे घुसकर कोई भी गायब हो जाता है।"

"अबे वो तो नाटक था।"

"उस्ताद ना नुकर मत करो, लैला का थैला दे दो, मेरी तकदीर का ताला खुल जायेगा।"

"अबे गायब हो कर क्या करेगा ?"

"उस्ताद गायब हो कर लिली के कमरे में घुस जाऊंगा और अपनी मुहब्बत का इजहार कर दूँगा।"

"अबे इजहार भी नहीं किया है तो क्या घास खोद रहा था अब तक?"

"उस्ताद मौका कहाँ मिला अब तक, लिली कल ही तो विलायत से पढ़कर वापिस आई है।"

"अबे घनचक्कर तू दसवीं फेल और वो विलायत से पढ़ी हुईतेरी अक्ल घास चरने गई है जो उसके चक्कर में पड़ रहा है।"

"उस्ताद बचपन की मुहब्बत है, वो पहचान लेगी मुझे और मेरी मुहब्बत कबूल कर लेगी। अब जल्दी से एक दिन के लिए लैला का थैला उधार दे दो मुझे।"

"तो मानेगा नहीं तू?" छक्कन दादा ने ठंडी साँस लेकर कहा।

"नहीं उस्ताद, सारी जिंदगी अहसान मानूँगा तुम्हारा।"

"जैसी तेरी मर्जी.अबे धीरा जरा वो लैला का थैला उठा ला।" छक्कन दादा ने घुड़साल के कारिंदे को आवाज दी।

"उस्ताद वही जो कोने में रखे है, उनमे से" अंदर से आवाज आई।

"हाँ ले आ खाली कर के।"

अंदर धीरा ने घोड़ो की लीद से भरे बोरों में से एक खाली करके बेताबी से इंतजार करते हुए चंपक को दे दिया, जिसे लेकर वो छक्कन दादा का शुक्रिया कर निकल गया।

"अबे सही इशारा समझा तू, जान छूटी, बहुत देर से सर खा रहा था।" छक्कन दादा ने हंस कर कहा।

रात १२ बजे

चंपक ने दिन में लिली के घर के नौकर हरिया के हाथ पर १०० का एक नोट रखकर लिली के कमरे का पता कर लिया था और रात को १२ बजे एक लिली के घर के बाहर खड़े पेड़ की मदद से उसके घर में घुस गया और सीढ़ियां चढ़कर पहली मंजिल पर बने लिली के कमरे के सामने जा पहुँचा। उसने अपने हाथ में पकडे लैला का थैला को फर्स पर रख दरवाजे को धक्का दिया और दरवाजा खुलता ही चला गया।

कमरे के अंदर धुप अँधेरा था, इससे पहले वो कमरे में पड़े बिस्तर के पास पहुँचता एक फुसफुसाहट भरी मर्दाना आवाज उसके कानों में पड़ी।

"आ गई झुमिया तू?"

इससे पहले वो कुछ करता किसी ने उसे अपनी बाँहों में कस कर जकड लिया। अचानक हुई इस हरकत से वो घबरा जरूर गया था लेकिन फिर उसने अँधेरे में ही उस पकड़ने वाले को धोबी पाट मार के फर्श पर पटका और अपने पीछे रोने के दर्दनाक आवाज छोड़ अपना लैला का थैला उठाकर भागा।

नीचे उसके सामने १५-१५ फीट ऊंची दीवारें और गेट था। तब तक वो दर्द से रोने वाली आवाज भयंकर होकर चोर-चोर चिल्ला रही थी। चंपक समझ गया था कि वो गलत कमरे में जा घुसा था, अब उसका बचना मुश्किल था, लेकिन तभी उसने देखा बरामदे में उसके लैला का थैला जैसे बहुत सारे भरे हुए बोरे रखे थे जिनमें से कुछ के मुहँ खुले हुए थे। वो तेजी से उन बोरों के पास गया और लैला के थैला में घुसकर बैठ गया।

"अबे कहाँ मर गए सब, घर में चोर घुस आया हैहाय मर गयाहाथ पैर तोड़ दिए ससुर ने"

"क्या हुआ पापा?" कई मर्दाना आवाज एक साथ आई।

"अबे जाओ सो जाओ जाके..कोई तुम्हारे बाप के हाथ पैर तोड़ के भाग गया..अबे ढूंढो सबके सब मिलकर उसे..अबे हरिया कहाँ मर गया तू..?"

कुछ देर उठा पटक की आवाज आती रही, और फिर आवाज आई-

"कोई नहीं है सेठ जी।"

"अबे कहाँ चला गया, जादू के जोर से गायब हो गया क्या..अबे हरिया के बच्चे ये घोड़ो के दाने के बोरे खुले क्यों छोड़ रखे है? इनका मुँह बांध और सुबह छक्कन दादा की घुड़साल पे पहुँचा दियो।"

"सेठ जी मेरी रिक्शा पंचर हुई खड़ी है, कलवा को कह देना वो अपने गधे पर लाद कर पहुँचा देगा।" हरिया बरामदे में रखे बोरो का मुँह बांधते हुए बोला।

"सही है. तू तोड़ रोटियां मुफ्त की" और आवाजें धीमी पड़ती गई।

सुबह ११ बजे कलवा जब गधे पर घोड़ों के दाने के बोरे लाद कर छक्कन दादा की घुड़साल पहुँचा तो एक बोरे को हिलता-डुलता देख छक्कन दादा ने बोरा खुलवाया तो बोरे से निकल कर चंपक सीधा छक्कन दादा के पैरो में साक्षात दंडवत होकर बोला, "उस्ताद बचा लिया लैला के थैला ने, बस एक बार और जरूरत पड़ेगी इसकी"

"अबे बेटे इस थैला का जादू साल में सिर्फ एक दिन काम करता है, अब अगले साल आना।"

"एक साल तो बहुत ज्यादा है, कुछ और जुगाड़ करना पड़ेगा लिली से मिलने का." चंपक निराशा से बोला और घुड़साल से बाहर निकल गया।


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