कश्मकश
कश्मकश
संदली ने बात बदलने के लिए जानकी जी से पूछा कि "क्या कर रहीं हैं वे इन दिनों क्या नया सीखने की कोशिश में हैं?" जानकी जी ने कहा कि "वे इन दिनों कम्प्यूटर सीख रही हैं ताकि विदेश में रह रही अपनी बेटी से वीडियो चैट कर सकें,उनके पति रमेश जी ने हाल ही में खरीद कर दिया है।" इतना कहकर जानकी जी एक बार फिर पहले वाले मुद्दे पर आ गईं ।उन्होंने कहा "संदली बेटा तुम मेरी बेटी जैसी हो मेरे पास रहते हुए तुम्हें दो साल होने को आए, जब तुम पहली बार यहाँ आई थी तो कितनी बातें करती थी मैं सुनते सुनते थक जाती थी पर तुम्हारी बातें खत्म होने को ही नहीं आतीं थीं और अब वह संदली कहाँ खो गई ? अब तो तुम सवालों का जवाब भी ठीक से नहीं देतीं?मैं जानती हूँ कि हमारे बीच खून का रिश्ता नहीं है मगर मैं तुम पर इतना हक तो समझती हूँ कि तुमसे तुम्हारी उदासी का कारण पूछ सकूँ, क्या मेरी जगह तुम्हारी माँ होती तब भी तुम ऐसे ही चुप रहती ? बोलो ना संदली, बोलो शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊँ", इतना कहकर जानकी जी संदली के जवाब का इंतजार करने लगीं।एक बड़े मौन के बाद संदली ने कहना शुरू किया, "आँटी इतने कम समय में आपने मुझे इतना प्यार और अपनापन दिया है जितना कि इस जिन्दगी में कभी भी मुझे नहीं मिला था,अगले साल पूरे अट्ठाईस की हो जाऊँगी,आपने मुझे बकबक करते हुए तो सुना था पर मेरी आँखों का सूनापन नहीं देख पायीं जानकी आँटी मुझसे अब और बातें नहीं की जाएँगी और कितना अभिनय करूँ, ये झूठी जिन्दगी और नहीं जी जाती।"
"बचपन से ही मैंने अपने मम्मी पापा को एक दूसरे से लड़ते झगड़ते ही देखा है सोचती थी कि वे आखिर क्यों इतनी लड़ाई करते थे, कई बार पापा पीट भी देते थे माँ को और उन लड़ाईयों के परिणाम स्वरूप माँ मुझे लेकर नानी के घर आ गयी, कुछ ही दिनों बाद तलाक भी हो गया दोनों का और जानकी आँटी जानती हैं,दोनों ने ही अपना अलग-अलग घर बसा लिया।दोनों में से किसी एक ने भी मेरे बारे में नहीं सोचा कि मुझे उनके साथ और प्यार की कितनी जरूरतहै! तब मैं बस पाँच साल की थी जब तक नानी थीं उन्होंने प्यार और परवरिश दी पर उनका प्यार भी मेरी किस्मत में नहीं था वे बीमार हो कर चल बसीं, इसके बाद माँ ने मुझे होस्टल में डाल दिया और हर महीने रूपये भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।हाॅस्टल से ही सारी पढ़ाई करने के बाद यहाँ नौकरी मिली ।मैंने जान बूझ कर इतनी दूर देहरादून को चुना था क्योंकि इस जगह से मम्मी पापा दोनों ही बहुत दूर रहते हैं ।
और फिर मैं इस जगह आई आपलोगों से मिलने के बाद आपके परिवार को इतने अच्छे से रहते देख धीरे-धीरे सम्हलने लगी थी ,मेरी जिन्दगी में जो भी हुआ है उसे भूल कर आगे बढ़ रही थी,सब ठीक-ठाक ही चल रहा था तभी मेरी जिंदगी में आलेख आया,आलेख मेरे साथ ही काॅलेज में पढ़ाता है ,वह अपने प्रेम से मेरे जीवन में बहुत सारी खुशियाँ लेकर आया ,मैं अपने खोल से बाहर निकलनेलगी और मेरी दुनिया खुशियों से भर गयी,मैं भी उसके रंग में रंगने लगी,तभी एकदिन उसने शादी का प्रस्ताव रखा बस उसी समय से मेरा तनाव और अवसाद बाहर निकल कर मेरे सामने आ गया, बचपन के सारे दृश्य आँखों के आगे गुजरने लगे मम्मी पापा का झगड़ा, उनका एक दूसरे पर दोषारोपण पापा का मम्मी को मारना, उनका अलग होना, मेरा अकेलापन ।सब कुछ एक पल में ही याद आ गया और उसकी अंगूठी वहीं गिरा कर भाग आई,जानकी आँटी मैं किसी से शादी नहीं कर सकती ,इतना कहकर संदली, रोने लगी, जानकी जी ने उसे अच्छी तरह से रो लेने दिया फिर पानी पीने को दिया पानी पीने के बाद संदली कुछ शांत हो गई ।"
अब जानकी जी ने कहा संदली बेटी तुम इतने दुख में थी और मुझे कुछ पता ही नहीं था,माता पिता के लड़ाई से बच्चों का बचपन छिन जाता है ,रिश्ता माँ बाप का टूटता है लेकिन इसमें बिना किसी गलती के बच्चे को सजा भुगतनी पड़ती है उसका रिश्तों से भरोसा उठ जाता है, जो भी हुआ है वह अच्छा नहीं हुआ है लेकिन इस सब के बीच में उस बेचारे आलेख की तो कोई गलती नहीं है वह तो तुमसे प्यार करता है ,शादी करना चाहता है।संदली बेटा,जो भी हुआ है उसे भूल कर तुम्हें आगे बढ़ना ही होगा, सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से और किस्मत वालों को ही मिलता है खुशियाँ तुम्हारे दरवाजे पर खडी हैं उसका स्वागत करो अब भी देर नहीं हुई, अभी जाओ और आलेख को लेकर आओ,और कभी भी खुद को अकेली मत समझना आज से मेरी दो बेटियां हैं, आज से मुझे आँटी नहीं माँ कहना" इतना कहकर जानकी जी ने संदली को गले से लगा लिया, आज संदली को सबकुछ मिल गया है और वह कभी उदास नहीं होगी ।