कोई भी पूर्ण नहीं है लेकिन सभी श्रेष्ठ हैं
कोई भी पूर्ण नहीं है लेकिन सभी श्रेष्ठ हैं
"यह भी भला कोई ज़िन्दगी है ? इससे तो मर जाना बेहतर है। ",खरगोशों की सभा में एक खरगोश ने कहा। अपनी विभिन्न समस्याओं को लेकर जंगल के सभी खरगोशों ने एक सभा बुलाई थी।
"सही कह रहे हो भाई। हम तो मंदिर के घंटे हो गए हैं। जंगल में शेर ,बाघ ,चीता ,सियार कोई भी हमें अपना शिकार बना लेता है। ",किसी और खरगोश ने कहा।
"हर पल डर के साये में जीते हैं। "
"हाँ भाइयों ,अपने स्वजनों का अचानक से चले जाना ,अब सहन नहीं होता। "
"कभी इंसान का डर और कभी जंगल के माँसाहारी और सर्वाहारी जानवरों का डर। "
"हर रोज़ डर में जीते हैं और हर रोज़ ही मरते हैं। "
"रोज़ -रोज़ के मरने से तो अच्छा है ;एक दिन सच में ही मर जाएँ। ",किसी खरगोश की इस बात पर पूरी सभा कुछ क्षण के लिए एकदम शांत हो गयी।
"बिलकुल सही। ",सब तरफ से खरगोशों की आवाज़ आने लगी।
"हम सबको मर जाना चाहिए। हम सबको आत्महत्या कर लेनी चाहिए। ",ऐसी आवाज़ों से सभास्थल गूँज उठा।
"मैं आप सभी के सामने प्रस्ताव रखता हूँ कि कल हम सब एक साथ नदी में कूदकर अपनी जान दे देंगे। ",सभा के सभापति ने कहा।
"हाँ -हाँ ,हम सभी आपके प्रस्ताव का स्वागत करते हैं । ",वहाँ मौजूद सभी खरगोशों ने कहा ।
अगले दिन सभी खरगोश नदी की तरफ चल दिए । खरगोशों को इतनी बड़ी संख्या में नदी की तरफ़ आता देखकर ,नदी किनारे रहने वाले चूहे ,केकड़े आदि इधर उधर भागने लगे और छिपने लगे ।
"रुको ,साथियों । ",चूहे ,केकड़े आदि को भागता और छुपता हुआ देखकर ,खरगोशों के मुखिया ने कहा ।
सभी खरगोश अपने नेता की तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखने लगे । कहाँ तो अभी कुछ ही पलों में उनकी सभी समस्याओं का अंत होने वाल वाला था और कहाँ उनके मुखिया बीच में ही रुकने की बात करने लगे ।
"साथियों ,हम एकदम गए गुजरे और कमजोर नहीं हैं । हमें अपने आपको हीन नहीं समझना चाहिए । देखो ,ये जीव हमसे डर रहे हैं । ",मुखिया ने भागते हुए चूहे ,केकड़े आदि की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
"इस संसार में कोई भी पूर्ण नहीं है ;लेकिन सभी श्रेष्ठ हैं। आओ वापिस चलें। "मुखिया ने अपनी साथियों को कहा।
