Aaradhya Ark

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3.4  

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कन्यादान

कन्यादान

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 "मैं चाहती हूं कि मेरा कन्यादान मामा मामी नहीं बल्कि आप और पापा करें! इज इट पॉसिबल मम्मा! "


बेटियां अपनी माँ की परछाईं की तरह ही तो होती हैं और अपनी माँ के मन पर लिखे शब्दों को पढ़ लेती हैं । यह वही लिखावट होती है जो वह बचपन से अपनी माँ के हर स्पर्श में हर धड़कन में महसूस करती रहती हैं।


अनुराधा चाहती है कि यह वक्त रुक जाए और बेटी की विदाई तक उसके सुसरालवाले आ जाएं। काश... कि यह वक्त रुक जाए।हमेशा से मितभाषी कोमल ने जैसे आज अपने मन की छुपी हुई , दबी हुई इच्छा सामने रख दी थी।एक बच्चे के लिए उसके माता और पिता दोनों कितने जरूरी होते हैं, यह बात आज अनुराधा अच्छे से महसूस कर पा रही थी।


वह आश्चर्य से कोमल की तरफ़ देख रही थी। उसकी इस

शांत सुशील बिटिया ने अपने पापा के लिए ऐसी ही तो जिद की थी जब उसका छठा जन्मदिन वह ननिहाल में मना रही थी और सुबह से शाम हो गई थी। उसके पापा विजय नहीं आए थे और एक तरह से कोमल ने जिद ठान ली थी कि,

 "जब तक पापा नहीं आएंगे मैं केक नहीं

काटूंगी


घर में सब जान रहे थे कि विजय नहीं आएंगे लेकिन उसे बहलाकर कटवाने की कोशिश भी बेकार जा रही थी। क्योंकि कोमल जिद पर अड़ी थी तो अड़ी थी आखिर थी तो वह अनुराधा और विजय की बेटी। वह दोनों भी कम जिद्दी कहाँ थे?


और.... अनुराधा भी अतीत से कब तक और कितना भागती।


दोनों की शादी माता पिता की मर्ज़ी से ज़रूर हुई थी पर ज़ब उनकी आमने सामने मुलाक़ात हुई थी तब दोनों ने एक दूसरे को दिल से पसंद किया था।


इस अरेंज मैरिज में गलती चाहे किसी की भी हो लेकिन सजा तो दोनों ही भुगत रहे थे और अपने अपने माता-पिता की गलती हो या उनके ईगो को ठेस ना पहुंचे इस वजह से दोनों विरह और अलगाव सह रहे थे।

रिश्तों की सिलाई धीरे धीरे उघड़ रही थी।

शादी की रस्म से पहले अनुराधा का छोटा भाई आशुतोष उसे कहने आया,


 "दीदी ! तुम किसी तरह कोमल को समझा दो कि जीजाजी नहीं आएंगे और तब तक मैं भैया और भाभी को तैयार कर देता हूँ कि वह दोनों कन्यादान करें। और एक बात का ध्यान रखना कि इस समय किसी भी तरीके से तुम्हें अपने आप पर ध्यान रखना है। और भावनाओं पर काबू रखना है। तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं आने चाहिए। तुम अगर कमज़ोर पड़ोगी तो कोमल भी कमजोर पड़ जाएगी। यह परीक्षा की बहुत बड़ी घड़ी है दीदी, बस या किसी तरह यह बेला पार हो जाए।


आशुतोष ने एक एक बात पर गौर करते हुए कहा,


 आँगन से बेटी खुशी खुशी विदा हो जाए,फिर जितना चाहे रो लेना। अभी तुम्हें बहुत ही सख्त रहना है दीदी! हिम्मत से काम लो! "


आशुतोष की बात सुनकर अनुराधा ने गौर किया कि सच में उसके आंखों के कोर से कुछ आंसू की बूंदें छलक आई थी जो ढलक कर गालों को भिगो रही थी। और शायद वह भी अभी कुछ समय के लिए विजय को याद करने लगी थी आज उसे अपने पति विजय से ज्यादा अपनी बच्ची के पिता विजय की जरूरत थी। काश ...किसी तरह वह आ जाते और कन्यादान की रस्म निभा जाते तो कम से कम जाते-जाते बेटी अपने आप को अधूरा नहीं महसूस करती।


खैर... यह बात तो अनुराधा पहले भी कई बार महसूस कर चुकी थी कि वह चाहे कुछ भी कर ले वह पिता नहीं बन सकती सिंगल पेरेंट बनना मजबूरी हो तो अच्छा है। कैसे भी निभ जाता है। लेकिन अगर माता पिता दोनों में दोनों ही जीवित हैं, और अलग-अलग रह रहे हैं। उस परिस्थिति में बहुत मुश्किल होता है एक बच्चे को अपने पिता या माता से दूर रखना। क्योंकि उन्हें तो दोनों का प्यार चाहिए उन्हें दोनों की जरूरत होती है, तलाक माता-पिता का होता है... बच्चों का नहीं होता।

माता-पिता के साथ बच्चों का रिश्ता तो वही रहता है। जो तलाक से पहले या तलाक के बाद रहता है। ऐसे में उनकी स्थिति बहुत दयनीय हो जाती है क्योंकि उन्हें माता-पिता दोनों चाहिए होता है। और परिस्थितियाँ उनके माता-पिता को एक साथ एक छत के नीचे रहने देना नहीं चाहती। आज अनुराधा अपनी बेटी कोमल के इस दर्द को बहुत गहरे से महसूस कर रही थी कि पूरी जिंदगी उसकी बिटिया ने कितना कुछ सहा है। और आज जब वह घर से विदा हो रही है तब भी वह कहीं

नाउम्मीद होकर जाए। ऐसा एक माँ के रूप में अनुराधा कभी नहीं चाहती थी भले ही उसके लिए उसे अपना स्वाभिमान गिरवी रखना पड़ जाए लेकिन वह चाहती थी कि किसी तरह से आज उसकी बेटी कोमल को अपने पिता का आशीर्वाद जरूर मिले।


थोड़ी देर वह कुछ सोचती रही और फिर आशुतोष को आश्वस्त करते हुए कहा,

"आशु ! तू जा और बाकि तैयारियां देख। मैं नहीं चाहती हूं कि कोई काम रुके। कोमल को भी मानसिक रूप से मैंने तैयार कर दिया है कि उसके पिता नहीं आएंगे और कन्यादान भैया भाभी करेंगे इसके अलावा अब तू अपने दीदी को कभी कमजोर नहीं देखेगा जा भाई अपना काम कर!

आशुतोष मुड़कर जाने ही वाला था कि अनुराधा को जैसे कुछ याद आया।

उसने उसे रोककर पूछा,


"सीतापुर वालों को निमंत्रण मिल गया होगा ना ?उन्हें कोमल की शादी में शरीक होने का न्यौता सही समय पर भेज दिया गया था ना? "


अनुराधा की इस बात पर आशुतोष ने जो ज़वाब दिया उससे अनुराधा का एकदम सिर घूम गया।


"वो दीदी ! पापा और भैया ने मना किया था कि जीजाजी या आपके ससुराल वालों को कोमल की शादी में नहीं बुलाना है। इसलिए एकदम निश्चित रहो कि सीतापुर से कोई नहीं आएगा! "


  "क्या...? क्या कहा तूने ? उनलोगों को बुलाया ही नहीं गया? और इधर जो कोमल अपने पापा का इंतजार कर रही है , उसका क्या ज़वाब है पापा के पास...?"


शादी वाला घर था ... मेहमानों से भरा हुआ। फिर भी अनुराधा की आवाज़ तेज हो गई।


आशुतोष ने कुछ नहीं कहा। चुपचाप सिर झुकाकर वहां से चला गया।


आशुतोष के जाने के बाद अनुराधा ने सोचा खामखा छोटे भाई पर नाराज होने से क्या फायदा उसकी भला क्या गलती है और पापा और भैया अभी तक ऐसा कैसे कर सकते हैं जो बात हो गई वह पुरानी थी वह पति पत्नी के बीच की बात थी जो अलगाव था वह पति पत्नी के बीच था लेकिन पिता और पुत्री को दूर करने वाले वह कौन होते हैं या कदाचित यह सही नहीं हुआ कोमल को तो पता भी नहीं है कि उसके पिता को निमंत्रण दे नहीं दिया गया है और एक पिता को हक है अपनी पुत्री का कन्यादान करने का उसके विवाह में सम्मिलित होने का आखिर पापा और भैया विजय से एक पिता का हक कैसे छीन सकते हैं


अनुराधा मन ही मन में सोचे जा रही थी और गुस्से का ज्वार उसके सर पर चढ़ने ही वाला था कि तभी बड़ी भाभी आकर बोली,


" दीदी ! जल्दी नीचे आईए। कोमल कह रही है कि,कन्यादान मामा मामी नहीं बल्कि उसके माता और पिता करेंगे अब इस लड़की को कौन समझाए!"


"ठीक तो कह रही है कोमल! "


धीरे से बुध बुध आई अनुराधा जैसे उसकी भाभी पुष्पा ने नहीं सुना।


"ठीक है भाभी ! मैं अभी नीचे आ रही हूं!"


बोलकर अनुराधा ने पुष्पा को निश्चित करके भेज दिया। और उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा।

इस वक्त वह अपने आप को बहुत ही ठगा हुआ महसूस कर रही थी। अपने ही माता-पिता द्वारा छला जाना कैसा होता है, वह इस तिलमिलाहठ को महसूस कर रही थी


इन सालों में अनुराधा की रूह कितनी बार ज़ख़्मी हुई है इसका हिसाब लगाने बैठेगी तो अनुराधा और भी आहत हो जाती


आज अभी उसे अपने सामने विजय का दुखी और अफसोस जताता अनुराधा से माफी मांगता हुआ चेहरा याद आ रहा था जो शादी के बाद उसकी हकीकतसामनेआनेपर विजय ने माफी मांगते हुए कहा था।


 वर्षों पूर्व की एक बात उन्हें याद आ गई जब विजय अनुराधा से कह रहा था ,


 "यकीन मानो अनुराधा ! मुझे नहीं पता था कि मेरे माता पिता ने तुम्हें सारी स्थिति नहीं बताई है। मैं इतना पढ़ा लिखा नहीं हूं और मैं बैंक मैनेजर नहीं एक बैंक में क्लर्क हूं। अगर तुमसे यह बातें छुपाई गई है इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। आज मुझे अपने माता पिता की गलती पर बहुत शर्म आ रही है हो सके तो मुझे माफ कर दो! "


आज अनुराधा को अपने माता-पिता और अपने भाई की सोच पर अफसोस हो रहा था जो एक माता-पिता की गलती की सजा फिर से उसके बच्चे को दे रहे थे माना कि विजय के माता-पिता ने शादी में दहेज लेने के लिए झूठ बोला था लेकिन इसमें विजय की कोई गलती नहीं थी यह बात अनुराधा बाद में समझ पाई थी तब तक इतनी देर हो गई थी कि माता-पिता ने उसे दोबारा ससुराल जाने ही नहीं दिया था यहां तक कि उन लोगों ने अपनी बेटी से भी मिलने से विजय को मना कर रखा था क्योंकि दोनों ने आगे शादी नहीं करने की कसम खा रखी थी। इसलिए दोनों में से किसी ने तलाक मांगने की जिद नहीं की थी और यू अलग-अलग अपनी अपनी जिंदगी जी रहे


जो भी हो जैसी भी जिंदगी हो.....


अभी अनुराधा के सामने सिर्फ अपनी बेटी की जिंदगी और उसके सपने उसकी ख्वाहिश के आगे कुछ और नजर नहीं आ रहा था उसने कांपते हाथों से अपना मोबाइल उठाया और हिम्मत करके विजय को फोन डायल किया



फिर दो रिंग के बाद पता नहीं उसे कैसा संकोच हो आया कि उसने फोन काट दिया और फिर ससुर गिरजाप्रसाद जी को फोन लगाया और कहा,



"बाबूजी! आज आप की पोती का विवाह है। आप माफ कीजिएगा निमंत्रण देने में देर हो गई। शायद इन लोगों ने भेजा होगा पर आप तक नहीं पहुंचा। मैं आप सबको बड़े ही प्यार से बुला रही हूँ। कृपया शादी में अगर नहीं भी आ पाए तो विदाई के शुभ घड़ी में आप लोग जरूर आ जाएं। और कृपया बाबूजी मेरी गलतियों को क्षमा करें अपनी पोती कोमल को आशीर्वाद जरूर दें और कोमल की पिता तक भी यह खबर पहुंचा दें!"



तभी गिरजाप्रसाद जी ने जो कहा उसे सुनकर अनुराधा की आंखों में आंसू अविरल बहने लगे।


 एक पिता का प्यार हमेशा जीत जाता है ।रिश्ते खून से ही नहीं एहसासों से भी जुड़े होते हैं।

और ऐसे रिश्ते हृदय की पुकार सुन लेते हैं ।


गिरजाप्रसाद जी ने कहा ,"बहू ! हमें पता था कि आज कोमल का विवाह है। हमें निमंत्रण नहीं दिया गया तब भी विजय अपने छोटे भाई अजय के साथ निकल चुका है। अभी थोड़ी देर में वहां पहुंचता होगा और तुम इतना आग्रह कर रही हो तो मैं और तुम्हारी सास कल तक पहुंचने की पूरी कोशिश करेंगे कि बेटी की विदाई से पहले हम वहां पहुंच जाए। बिटिया को शादी पर हमारा आशीर्वाद देना।


सदा सौभाग्यवती रहो बहू! ""सदा सौभाग्यवती रहो बहू"


अनुराधा जैसे इन शब्दों में खो गई वह लोग अब तक मुझे बहू मानते हैं और मैं यहां रिश्तो को जोड़ घटाव सही गलत झूठ सच की तराजू पर नाम कर अकेली जिंदगी जी रही हूं और उस शख्स को गलत मान कर बैठी हूं, जो अपने माता-पिता के एक झूठ का शिकार होकर एक रिश्ते में अपनी पहचान खो चुका है


यहाँ तक कि आज एक पिता की पहचान भी खोने वाली थी जिसे वक्त रहते एक सच्चे रिश्ते ने संभाल लिया था।


हां ..सच्चा रिश्ता ही तो था अनुराधा और विजय का।

जिन्होंने सही मन से एक दूसरे से शादी की थी। अनुराधा को अगर पता होता विजय क्लर्क है तो भी वह उससे शादी करती, क्योंकि वह एक अच्छा इंसान था। लेकिन शादी के समय एक झूठ को उसके घर वालों ने इतना तूल दे दिया था जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। अनुराधा के बड़े भाई और पिता ने इसे अपने लिए मान अभिमान का मसला समझकर बेटी को ससुराल से लिवा लाए फिर संकोच से मानिनी अनुराधा कुछ कह नहीं पाई और नासमझ अनुराधा सब की बातों में आकर अपना घर संसार खुद अपने हाथों से स्वाहा करके आ गई थी।


उधर.... माता पिता का आज्ञाकारी विजय शादी में उसको लेकर बोले गए झूठ से ज़ब तक अज्ञान था तब तक ठीक था। उसने अनुराधा के साथ बड़े ही प्रेम से अपना दाम्पत्य जीवन शुरू किया था। एक दूसरे को दोनों ने मन से स्वीकार किया था और पूर्ण समर्पण और प्रेम के क्षणों की उपज़ थी कोमल। अनुराधा और विजय जान छिड़कते थे अपनी परी पर।

सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था. आगे भी चलता रहता अगर अनुराधा के बड़े भैया अंकित को मालूम नहीं पड़ता कि विजय बैंक मैंनेज़र नहीं बल्कि क्लर्क है।


विजय तो निर्दोष था। अनुराधा ने भी दिल से प्यार किया था विजय से। पर ज़ब उसके पिता और भाई उसे वापस मायके लिवा लाए तो संकोचवश कुछ कह नहीं पाई और उसका भी विश्वास थोड़ा डोल गया और लगने लगा था कि हो ना हो विजय भी इस झूठ में शामिल हो।


विजय से अलग होकर अँगारे पर लोटकर ही गुजरी थी ज़िन्दगी। और कोमल सिर्फ अपने पापा को ही नहीं बल्कि दादा दादी और चाचू को भी बहुत याद करती थी।



और जो कोमल बमुश्किल साल में दो तीन बार ही अपने पिता से मिलती रही थी उसे भी अपने पिता से कितना लगाव था कि वह अपने पिता के बगैर अपना कन्यादान नहीं कराना चाहती थी आखिर कुछ रिश्ते दूर रहकर भी कितनी नजदीक होते हैं शायद जब तू उस सही इंसान मिलते हैं तो उनके रिश्ते इतने सच्चे इतनी परिष्कृत इतनी पारदर्शी होते हैं कि दूरियां उनके लिए कोई मायने नहीं रखती यह बात आज अनुराधा बहुत ही शिद्दत से महसूस कर रही थी एक तरफ खुद से विजय का रिश्ता देखती तो आपस में उन्हें एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं थी।


शादी के बाद जीवन कितना अच्छा लगता है।

अकसर शादी के बाद जिन्दगी उम्मीदों और सपनों के धुंध से होकर गुजरती है। जब तक वह धुंध होती है, सबकुछ जादुई और स्वर्गिक लगता है पर जैसे जैसे वह धुंध छंटती है जिन्दगी की परतें स्पष्ट रुप से सामने आने लगती है।


अनुराधा को आज भी याद है। मधुमास के बाद धीरे धीरे उसकी आंखो से भी धुंध छंटने लगी थीं और हकीकत का खुरदरापन सामने आने लगा था। और सामने आया था वो झूठ जो विवाह के समय विजय के परिवार की तरफ़ से बोला गया था कि लड़का बैंक मैनेजर है। कदाचित विजय की असलियत जानकर अनुराधा को उतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी इस बात से कि इस झूठ के तह में कुछ लाख ज्यादा दहेज की लालसा थी और उस रकम से अपनी ननद आभा की शादी में दहेज दिया जाना।


अनुराधा की शिकायत विजय से ही बढ़ती जा रही थी। मैं अपना गुस्सा और क्षोभ विजय पर दिखा देती थी । कई बार अपने तानों और व्यंग्य वाणों से उनका हृदय छलनी कर देती पर वह कुछ नहीं बोलते थे। पता नहीं इतना गरल वो पीते कैसे थे?


और.... इधर विजय के पिता गिरजाप्रसाद जी ने अपनी बेटी का घर तो बसा दिया था पर उस झूठ से उनके बेटे का घर उजड़ गया था। जिसका पछतावा उन्हें आजतक है।



उसे ससुराल की , विजय की याद आती पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पांच साल की कोमल को लेकर जो घर छोड़ा तो फिर कभी उस डेहरी पर कदम नहीं रख पाई।



शुरु में तो फिर भी मन लग जाता था। फिर दोनों भाईयों की शादी के बाद अनुराधा को अब मायका अपना घर नहीं लगता था।



शादी के बाद अपने पराए की पोशाकें बदल जाती हैं। रिश्तों की परख हो जाती है। आंखे वही रहती हैं पर रिश्तों को देखने की अंतर्दृष्टि बदल जाती हैं।



यह बात समय के साथ अनुराधा भलीभांति महसूस कर रही थी।



अनुराधा पढ़ी लिखी तो थी ही। उसने बाद में कोमल के ही स्कूल में नौकरी कर ली थी। दिन व्यस्तता में कट जाता पर रात को विजय की बहुत याद आती। वो सशक्त बाहें वो गहरी आंखे गंभीर आवाज़ और सौम्य स्वभाव जो एक इगो की वजह से बस चुप लगाए बैठे थे। अनुराधा को सबकी याद आती। उसकी तमन्ना होती कि लोग उसकी भी परवाह करें।



अभी अनुराधा और भी अतीत में विचरण करती कि तभी उसने सुना,कोमल की खिलखिलाती आवाज़...


"मम्मा ... मम्मा देखो पापा आ गए। देखो मेरे पापा आ गए। मैने कहा था ना मेरे पापा ज़रूर आयेंगे। अपनी कोमल को आशीर्वाद देने!"


आंखो में भर आए तू तो पूछती हुई कोमल कहती रह जा कहती जा रही थी सच ही आंसू भी कैसे हैं ना खुशी में भी आते हैं और दुख में भी आज तो अनुराधा के आंखों से भी खुशी के आंसू बह रहे थे जल्दी से दौड़कर नीचे पहुंचने की बजाय वह आईने के सामने गई अपना चेहरा दुरुस्त किया काजल फैल गया था उसे ठीक किया थोड़ा सा कंपैक्ट पाउडर का टच देकर लिपस्टिक ठीक करके बाल ठीक करके शादी कार्ड साड़ी के को दुरुस्त करने के बाद ऊपर से नीचे खुद को निहारने के बाद नीचे की ओर चली तो कहीं ना कहीं अनुराधा को एक शर्म सी आई और लरज़ रही थी। आज उसके अंदर की पत्नी जाग गई थी एक पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए उसकी नजरों को प्यार से महसूस करने के लिए अपने साथ सिंगार पर जरूर ध्यान देती है और आज इस वक्त जबकि कुछ ही देर में उसकी बेटी की शादी होने वाली थी अनुराधा खुद को भी संवारने में कोई कमी नहीं की थी।


धीरे-धीरे जब अनुराधा नीचे पहुंची तो कोमल को अपने पिता से लिपटे हुए देखा बगल में ही आ जाए खड़ा था अजय ने आगे बढ़कर उसे प्रणाम किया और कहा कैसी है भाभी भाभी यह शब्द सुनने को तरस गई थी अनुराधा कितना अपनापन कितना रिश्ता भरा हुआ है इस एक शब्द में भाभी।


अनुराधा शर्म से नाराज गई विजय ने एक भरपूर नजर उस पर डाली थी और उस नजर में प्रशंसा थी और साथ ही एक गौरव भी एक पिता होने का गौरव।


अजय ने अनुराधा के कान में कहा,


"भाभी। भैया बैंक में अफसर बन गए हैं। एक के बाद एक फिर डबल प्रमोशन मिला है अब आपकी शादी के समय बोला हुआ झूठ सच हो गया है भाभी। भैया अब अफसर हो गए हैं!"



अनुराधा अजय से क्या कहती उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है विजय अफसर है या नहीं। वह अभी एक पत्नी है जिसे अपने पति के बलिष्ट बाहों का सहारा चाहिए और उससे भी बढ़कर वह एक मां है जो अपने पति के साथ मिलकर अपनी बेटी का कन्यादान करने जा रही है और इस समय एक पूरा परिवार साथ मिलने वाला है।


अनुराधा का परिवार अनुराधा विजय और कोमल का परिवार जिसे वह इन तमाम रिश्तो की भीड़ में खो चुकी थी वह उसका अपना परिवार



कोमल लाड से विजय से कह रही थी " पापा ! आप मेरा कन्यादान करोगे ना ?"


विजय कह रहा था ,"कन्यादान करने ही तो आया हूं कैसे नहीं करूंगा!

इधर बेटी का कन्यादान करने बैठे थे अनुराधा और विजय सप्तपदी के सारे रस में सारे नियम सारे मंत्र वह खुद भी मन ही मन में दोहराते जा रहे थे एक तरह बेटी की भारी पड़ रही थी और इधर भी जाए और अनुराधा मन ही मन में अपनी शादी दोहरा रहे थे उस शादी में खटका था। इस शादी में दोनों ने एक दूसरे की कमी को महसूस किया था एक दूसरे को दोनों को दिल से सराहा था और अब दिल से अपना चुके थे।

आज एक ही मंडप पर दो शादियां हो रही थी एक शादी जो बरसों पहले हो चुकी थी उसके मंत्र अब दिल से दोहराए जा रहे थे। दूसरी शादी कोमल और बसंत की हो रही थी जिसमें एक बेटी अपने पिता के द्वारा कन्यादान किए जाने पर हर्ष से उत्प्लावित हो रही


यह एक ऐसा विवाह था जहां दो नहीं बल्की चार दिल दिल जुड़ रहे थे और वर्षों पुराने अलग हो गए रिश्ते भी एक हो रहे थे।


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