Sarita Maurya

Children Stories

4.3  

Sarita Maurya

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कन्नन की घास और थत्था का खेत

कन्नन की घास और थत्था का खेत

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जब पुरूषोत्तमम ने धरती पर बिखरी सोने सी रेत को आखरी अलविदा कहा तो नीले आसमान के बीच फैले शफफाक ्बगूलों ने मानों उसे विभिन्न आकृतियां बनाकर अपने हरियाले गांव की तरफ लौटने के लिए ढेरों शुभकामनायें दे डालींआज पुरूषोत्तमम अपने अतीत की हर सुहानी याद को जी लेना चाहते थे विशेषकर वो खूबसूरत पल जहां नारियल वृक्षों की छाया धान के हरेभरे खेतों से गलबहियां करती नज़र आती थीऔर शाम होतेहोते दिनकर की सुनहरी किरणें नारियल वृक्षों की छाया और धान के पौधों संग अठखेलियां करतीं मौन संगीत का

आमंत्रण देती थीं।इन्हीं मधुरिम छटाओं के बीच वह इतना मोहित हो जाता कि कमर से लटकती बांसुरी अपने आप होठों से जा लगतीउसपर अम्मा की स्वर लहरी सी चढ़ती उतरती आवाज में अपना नाम कन्नन ऐसे लगता जैसे वह सचमुच कन्हैया बनकर आ गया हो हिंदी ठीक से नहीं आने के बावजूद उसे ‘‘या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी अच्छे से याद थीआसमान में उड़ते हुए भी उसकी कल्पना के पंख हरियाली जमीन में सोंधी माटी की महक से लिपटे बचपन से जा मिले।सोच की एक खिड़की खुली लेकिन विमान में बैठने की हालत देखकर उसका बचपन में डोलता सपना धराशाई हो गया और वो तुरंत मैं मेरी सीट मेरी स्वतंत्रता वाले मोड में सक्रिय हो गया। लेकिन आज न जाने कैसे उसका मन चंचल हो उठा था और वो अपने बचपन में न सिर्फ जीना चाहता था बल्कि उन 

खूबसूरत यादों को किसी के साथ साझा भी करना चाहता था। 

अपने पास वाली सीट पर एक छोटी सी क्षीण काया को देखकर वह मन ही मन बुदबुदाया ‘‘हे ईश्वर अब ये बच्ची और बिठा दी बगल में या तो पूरा समय खाती रहेगी या फोन पर पिक-पिक और करती रहेगी। मुझे चॉकलेट निकालते देख उसकी कल्पना को और बल मिला।मेरे सवाल के बदले उसने सवाल दाग दिया "सफर लंबा है अगर मैं आपसे पूछूं कि आपको अजनबी से बात करना पसंद है कि नही ंतो नाराज़ नहीं होंगी 

मैं केमिकल इंजीनियर हूं।" तमाम चर्चा के लब्बोलुवाब में जो मिला वो पाठकों के लिए पेशेखिदमत है-

तमिलनाडु के किसी एक हरे-भरे गांव में एक लड़के ने धरती पर बिना नाम के अवतरण लिया। बिना नाम इसलिये कि सामान्य तौर पर माता-पिता बच्चे का नामकरण उसके जन्म से पूर्व अपनी कल्पनानुसार कर लेते हैं लेकिन उस लड़के की भावी माता साक्षात ईश्वर पर भरोसा करने और उसी आधार पर सामाजिक व्यवहार करने वाली महिला थीवे स्वयं निहायत खूबसूरत साफदिल और मेहनतकश इंसान थीं और दुनियादारी से बहुत दूर रहती थीं।खूबसूरती अगर आंखों मे थी तो कन्नम्मा यानी वो महिला खूबसूरत थीं और यदि आंखों में नहीं रंग में कोई ढूंढता है तो आप अपनी कल्पना में नाचते पक्के श्याम रंग को जगह दे सकते हैंमेरे लिए हर मां खूबसूरत होती हैतो कुलमिलाकर सांवले सलोने बालक को देखकर नहीं बल्कि प्रसवपीड़ा से छटपटाने के स्वरूप हठात् उनके मुह से निकला ‘‘हे कन्नन’’! उसी समय कन्नन का जन्म और पूरे घर में कान्हा आया कान्हा आया की गूंज हो गई। बालक की मां ने भी उसके सांवले सलोने रूप को देखकर चुपचाप मुंह से निकले शब्द को ही अपने प्यारभरे संबोधन के लिए अंगीकार कर लिया और बालक का सहज नाम पड़ गया ‘कन्नन’।

मां को पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे क्योंकि कन्नन बड़बोला होने के साथ ही शेखीबघारू भी था इस चक्कर में कई बार मां का दिया हुआ काम भूल जाता और फिर मां से गरम-गरम भात या चपाती की जगह नरमनरम चपचपी पड़ती और वो मा की मार से बल्लियों उछलता कि अब गलती नहीं करेगा। उसे ये कभी नहीं पता चला कि लोगों के दिल भी बल्लियों उछला करते हैं क्योंकि उसकी ऊॅंची कूद तो कन्नम्मा की मार से शुरू होकर वहीं समाप्त भी होती थी।

कभी कभी मां उसे इमली लेने भेजती तो गांव में इमली पेड़ के नीचे खेलते बच्चों के साथ नोंदु पलंगुच्ची लिप्पा या कट्टमसरू खेलते हुए मुख्य काम भूल जाता और अपनी वीरता की अद्भुत अनगढ़ कहानियां बच्चों को सुनाता जब कोई कन्नन की बात पर कम ध्यान देता तो कन्नन अपने पिछले जन्म और इस जन्म के काल्पनिक भूत को आपस में मिला देताफिर तो साहसी सपने का ऐसा दौर चलता कि अम्मा की मार ही उसे याद दिला पाती कि वह बाहर किसी काम से निकला थाउसकी कहानियां गढ़ने की आदत से मां अकसर सोचतीं ‘‘मेरा कन्नन क्या करेगा ये तो बहुत भोला है इसे खेती में बैलों की जगहकाम लिया जा सकता है बस] ताकि ये व्यस्त रहेसोचसोच कर मां ने उसमें खेती के लिए इतनी रूचि भर दी कि वह भोर के उजाले में खेतों को अपनी बांसुरी की धुन सुनाने निकल जाता और रात के सपने भी उन्हें ही बताता। 

ऐसी ही किसी सुबह जब कन्नन थोड़ा बड़ा हो चुका था] मां ने उसे धान की फसल निराई करने के लिए भेजा ताकि खरपतवार निकल जाये और गाय के लिए घास भी हो जाये। आज्ञाकारी कन्नन घर से कुछ ही दुर निकला था कि एक दोस्त ने उसे टोका -"कहां जा रहे हो इबनबतूता" कन्नन की कपोलकल्पना वाली कहानियां सुन-सुनकर उसके दोस्तों ने उसे यही नाम इबनबतूता दिया था। कन्नन बोला "आज से ये नाम तू रखले क्योंकि अब मैंने दोस्तों को सच्ची घटनाओं की कहानियां सुनाना बंद कर दिया हैदेखना तुम सब एक दिन मुझे याद करोगे  फिलहाल खेत जा रहा हूं।"दोस्त पीछे से आवाज देता रहा और कन्नन बढ़ चला।आज उसने तय किया था कि अब वह मां को कभी भी शिकायत का मौका नहीं देगा अभी कल ही तो मां ने उसे झाडू़ से मारा था क्योंकि मां ने उसे बरसीम लाने भेजा और दोस्तों के चक्कर में भूलकर वह सोयाबीन उजाड़ आया था। बड़े होने का ताना और मारा था कि जाने कब सुधरेगा कन्नन ने खेत की मेड़ पर पहुंच कर एक अंगड़ाई ली और खुरपी निकाल कर कोने में उतर गयावह काम में इतना तल्लीन हो गया कि खरपतवार से ही बातें करने लगा-"देखो तुम लोग किसी और खेत में जाकर उग जाया करो मेरा खेत जरूरी तो नहींतुम्हारी वजह से मुझे और अम्मा दोनों को परेशान होना पड़ता है।" उसकी तल्लीनता इतनी अधिक थी कि उसे थत्था की आवाज ही सुनाई नहीं दी।थत्था गांव के सबसे बुज़ुर्ग माने जाते थे और उनकी बात हर व्यक्ति मानता था यहां तक कि बच्चे उन्हें देखकर अपने आप ही हट जाते थे लेकिन जाने कैसे थत्था को कन्नन अपनी कहानियां सुनाने के लिए मना लेता था या यूं कहें कि थत्था उसकी बातों के बताशे आनंदमग्न होकर सुनते थे। थत्था ने कन्नन को आवाज दी "अरे कन्नन आज इधर क्या कर रहे हो और......?" कन्नन ने आदत के अनुसार थत्था का वाक्य पूरा हुए बिना ही थत्था को अकबर और बीरबल की कहानी का उदाहरण देकर बता दिया कि थत्था का सवाल कितना फालतू था। 

"अरे थत्था खेत की निराई करने आया हूं वही कर रहा हूं और फिर आपको पता है कि धान की फसल अच्छी तैयार होने के लिए निराई जरूरी है ताकि उसमें खाद का असर हो सके। आपको पता है यूरिया से गोबर अधिक अच्छा होता है और....".कन्नन ने थत्था को बोलने का मौका नहीं दिया। 

 दोपहर का सूरज सिर पर लगभग तपने लगा था कन्नन का काम भी पूरा हो चुका था। वह खुश था कि आज अम्मा को जब पूरा खेत एकदिन में इतना साफसुथरा मिलेगा तो वह पक्का शाबाशी देंगी और उन्हें पहली बार अपने बेटे पर गर्व होगा। थत्था ने खेत की मेंड़ से हॉंक लगाई-कन्नन बहुत हो गया चलो मैं गट्ठर बना देता हूं] कन्नन ने घास समेटते हुए उत्तर दिया अरे थत्था आप रहने दीजिये मैं कर लूंगा! मेहनत से खुशी मिलती है। थत्था ने गट्ठर बंध जाने पर खेत में प्रवेश किया और इतनी अधिक मेहनत करने के लिए उसका धन्यवाद किया। 

कन्नन बोला धन्यवाद किस बात का थत्था अच्छी फसल के लिए इतनी मेहनत तो करनी ही पड़ती है। थत्था ने उसकी पीठ थपथपाई और बोले हां अपने खेत में तो सभी काम करते हैं कन्नन ये धन्यवाद तो इसलिये है कि तुमने मेरे खेत की घास भी उतनी ही लगन से निकाली और मुझे खेत में पैर भी नहीं रखने दिया।’’ इससे पहले कि कन्नन कुछ और कहता थत्था अपना घास का गठ्ठर उठाकर दूर जाते दिखे! वे ऊंचे स्वर में गा रहे थे मेरे खेत की धरती सोना उगले उगले धान की खेती मेरे खेत की धरती’’। कन्नन का मुंह आधा खुला हुआ आंखें बड़ी-बड़ी और दिल बल्लियों उछल रहा था । कन्नन की खुशी या गम का तो पता नहीं लेकिन माथे पर पसीने की बूंदें अवश्य छलछला आई थीं क्योंकि सामने से अम्मा पूछती हुई आ रही थीं "क्या खायेगा कन्नन?" कन्नन मन ही मन सोच रहा था ‘‘ओ मुरूगन’’ अम्मा क्या देगी चपाती या चपचपी?


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