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Dr. Madhukar Rao Larokar

Others

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Dr. Madhukar Rao Larokar

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:" खुशी के पल""(23)

:" खुशी के पल""(23)

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तिथि08/02/1983की बात है। हमारे छोटे भाई का विवाह छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)में हुआ था।यही अवसर था ,जबकि हमारे पिताजी के 6भाई तथा 4बहनें जीवित थे।

छोटे भाई के विवाह की तस्वीर मुझे, विशेष प्रयास करने पर ही, प्राप्त हो सकी है।पिताजी ने उस विवाह के अवसर पर मुझसे कहा था "तुम परिवार के बड़े-बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखो ।छिंदवाड़ा में अभी ठंड बहुत अधिक है। "

पिताजी के आदेश का मैंने अक्षरशः पालन किया था और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त किया था।

तस्वीर में हमारी नानीजी (अधिक ही वृद्ध थी)भी जीवित नजर आ रही हैं। वे फोटो सेशन में नहीं आ पा रही थीं। (स्वास्थ्य कारणों से)मैंने नानी जी से कहा था"आप तो खड़ी भी नहीं हो पा रही हैं। मेरे साथ फोटो खिंचवाने तो चलिए। क्या पता फिर हमारे साथ फोटो लेने का अवसर मिले यान मिले। "

हालांकि यह बात मैंने, उनसे मजाक में कही थी क्योंकि उनके साथ मेरी ,एक भी फोटो संयुक्त रूप से नहीं थी।

नानी जी ने मुझसे उस समय, कहा था कि "तुम मुझे गोद में उठाकर ,वहां तक ले चलो,तभी मैं जा पाऊंगी। मुझसे तो खड़े भी नहीं हुआ जा रहा है। "

मैं नानीजी को गोद में उठाकर, फोटो खिंचवाने की जगह पर ले गया था।उस अवस्था में देखकर सभी के चेहरे प्रफुल्लित हो उठे थे।वैसे भी विवाह का माहौल तो था ही।

विवाह के समय ठंड, चरम अवस्था में थी और फोटो के समय ,हमारा बड़ा लड़का जो कि उस समय 3वर्ष का था,किसी कारणवश रो रहा था।फोटो देखकर पुत्र ने मुझसे पूछा "पापाजी आप तो कह रहे थे कि, वह रोता हुआ बच्चा मैं हूँ, तो बताइये कि मैं क्यों रो रहा था। "

मैंने पुत्र से कहा था"बेटा यह तो अभी याद नहीं है।शायद तुम्हें उस समय भूख लगी हो या ठंड लग रही हो या तुम्हें मम्मी की याद आ रही हो।"

पुत्र ने कहा "पापाजी मैं तो, बचपन से ही स्ट्रांग रहा हूँ। मैं रोने में विश्वास नहीं करता हूँ "

मैंने पुत्र को ,यह,कहकर खुश करने की कोशिश की थी "बेटा उस समय तुम केवल 3वर्ष के थे और बच्चे को पता नहीं होता कि वे क्यों रो रहें हैं या हंस रहे हैं। "

पुत्र संतुष्ट हो गया और मुझसे कहा"हां पापाजी उस समय मैं स्ट्रांग कैसे हो सकता हूँ। मैं तो बच्चा था ना।"

हमारे बड़े पिताजी ने मुझसे कहा था "यह परिवार का पहला कार्यक्रम है ,जिसमें पूरा परिवार ही शामिल रहा है। नहीं तो अभी तक कुछ लोग ही ,शामिल होते रहे हैं। तुम्हारे पिताजी और तुमने अच्छा कार्य किया है। परिवार के सभी ने शादी को इन्जाॅय किया है। तुम लोगों के प्रयास ने ,परिवार की इस शादी को यादगार बना दिया है। "

हमारी बड़ी मां ने भी ,उसी अवसर पर मुझसे कहा था "बेटा हमारी पीढ़ी तो (तू चल मैं आता हूँ)वाली कगार पर है। आज है कल नहीं है।तुम 6भाई-बहन हो और तूम सबसे बड़े हो।सभी को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी तुम्हारी है,नहीं तो तुम्हें सभी भला-बुरा कहेंगे।तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हें हमारी बहू जैसी पत्नी मिली है। उसे खुश रखोगे तो वह परिवार को खुश रखेगी।मेरी यह बात हमेशा याद रखना।"

परिवार के बड़े लोगों के मार्गदर्शन और उनकी बातों को मैंने अभी भी गांठ बांधकर रखी है और मैंने जीवन के 64वसंत देख लिये हैं। वह पुरानी तस्वीर क्या दिखी ,भूली बिसरी यादें जेहन में ताजा हो उठी।



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