खेलों का विशिष्ट महत्त्व
खेलों का विशिष्ट महत्त्व
आज कक्षा में पहुंचने पर बच्चों के द्वारा औपचारिक स्वागत और उन्हें आशीर्वाद अभिव्यक्त करने के बाद ऐसा अनुभव हो रहा था कि इन बच्चों और विशेष तौर पर बालिकाओं के मन में कुछ बेचैनी है। संकोचवश वे अपने मन में उमड़ घुमड़ रहे अपने विचारों को कहने का साहस नहीं जुटा पा रही हैं । मैंने कक्षा में बालिकाओं की ओर से मॉनिटर का दायित्व निभा रही साधना से पूछा कि खासतौर से छात्राओं के मन में कुछ असमंजस की स्थिति का मैं अनुभव कर रहा हूं। ऐसा लगता है कि ये छात्राएं कुछ कहना चाहती हैं लेकिन संकोच के कारण कह नहीं पा रही हैं। तुम्हें इनके प्रतिनिधित्व का दायित्व मिला हुआ है तो मैं चाहूंगा कि इनके मन की वह बात जो यह स्वयं कहना तो चाह रही हैं लेकिन कह नहीं पा रही है ।तुम इनके के मन की बात मुझे बताओ ताकि मैं इनके मन में चल रहे द्वंद्व को जान सकूं और इस दिशा में कुछ समुचित कदम उठा सकूं।
सर हमारी कक्षा के अधिकांश बच्चों का यह कहना है कि यह सप्ताह बीतने को है आज शुक्रवार है । इसका मतलब है कि इस सप्ताह के पांच दिन बीत चुके हैं लेकिन हमें खेल के मैदान में जाने का अवसर नहीं मिला है ।हमारे खेल के अध्यापक इस हफ्ते छुट्टी पर हैं। उनके पीरियड में अच्छा व्यवस्था के अंतर्गत उनके स्थान पर कक्षा में जो भी अध्यापक या अध्यापिकाएं आईं। उन्होंने कक्षा में ही हम सबको अलग-अलग तरह से व्यस्त रखा लेकिन हमारा खेल के मैदान में खेलने का सपना साकार नहीं हो सका।आप हमारी कक्षा के अध्यापक भी हैं इसलिए हम अपने मन की बात आप तक पहुंचाना चाहते थे ।आप हमारी मन की भावनाओं को सहृदयता पुर का विचार कर हमारी इस समस्या का समाधान करें।
मैंने बच्चों की व्यग्र भावनाओं को समझा और उनसे कहा कि कोई चिंता की बात नहीं । अभी हम तुम सबको अभी खेल के मैदान में ले चलते हैं ।हम सब का यह सौभाग्य है कि इस समय दूसरी कोई कक्षा खेल के मैदान में अभी नहीं है। 40 मिनट के इस पीरियड में आधे घंटे तक तुम लोग अपने अपने समूह बनाकर अपने मनपसंद खेल खेलना और अंतिम 10 मिनट में हम वही खेल के मैदान में बैठकर कुछ बात करेंगे। आज की चर्चा का विषय रहेगा कि खेलकूद क्या केवल हमारे शारीरिक विकास तक ही सीमित हैं या इनकी उपयोगिता इससे कहीं और भी ज्यादा है तुम लोग सिर्फ में दादा पहुंचते खेलते खेलते भी इस बात पर मन में विचार कर सकते हो ताकि जब हम दस मिनट के लिए समूह चर्चा करेंगें तो तुम लोगों के अमूल्य विचार एक दूसरे तक पहुंच सकें। मैं यह गुस्सा करते ही सभी बच्चों के चेहरे खिल उठे ।एक स्वाभाविक सी मुस्कुराहट हर किसी के चेहरे पर देखी जा सकती थी।
अगले आधे घंटे तक मैं खेल के मैदान में खेलते हुए उन बच्चों के खेलकूद और चेहरे के भाव को महसूस कर रहा था आधे घंटे का समय किस प्रकार की दिया बच्चों को पता भी नहीं चला जब आधे घंटे के बाद उन्हें एकत्रित होने का संकेत दिया गया तब भी कुछ बच्चों के रूम में यह शंका उत्पन्न हो रही थी कि हो सकता है कि अभी आधे घंटे का समय गीता ही ना हो लेकिन जब उन्होंने मुझे संगीत करते देखा तो वे सब एक साथ घेरा बनाकर बैठ गए।
जैसा कि कक्षा में ही तुम सबको बता दिया था कि आज की चर्चा में हम सब खेलो के विशेष महत्त्व के बारे में बात करेंगे । तुम सब ने यह ध्यान रखना है कि हम सब एक संयमित भाषा में अपने मन के विचारों को अवश्य रखें। अपने मन में ऐसा कोई संकोच ना लाएं कि ग्रुप में मेरे द्वारा जो भी बोला जा रहा है उसमें कोई त्रुटि तो नहीं है ।कई बार तुम्हारे मन में बड़े ही अच्छे विचार आ रहे होते हैं लेकिन अपने संकोची स्वभाव के कारण तुम अपने उन विचारों को सबके सामने रख नहीं पाते हो।तो मेरा तुम सब से अनुरोध है कि अपने मन में आने वाले विचारों को सबके सामने बिना किसी हिचकिचाहट के रखना है।किसी तरह का संकोच या शर्म महसूस नहीं करना ।अब अपनी बारी आने पर सभी बच्चों ने खेलों की उपयोगिता को अपने विचारों के रूप में सबके सामने रखा।कुछ ने काकी खेलकूद हमारे शरीर को मजबूती प्रदान करते हैं ।खेलते समय शरीर के साथ हमारा मन मस्तिष्क की भी सक्रिय रहता है और संसार का नियम है कि कोई भी चीज अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता बनाए रखे इसके लिए उसका सकरी प्रयोग आवश्यक होता है। यह चाहे हमारा शरीर हो या फिर कोई मशीन हो इसके सक्रिय रहने पर इसकी उत्कृष्ट गुणवत्ता बनी रहती है लेकिन निष्क्रिय रहने पर निश्चित ही रूप से यह अपनी गुणवत्ता खो देता है।
हमेशा की तरह जब आकांक्षा ने बोलना प्रारंभ किया तो सभी बच्चे बड़े ही ध्यान से उसकी बात को सुन रहे थे और आकांक्षा के बात करने की जो शैली और विचारों की प्रस्तुति होती है वह सदैव ही उत्कृष्ट कोटि की होती है इसलिए जब कभी भी आकांक्षा अपनी बात रखती है तो सभी बच्चे उसकी बात को बड़े ही गौर से सुनते हैं ।आकांक्षा ने बताया कि इस संसार में हर व्यक्ति सफलता और केवल सफलता चाहता है। अगर व्यक्ति किसी कार्य के लिए प्रयास करता है और वह उसमें में सफल नहीं हो पाता तो वह अपने को पराजित समझता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसने कभी हार का मुंह ना देखा हो उसके लिए हार को स्वीकार करना बहुत ही मुश्किल होता है ।खेल हमारा शारीरिक मानसिक बौद्धिक और नैतिक विकास करते ही हैं इसके साथ ही साथ खेल हमें यह सिखाते हैं कि जिंदगी में जिस प्रकार सुख-दुख, धूप -छांव, सुबह-शाम ,दिन- रात आते जाते रहते हैं इसी प्रकार जीवन में सफलता- असफलता ,हार -जीत ,उत्थान -पतन भी साथ-साथ चलते हैं। यानी हार और जीत दोनों ही जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। हम सब ही जीत कर तो खुश होते हैं पर अगर हमें कभी हार का सामना भी करना पड़े तो हम अपनी उस हार को भी सहर्ष स्वीकार करें क्योंकि जब कभी कोई खेल प्रतियोगिता होती है तो दो पक्षों में एक पक्ष ही जीतता है और दूसरे को हार का सामना करना पड़ता है । अपनी हार को हममें से उस व्यक्ति को स्वीकार ना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा जिसने इससे पहले कभी जीवन में असफलता या हार का सामना ही ना किया हो। खेल हमें खेल को खेल भावना से ही खेलनी चाहिए खेलों में हमें अपनी जीत और हार दोनों को बड़ी ही शालीनता से संभालना होता है यही तो वह कौन है जो खेलों के माध्यम से ही हम सबके अंदर आते हैं और इन्हें आना भी चाहिए क्योंकि यह गुण हमारे अंदर होना बहुत ही महत्वपूर्ण है अगर हम खेल यह जीवन को कोई भी कार्य सिर्फ जीत के उद्देश्य को लेकर ही कार्यान्वित किए जाएंगे तो हार से आत्मविश्वास डगमगा जाएगा इसलिए खेलों में हम यह सीखते हैं कि बेहतरीन तरीके से खेलना ही हर खिलाड़ी का उद्देश्य होना चाहिए। जब बेहतर खिलाड़ी खेलते हैं तो जीतने और हारने वाले दोनों ही खिलाड़ी बहुत ही अच्छे होते हैं और उनमें से एक जीतता है और दूसरे को हार का स्वाद चखना पड़ता है लेकिन हर स्थिति में जीतने और हारने वाले दोनों खिलाड़ी इसे शालीनता के साथ स्वीकार करते हैं। यही तो खेल भावना है तभी तो सभी प्रतियोगिताओं में खेल समाप्ति के बाद खिलाड़ी एक दूसरे के साथ बड़ी ही आत्मीयता के साथ मिलते हैं और इस बार असफल रहा खिलाड़ी सफल हुए खिलाड़ी को अपनी शुभकामनाएं देता है ताकि सभी के बीच में सौहार्द बना रहे। मैं समझती हूं कि खेलों का यह एक ऐसा पक्ष है जिस पर हम में से अधिकांश लोग विचार नहीं करते।
आकांक्षा के इन विचारों का सभी बच्चों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया।
