Mridula Chandra

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कहानी - आरज़ू ....आगे की कहानी

कहानी - आरज़ू ....आगे की कहानी

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इस फ्लोर पर मैं अकेला ही था। अच्छा हुआ आप लोग आ गए। मैं अकेला रहता हूँ। 303 मेरा ही है। रागिनी की सिस्टर ने स्माइल किया।  ये झाँसी की रानी को क्या हुआ?

रागिनी की बहन हँस पड़ी।

रागिनी को न जाने क्यों पर सब अच्छा लग रहा था। वो एक ताज़गी का एहसास कर रही थी। हवा में उड़ रही थी। अचानक रागिनी के अंदर न जाने कहाँ से इतनी ऊर्जा आ गई थी। लिफ्ट से बाहर निकलकर लड़के ने कहा ...आइए आप लोग । रागिनी की बड़ी बहन ने बड़े आराम से कहा...फिर... कभी ... i am vikram.... कहते हुए बोला ,कुछ ज़रूरत हो तो plz बताइएगा।...उसका बोलना रागिनी को जादू जैसा लग रहा था। मदहोश हो रही थी रागिनी। उसको एक अजीब से अपनेपन का एहसास हो रहा था... मानो घर का ही कोई सदस्य हो। रागिनी को उसको बैग उठाने के लिए थैंक यू कहना था पर वो इधर उधर तो देख रही थी पर उड़ लड़के की तरफ देख ही नहीं पा रही थी। पता नहीं उसको देखने से उसको क्यों डर लग रहा था। ... थैंक यू बोलने की हिम्मत.... नहीं हो रही थी रागिनी को... लड़के ने बोला -आप लोगों ने अपना नाम नहीं बताया ..

रागिनी की बड़ी बहन बोली - आराधना और ये...पता है - विक्रम बोला .... झाँसी की रानी।  

रागिनी की बहन फिर हँस पड़ी। रागिनी ने अपनी बहन से कहा- चल न। नज़र नीची किए चलती रही। रागिनी अंदर

तक गुदगुदा गई थी। विक्रम अपने घर का दरवाज़ा खोलते हुए भी इन्हीं लोगों को देख रहा था।  bye.... Vikram ने.. कहा। 

रागिनी की बहन घर का ताला खोल चुकी थी पर रागिनी का बिलकुल मन नहीं था अंदर जाने का। कुछ था जो रागिनी को चुम्बक की तरह खींच रहा था। । ऐसा एहसास रागिनी को शायद पहली बार हुआ था वरना रागिनी ने आज तक किसी को भाव नहीं दिया था ... पर विक्रम ने जैसे उसे हिप्नोटाइज कर दिया था।  

रागिनी उसकी घर की तरफ देखना चाहती थी एक नज़र पर डर गई कि विक्रम उसको देखते हुए देख न ले। 

वो अपने घर के अंदर आ गई। बाथरूम में चली गई। शीशे के सामने खड़ी हो गई। खुद को देखकर ही शर्मा रही थी। आँखों में चमक और गालों पर लाली छाई हुई थी। मन ही

 मन उसने खुद से कहा हम्म्म्म ...Vikram.

बाथरूम से बाहर आई और अपने कमरे में आकर खिड़की का पर्दा खोल दिया और बाहर देखने लगी। अपने चेहरे को तौलिए से पोंछती हुई एक अजीब सी मीठी सी चुभन का

एहसास कर रही थी।

कुछ देर में मम्मी ,पापा और भैया भी आ गए। 

एक दिन रागिनी की मम्मी गेट के बाहर खड़ी होकर उसके कॉलेज से आने का इंतजार कर रही थी। कोई 4 बजे होंगे। तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला और ....बहुत देर हो गईं -मम्मी ने कहा। हम्म्म्म- फाटक बंद हो गया था - रागिनी ने कहा।

विक्रम अपने घर से बाहर आ गया- रागिनी की मम्मी के पैर छूते हुए नमस्ते आंटी बोला। रागिनी की मम्मी बहुत भली थी। खुश रहिए - बोलते हुए बोली ,क्या नाम है आपका?

आँटी- विक्रम ....यहीं सामने रहता हूँ। उसने कहा। और कौन कौन हैं? मम्मी ने पूछा। कोई नहीं आँटी अकेला रहता हूँ- विक्रम ने कहा। 

रागिनी जैसे हिप्नोटाइज हुए जा रही थी। उसके मुँह से न तो कोई आवाज़ आ रही थी और न उसकी नज़र उठ रही थी। डर के मारे वो इधर उधर देख रही थी।

उसको डर था कि अगर उसकी नज़र विक्रम से मिल गई तो क्या होगा ?

उसने मम्मी से कहा- चलो न मॉम अंदर।


क्रमशः



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