जहाँ चाह, वहाँ राह
जहाँ चाह, वहाँ राह
यह कहानी है कृष्णनगर के रामभरोसे के इकलौते बेटे की। जिसका नाम तो था प्रसाद क्योंकि वो बहुत मनौती के बाद पैदा हुआ था। लेकिन उसके मोटे और स्थूल काया की वजह से सब उसे मोटूमल ही बुलाते थे। बेचारे की माँ उसे बचपन मे छोड़कर परलोक सिधार गई। दादी का वह बहुत ही लाडला था। अतः वह दिन भर खाते खाते मोटे होता चला जा रहा था। घर का कोई भी काम नही करता था। बेचारा राम भरोसे रोज उसे समझाता कि मेहनत जीवन में बहुत जरूरी है। पर मोटू ना ही शारीरिक मेहनत करता और ना ही मानसिक मेहनत...... क्योंकि वो विद्यालय ही नहीं जाता था। कभी मास्टर जी का दिया हुआ गृहकार्य पूरा नही करता।
समय बीतता गया, प्रसाद की दादी गुजर गई। बेचारे प्रसाद के खाने के लाले होने लगे। सारा घर बिखरा रहता। राम भरोसे दुकान देखता और घर भी यथा संभव संभालने की कोशिश करता।
आखिर मरता क्या न करता....
प्रसाद ने सबसे पहले घर का काम करना शुरू किया। पर उसने कभी कोई काम ही नहीं किया था, जल्दी ही थक गया। पर उसने भी जीवन मे मेहनत का सबक सीखने की ठान ली थी। धीरे धीरे उसका स्थूल शरीर अब एक आकार ले रहा था। वो घर और दुकान दोनों जिम्मेदारी संभाल रहा था। राम भरोसे अपने बेटे को मोटू मल से प्रसाद मे बदलते देख बहुत संतुष्ट रहने लगा। एक दिन उनके दुकान पर एक लंबा चौडा व्यक्ति आता है। सामान लेकर वह प्रसाद के शारीरिक गठन से प्रभावित होकर बोला " मै खेल व शारीरिक बल का प्रशिक्षक हूँ। तीन महीने बाद अपने राज्य स्तर की शरीरिक सौष्ठाव की प्रतियोगिता है। मै चाहता हूँ कि तुम इसमे हिस्सा लेकर अपने राज्य का नेतृत्व करो। " पिता पुत्र को तो मानो यकीं ही नही हो रहा था।
आखिर प्रसाद की मेहनत रंग लाई। वो अपने राज्य का विजेता घोषित हुआ और तो और उसे प्रशिक्षक की सरकारी नौकरी भी मिल गई।
कल तक लोग जिसे मोटू मल कहकर चिढ़ाते थे, आज लोग उसे प्रशिक्षक प्रसाद वर्मा के नाम से सम्मान से बुलाने लगे।
सच ही है,
जहाँ चाह, वहाँ राह.....