जाऊं तो कहाँ
जाऊं तो कहाँ
बहुत तेजी से भाग रही थी वो पर नन्हे कदम रफ्तार के कारण बार-बार डगमगा रहे थे ।
ना जाने कितनी बार गिरी, कितनी ही चोट लगी पर वो बिना रुके जल्द से जल्द घर पहुँच जाना चाहती थी ।
उसकी आँखों में वो मंज़र तैर रहा था जो कुछ समय पहले उसके साथ घटित हुआ था ।
चाची के कहने पर वो सौदा लेने बाज़ार गयी थी, वापस आते समय इंसान के रूप में छुपा एक भेड़िया उसे मिल गया था ।
उस भेड़िये की लाल-लाल आँखें घूर रही थी उसके समूचे जिस्म को मानो वह जिन्दा गोश्त हो...
बड़ी मुश्किल से अपने-आपको बचाकर भागी वह घर पर..
घर पर भी माँ का आँचल कहाँ था जो उसे हर मुसीबत से महफ़ूज कर लेता...अनाथ थी, दूर के रिश्तेदार की दया पर पल रही थी जहाँ जी तोड़ काम करने के बावजूद उसे आये दिन गालियाँ और मार-पीट मिलती थी, पर उस समय उसे वो नर्क ही सबसे सुरक्षित लग रहा था ।
घबराई बच्ची घर पहुँची तो चाची घर में मौजूद नहीं थी, सामने चाचा बैठा था ।
वो उसे अपने साथ घटी घटना बताने आगे बढ़ी पर सहसा उसके कदम ठिठक गये...
नशे में धुत्त चाचा की आखों में उसी भेड़िये का प्रतिबिम्ब तैर रहा था।