Harish Sharma

Children Stories

4.5  

Harish Sharma

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इमली की महक और राजन का सपना

इमली की महक और राजन का सपना

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राजन की उम्र तब शायद दस साल की रही होगी । गांव में खेलने के लिए सरकारी स्कूल का बड़ा मैदान था । यहां राजन और अन्य बच्चे कई तरह के खेल खेलते । चेतु के पिता जी ने उसे लकड़ी का बैट बनाकर दिया था । उसके पिता जी लकड़ी का काम करते थे । रबड़ की गेंद स्कूल के बाहर बनी गंगू की दुकान से ले ली जाती । 

कई बार गेंद टूट जाने पर जब गेंद खरीदने के पैसे न होते तो बच्चे साइकिल के टायर वाली ट्यूब से गेंद बना लिया करते । इस काम मे धीरू जो सातवीं कक्षा में पढ़ता था और उसका भाई राजू जो आठवीं में था,बड़े निपुण थे । राजन ने उनसे गेंद बनाना सीखा था और किताब पर गत्ते की जिल्द बाँधना भी । टायर की किसी खराब ट्यूब को वो कैंची से काट कर रबड़ बैंड जैसी कई रबडें बना लेते और फिर कागज तथा प्लास्टिक के लिफाफों को हाथों से दबा दबा कर गोल आकार में कर लेते । उन पर ट्यूब से बनी रबड़े एक एक करके चढ़ा देते । 

"लो बन गई गेंद,अब चाहे क्रिकेट खेलो, चाहे पिठ्ठू ।' राजू गेंद को उछालते हुए कहता ।

"लेकिन पिठ्ठू खेलते समय जिसकी पीठ पर पड़ी,आह आह करेगा । बहुत सख्त है,बाद में रोने मत लगना ।" धीरू ने बाकी बच्चों को कहा ।

" हम जोर से थोड़ा मारेंगें,धीरे धीरे मारना सब,जो जोर से मारेगा,उसको खेल से बाहर कर देना । " राजन ने बेफिक्री से कहा ।

" अरे ये चेतु को समझा दो पहले,इसे ही जोर से गेंद मारने की आदत है ।" धीरू ने फिर कहा ।

" अब जो भी ऐसा करेगा,उसे मैं पीटूंगा, फिर चाहे कोई हो,पहले ही बता दे रहा हूँ ।" राजू ने कमर पर हाथ रखकर कहा । 

स्कूल के मैदान के चारो तरफ बहुत से पेड़ लगे थे । नीम का बहुत बड़ा पेड़ था । इस पर मीठी निमोली लगती थीं । इसके एक तने की कोटर में तोते का घर था,जिसमे से उसके बच्चों की आवाज सुनने के लिए बच्चे पेड़ पर चढ़ जाते थे और कान लगाकर तोते के बच्चे की आवाजें सुनते । धीरू तो कई बार कोटर में हाथ डालकर बच्चे निकाल कर बाकियों को दिखाता और बाद में वापिस रख देता ।

" मेरी माँ कहती है कि पक्षियों के बच्चों को हाथ नही लगाते । ऐसा करने से आदमी की महक बच्चे से आने लगती है और फिर पक्षी अपने बच्चे को छोड़ देता है ।" चेतु ने कहा था ।

" अरे ऐसा कुछ नही है,देखो ये तोते तो रोज अपने बच्चों के पास आते हैं और मैं इन्हें कितनी बार हाथ लगा चुका हूँ ।" धीरू अकड़ कर कहता ।

फिर एक दिन तोते का बच्चा मरा हुआ पाया गया । वो नीम के पेड़ के नीचे ही मरा पड़ा था । अब चेतु की बात सच हो गई थी ।

"मैंने कहा था न,तुम सुनते तो हो नहीं, बेचारा बच्चा । अगर तुम उसे हाथ न लगाते तो शायद बच जाता । मुझे लग रहा है कि इसकी मां ने इसे छोड़ दिया होगा,तुम्हारी महक आ गई होगी इससे तोते की माँ को ।" चेतु अपनी बात को सही साबित करने में लगा था ।

स्कूल के खेल मैदान के एक किनारे पर गुलमोहर,बरगद और अमरूद के कुछ पेड़ भी थे । बरगद का पेड़ शायद बहुत पुराना था । उस की मोटी टहनी पर एक मोटी रस्सी डालकर और एक लकड़ी की फट्टी फंसाकर झूला बना दिया गया था । बच्चे कच्चे अमरूद का कसैला खट्टा स्वाद लेते और झूला झूलते । झूला झूलने के लिए ज्यादातर लड़कियाँ इसे स्कूल के दौरान प्रयोग करती । स्कूल में आधे दिन के बाद जो दोपहर के खाने के लिए आधे घण्टे की छुट्टी होती तब वे आचार के साथ लाये हुए पराठे खाकर या तो झूला झूलती या जमीन पर चौकोर लाइने खींचकर पीचो खेला करती । लड़को के लिए भी ये खेल मना नही था,पर इसे लड़कियों का खेल माना जाता । इसलिए लड़के बरगद के पेड़ के नीचे इमली के बीजों से देसी शतरंज खेलते । इसे बारह डीटी कहते थे,बारह खानों वाला खेल ।

इमली के बीज इधर उधर पड़े इक्कठे कर लेते । ज्यादातर बच्चे खासकर लड़कियाँ स्कूल के बाहर गंगू की दुकान से इमली के गोले या इमली खरीद लेतीं और नमक लगाकर चटखारे ले लेकर खातीं । कुछ बीज सम्भाल लेती ,कुछ फेंक देती । बरसात होती तो ये बीज स्कूल के मैदान में हरे हो जाते और खट्टे पत्तों वाले पौधे निकल आते ।

गंगू की दुकान स्कूल के बच्चों के लिए एक उपहार थी । यहां इलायची वाली टॉफी,पान वाली टाफी, इमली के खट्टे मीठे गोले, नमकीन बिस्किट,चूरन वाली पाइपें और न जाने क्या क्या समान मिलता जो बच्चों को बहुत पसंद था । उन दिनों चवन्नी अठन्नी में दस से बीस टाफी आती थी । जिसके पास एक रुपया होता,वो हवा में उड़ता फिरता । एक रुपये में चालीस कंचे मिलते थे और दो समोसे । अक्सर एक रुपया बच्चों के पास तब होता जब उनकी बुआ,मामा, मासी या कोई रिश्तेदार मिलने आता । वो बच्चों को एक रुपया शगुन दे जाता । फिर बच्चे मौज उड़ाते ।

राजन के पिता जी चाहते थे कि राजन पांचवी के बाद नवोदय स्कूल की परीक्षा दे ताकि अच्छे स्कूल में आगे पढ़ाई कर सके । इसके लिए उन्होंने राजन की ट्यूशन अपने एक मित्र की बहन के पास रख दी । राजन की इस ट्यूशन टीचर का नाम रीता मैडम था ।रीता मैडम राजन को अंग्रेजी के नए नए शब्द सिखाते,उसे स्पेलिंग सही करते और अंग्रेजी पाठ को पढ़ाते हुए उसके अर्थ याद करवाते । राजन पढ़ने में होशियार था । उसे रीता मैडम का पढ़ाया समझाया अच्छी तरह समझ आता ।

" गुड बॉय,राजन आज तो तुमने सारे स्पेलिंग सही लिखे हैं । अब कल से हम एस्से और लेटर सीखेंगें ।" मैडम उसे प्यार से पढ़ाती और शाबाश देती ।

स्कूल से आने के बाद राजन को ट्यूशन जाना होता और फिर उसके बाद वो स्कूल के खेल मैदान में जाकर धीरू,राजू,चेतु और दूसरे लड़को के साथ क्रिकेट,छुपन छुपाई तथा पिट्ठू खेलता । यही उसकी दिनचर्या बन गई थी ।

फिर कुछ कारणों से उसे ट्यूशन का समय सुबह का हो गया,ये उसके लिए ज्यादा बढ़िया था । अब वो शाम को जल्दी खेलने के लिए जा सकता था । एक दिन ट्यूशन पढ़ते समय उसने देखा कि रीता मैडम साथ वाले कमरे में अपनी मां से बात कर रही थी । उसे पता चला कि रीता मैडम की उम्र बढ़ रही है और घर वाले उनकी शादी को लेकर परेशान हैं ।रीता मैडम के घरवालों को किसी ज्योतिषी ने बताया कि वे चार शुक्रवार किसी पंडित के लड़के को खाना खिलाएं । इससे उनकी शादी का योग जल्दी बन जायेगा । अब राजन जब भी ट्यूशन पर होता । मैडम की मां या उनका कोई रिश्तेदार विवाह के विषय मे ही बात करते रहते ।

 राजन मन ही मन प्रार्थना करता,"हे ईश्वर ,मेरी इस सुंदर मैडम की शादी जल्द से जल्द करवा दें । क्योंकि नवोदय स्कूल में दाखिले के बाद तो मुझे वैसे भी यहां से दूर जाना पड़ेगा और मैं यहां ट्यूशन भी पढ़ने नही आ पाऊंगा । इसलिए मैडम की शादी भी जल्दी हो जाय ।"

शुक्रवार को अब राजन को छुट्टी होती,मैडम के घर पूजा होती थी और पंडित का लड़का उनके घर खाना खाने आता था । तीन शुक्रवार इसी तरह निकल चुके थे ।शुक्रवार के दिन राजन स्कूल से आते ही चाय पीकर स्कूल का काम करता और उसके बाद अपने दोस्तों के साथ खेलने चला जाता । उसने अपने सभी दोस्तों से रीता मैडम की बात की थी ।

"हमारी स्कूल टीचर ने कहा है कि अगर हम सब इक्कट्ठे होकर प्रार्थना करें तो भगवान हमारी इच्छा पूरी कर देते हैं ।" राजन ने बारह डीटी खेलते हुए धीरू से कहा ।

"ठीक है,फिर हम सब इकट्ठे होकर इस बात की प्रार्थना करते हैं कि हमे इतने कंचे,टाफियां और एक रुपये के सिक्के मिलें कि हमारी दोनों जेबें भर जाएं ।" चेतु बोला ।

"ओहो,बिल्ली को बस चूहे के ही सपने । मेरे कहने का मतलब ये है कि अगर हम रीता मैडम के लिए प्रार्थना करें तो उनकी शादी जल्दी हो जाएगी ।" राजन ने चेतु को खीझकर कहा ।

" ये सब कहने की बाते हैं । मेरे दादा जी कहते है कि जैसे मौसम आने पर अमरूद पकते है,आम के पेड़ पर आम लगते हैं,उसी तरह हमारे कई काम समय आने पर ही होते हैं ।" सबसे बड़े राजू ने सयाने की तरह कहा ।

" भैया लेकिन प्रार्थना करने में क्या जाता है?" राजन ने जैसे मिन्नत की ।

चारो बच्चों ने एक मिनट के लिए आंखे बंद करके कोई प्रार्थना की । राजन खुश हो गया । सब दोबारा खेल में लग गए ।

आज आखिरी शुक्रवार है । राजन की आज स्कूल में छुट्टी है । इसलिए वो अभी तक सोकर उठा नही है । छुट्टी वाले दिन ऐसा ही होता है,उसके माँ बाप भी उसे नही जगाते । राजन नींद में मुस्कुरा रहा है । वो सपना देख रहा है । सपने में उसने देखा कि दूर आकाश में पंखों वाले घोड़े पर बैठा एक आदमी धरती की तरफ आ रहा है । अरे वो तो रीता मैडम के घर की छत पर उतरा है । शायद इसी आदमी से रीता मैडम की शादी होगी । राजन रीता मैडम को बताने के लिए उनके घर की तरफ भागता है । तभी उसे माँ की आवाज सुनाई देती है ।

"राजन ,उठो बेटा, देखो ,सूरज सिर पर चढ़ आया है । चलो उठो ,चाय पियो ।"

"ओहो माँ, कितना अच्छा सपना आ रहा था,बीच मे ही उठा दिया ।" राजन आंखे मलते हुए बोला ।

"अच्छा तूँ सपना फिर देख लेना । चाय पीकर ,जल्दी से नहा धो ले,फिर पूरिया खाने जाना ।" माँ ने मुस्कुराकर कहा ।

"पूरियाँ, क्यो आज क्या तुम पूरियाँ बनाओगी ?"

"नहीँ, आज आप पंडित जी महाराज बनकर रीता मैडम के घर न्योता खाने जाओगे । " 

" मैं क्यों जाऊंगा,वो तो मन्दिर वाले पंडित जी का लड़का जाता है न ।" 

" अरे भाई ,वो बीमार है आज,उसकी दवा चल रही है,इसीलिए आज सुबह रीता मैडम के घर से तेरे लिए सन्देश आया है,और तुझे खाने के लिए बुलाया है बच्चू ।"

" कोई बात नही,मैं जाऊंगा,आज आखिरी शुक्रवार है,मैडम की पूजा का । फिर मैडम की शादी हो जाएगी । मैने सपने में भी देखा है उसे आते हुए........।" राजन कहते कहते जैसे रुक गया ।

"किसे देख लिए तूने आते हुए....???" माँ ने हैरानी से पूछा ।

"राजकुमार को.......।" राजन कहकर रसोई की तरफ चला गया ।

नहा धोकर राजन मैडम के घर पहुंच गया ।

"आइये आइये,पंडित जी महाराज,और सब ठीक ठाक...।" रीता मैडम के भाई ने मुस्कुराते हुए राजन से पूछा ।

राजन के हाथ पैर धुलाकर उसे एक लकड़ी के पीढ़े पर बैठाया गया । उसके रोली का तिलक लगाया गया और फिर मैडम ने उसके आगे खाने की थाली रखी ।

"वाह,कितनी सुंदर थाली है,खीर,गोभी की सूखी सब्जी,मटर पनीर और फूली हुई पूरियाँ । इसे तो देखकर ही मुंह मे पानी आने लगा ।" राजन ने मन ही मन ललचाते हुए कहा । 

उसे बहुत भूख लगी थी, और वो जल्दी जल्दी खाना चाहता था,पर उसे शर्म आ रही थी । वो धीरे धीरे खाने लगा ।

" तुम शर्माओ मत,लो मैं मुंह दूसरी तरफ कर लेती हूँ,जी भरकर खाओ,किसी चीज की जरूरत हो तो मांग लेना । " मैडम ने उसे प्यार से कहते हुए मुंह दूसरी ओर कर लिया । 

राजन ने पेट भरकर छका । खाना खत्म करने के बाद उसके हाथ वहीं बैठे बैठे धुलाये गए । फिर मैडम और उनके परिवार ने राजन के पैर छुए । आखिर अब उसके भीतर ही मन्नत पूरी करने वाले देवता थे । फिर उसे एक रुपये का सिक्का और केले दिए गए ।

"अच्छा बेटे,आज कोई खट्टी चीज मत खाना ।" कहकर मैडम ने उसे घर भेज दिया । 

राजन खुशी खुशी घर लौटा । उसे इस बात की खुशी थी कि अब उसकी प्यारी ट्यूशन टीचर की शादी हो जाएगी और अब एक रुपया उसकी जेब मे था जो उसे दक्षिणा में मिला था ।

घर आकर राजन ने केले एक तरफ रख दिये । भरपेट खाने के कारण उसे सुस्ती पड़ गई थी ।

"आ गए पंडित जी,और क्या क्या खाया,कितनी पूरियाँ खायीं ।" पिता जी ने राजन को मुस्कुराकर पूछा ।

" बहुत कुछ खाया पापा, अब तो मुझे नींद आ रही है,थोड़ा सो लूं, फिर उठकर स्कूल का काम करूंगा ।" कहकर राजन सोने चला गया ।

दोपहर कब बीत गई,पता ही न चला । राजन जब उठा तो घड़ी में साढ़े तीन बज रहे थे । माँ ने उसे चाय बना कर दी । फिर राजन स्कूल का काम करने बैठ गया । गणित के सवाल उसने पिता जी से समझ लिए । एक रुपये का सिक्का उसकी निक्कर की जेब मे उसे लगातार महसूस हो रहा था । उसने उसे खर्चने की अनेक योजनाएं बनाईं । उसे अपने दोस्तों के साथ मौज करते कई तस्वीरें दिमाग मे दिखने लगी । 

आखिरकार सही पांच बजे सब दोस्त स्कूल के खेल मैदान में इकठ्ठे हो गए । खूब खेले । आज एक दूसरे को पकड़ने और छूने का खेल खेला गया । भागते भागते सबके दम फूल गए । सब खाया पिया हजम हो गया और भूख चमक उठी । चारों बच्चों के पास कुल ढाई रुपये थे,जिनमे से एक रुपया केवल राजन का था । आज राजन दयावान बना हुआ था । सबने मिल कर गंगू की दुकान पर धावा बोला । टाफी,भुजिया,बिस्कुट, इमली गोले सब कुछ सबने अलग अलग खरीद लिया । 

सब बरगद और अमरूद के पेड़ों के नीचे चटखारे लेकर भुजिया ,बिस्कुट उड़ाने लगे । फिर टाफियां बटीं । सब हँसते मुस्कुराते अपनी मौज में डूबे थे । धीरू अमरूद के पत्तो में इमली गोला लपेट कर खाने लगा । उसने नया स्वाद ईजाद किया था जैसे । सब धीरू के इस नए स्वाद का आनन्द लेना चाहते थे । 

बच्चे नई बात की ओर जल्द आकर्षित होते हैं और नकल करने में सबसे तेज । धीरू की नकल करते हुए सबने अमरूद के पत्ते तोड़े और इमली को उसमें लपेटकर नमक लगाकर खाने लगे । खट्टा,नमकीट थोड़ा कड़वा से स्वाद सबके मुंह मे घुल गया ।

" वाह यार,आज तो मजा आ गया । राजन की जय । " राजू ने कहा ।

"मेरी जय नही,मैडम जी की जय कहो । आज उनके घर खाने पर एक रुपया मिला था,जिससे ये सब समान आया है ।" राजन ने चटखारे लेते हुए कहा ।

"हाँ हाँ, बिल्कुल,मैडम जी की जल्दी शादी हो । हम सब यही प्रार्थना करते हैं ।"

"यही प्रार्थना है ।" सब ने एक साथ कहा ।

अचानक एकदम जैसे राजन को कुछ याद आया । वो एक तरफ जाकर थूकने लगा । 

"अच्छा मैं चलता हूँ,मुझे फहर जाना है,कल मिलेंगें ।" राजन कहकर घर की ओर दौड़ पड़ा ।

"इसे एकदम से क्या हो गया?" सब सोचने लगे ।

राजन घर पहुंचकर पानी के कुल्ले करने लगा । जीभ साफ करने लगा । फिर रसोई में काम करती मां के पास दौड़ा ।

" माँ ..... मुझे आज मैडम ने कहा था कि कुछ खट्टा नही खाना,...... खट्टा खाने से क्या होता है ?" राजन ने झिझकते हुए पूछा ।

"बेटा हर पूजा,व्रत के कुछ नियम होते है,तेरी मैडम को भी ज्योतिषी ने बताया होगा,वही उसने तुझसे कह दिया.....क्या हुआ??" माँ ने खाना बनाते हुए कहा ।

" नही कुछ नही,बस वैसे ही.....।" राजन का सिर भारी होने लगा । वो वापस अपने कमरे में लौट आया और यूंही एक किताब उलटने पलटने लगा ।

" ओह, मै तो खट्टा कहा बैठा । अब मैडम का क्या होगा? क्या उनका व्रत टूट जाएगा ? पूजा बेकार जाएगी ? नही नही ....भगवान जी मुझे माफ़ करना । मेरी इस भूल के लिए मैडम जी को सजा मत देना । उनकी शादी जल्दी करना ।" राजन बड़बड़ाने लगा ।

बच्चे तो बच्चे होते हैं,क्या पता किस बात को दिल से लगा बैठें । राजन को भी उस रात भूख नही लगी । बड़ी मुश्किल से नींद आई । पँखो वाले घोड़े पर सवार आदमी का सपना भी नही आया । और रात बीत गई ।

अगले दिन सुबह राजन सुस्त था,गुमसुम,चुपचाप । स्कूल जाने से पहले वो नमक मिर्च वाला परांठा घी के साथ खाता था,पर आज उसे भूख नही थी ।

"अरे तू अच्छा मैडम के घर कल खाना खा के आया है,कितने दिनों का कहा आया,जो तुझे भूख नही है । बेटे स्कूल में पेट दर्द होगा,खाली पेट स्कूल मत जा ।" माँ ने समझाया । 

तभी पिता ही बाहर से घर आये । " ये देखो जी लड़के को कल से भूख नही लग रही,खाना नही कहा रहा ।" माँ ने पिता जी से कहा ।

"खाना खा भई, शाम को फिर लड्डू खाना । बड़े भागों वाला है अपना राजन तो ।" पिता जी ने मुस्कुराते हुए कहा ।

"क्यो जी,शाम को लड्डू किस खुशी में????" माँ ने हैरानी से पूछा ।

" अरे,अभी इसकी मैडम का भाई मिला था,उसने बताया कि हफ्ता पहले जहां रिश्ते की बात चली थी,उन्होंने कल शाम घर आकर रिश्ता पक्का कर दिया है ,कल शगुन भी दे गए हैं । अपना राजन तो कल बढ़िया आशीर्वाद दे आया है लगता हैं ।" 

पिता जी की बात सुनकर जैसे राजन के दिल से कोई बोझ उतर गया हो । उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई । 

" माँ ,अब जल्दी से परांठे दो,मुझे बहुत भूख लगी है ।"

 राजन की बात सुनकर सभी हँसने लगे ।राजन का सपना पूरा हो गया था ।



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