होली

होली

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होली का ही समय था ,शनिवार के दिन मिलने गए थे हम।जाने के वक्त उनके पैर छुए, पता नहीं क्यों उनको पलट के देखा, जैसे अंतिम विदाई हो उनकी।आँखों में कुछ धुंधलेपन सी सफेदी थी, जो मुझे अच्छी नहींं लगी। मन एक अनजान भय से कांप उठा पर हिम्मत नहीं हुई की इनसे कुछ साँझा करूँ।क्या करें महिलायें होती ही ऐसी हैं, हमेंशा अपनों की फ़िक्र,खो देने का एक अंजाना भय व्याप्त रहता है। ऐसे लगता है की आधी से ज्यादा उम्र फ़िक्र में ही निकल जाती है।

आज बहुत दिनों बाद पूरे घर की सफाई की,सोफे बेड अलमीरा सब का स्थान बदल नए तरीके से सजा रही थी! हालाँकि लोग ये काम दीवाली के समय करते हैं ,और मैं होली के समय कर रही!पर क्या करूं, दीवाली पूजन के समय तो साँस लेने की फुर्सत नहीं रहती।

खैर "दीदी ये देखो क्या है?" कमला ताई ने हाथ में दिया। "अरे ये तो एस डी कार्ड है, गुम गया था।" तुरन्त लैप्पी में डाली अरे वाह पूरी ट्रिप की वीडियो और ये होली ।की।।।।।।।पापाजी को देख बेतहाशा आँख से अश्रु निकलने लगे। एक एक यादें सामने आने लगीं।

"ये क्या तुम भी ना होली में कोई वीडियो बनाता है।"इनकी बातेंं ना मान मैं अपने काम में व्यस्त और इस बीच होली की रिकॉर्डिंग की।बेटी का उसके दादु के साथ मस्ती, रंगो से भरी होली।।। पापाजी के दोस्त आये, सब शूट कर रही थी, और फिर हमने एक फॅमिली पिक ली। पापाजी बोल रहे थे इनको "बहुत थक गया हूँ बेटा अब आराम करना चाहता हूँ ।" फिर इन्होंने ने कहा "चलिए पापाजी ,अब कोई परेशान नहीं करेगा मैं हूँ।आप आराम करिये।" ना जाने किस वक्त ये सब रिकार्ड हो गया आज ये सब देख को सहसा वो पल एकदम से सामने आ गया । पापाजी बोलते थे, पर आराम करना उनका स्वभाव नहीं था। हमेशा कुछ ना कुछ करते पूरी दोपहर मन्दिर को सजा दिए।कई बार रसोई की तरफ आये और मुझे काम करता देख बोलते बेटा कितना काम करती हो।अक्सर उनकी बातेंं प्रेरणास्पद होती थी । खुद पे गर्व होता ऐसे पिता तुल्य ससुरजी हो तो हर बेटी को ससुराल और मायका में कोई अंतर नजर नहीं आएगा।

30 मार्च 2013 होली के दो दिन बाद ना जाने कँहा से दो यमदूत की तरफ दो लोग आये, पापाजी को साथ ले गए, मुख्य अतिथि बनने उनका मन नहीं था या उन्हें आभास हो चूका था,किसी अनहोनी की और सब बिखर गया।घर पंहुच ॐ साईं के साथ अंतिम साँस ली। "अरे इतनी भीड़" मुझे देखते ही सब ने रास्ता दिया ।भीड़ के हटते ही "पापाजी" ।।।।मेरी चीख निकल गयी। सफ़ेद कपड़ो में लिपटे तभी इन्होंने मम्मीजी की तरफ इशारा किया पर मैं दौड़कर अंदर गयी। पापाजी को ढूंढने पर नहीं।। वो तो जा चुके थे।

कुछ पल को आँखे बन्द हुईं ,एक एक यादें सामने आने लग गयी। प्राची बेटा ,प्राची बेटा उनकी आवाज कान में गूंजने लग गए, हाँ बहु थी पर हमेशा बेटा शब्द का सम्बोधन करते थे। हर यादों के साथ बेतहासा अश्रु बह रहे थे। मेरी आगे की पढा़ई ,कैरियर मेरे भविष्य की उतनी ही चिंता जितना एक पिता अपने पुत्र के लिए करता है। उनका व्यक्तित्व काफी प्रेरणास्पद था। हर उलझन के जवाब उनके पास होते गर्व होता था, उन पर। वो भी कितना प्यार करते थे हमें ।मुझे इनको और मेरी बेटी तो मानो उनकी पूरी दुनिया हो ।

मेरे सर्विस के लिए काफी खुश थे। कॉउंसलिंग में जगह भी उन्होंने ने ही पसंद की फिर इनका जब पी एस सी निकला तो भी उनकी ही पसंद की जगह, सब उनके हिसाब से हो रहा था ।वो नहीं चाहते थे कि हम गांव में रहें। बच्ची के भविष्य के लिए हम कुछ किलोमीटर दूर शहर आ गए।

पढा़ई करते हुए शादी हो गयी, खाना बनाना गृहकार्य कुछ नहीं आता था पर इन सबके बावजूद बहुत लाड़ बहुत विश्वास था हम पर।

पापाजी "ब"की कहानी हमें भी बताइये तब उन्होंने बताया उनके जीवन में "ब" का बढ़ा महत्व था।इसलिए वो बेटी को बईया कहकर बुलाते थे। 'बिजापुरी' (मध्यप्रदेश )उनकी जन्मभूमि गृहग्राम था।माँ का चेहरा भी नहीं देखे थे जल्द ही पिता का साया भी उठ गया।फिर पढा़ई डाक्टर बनने तक का सफर,और पहली पोस्टिंग 'बदनारा'। ,' बीजा' और 'बेमेतरा' छत्तीसगढ़ में खुद का घर और इस तरह पूरा जीवन "ब" का सफर चलता रहा फिर बबुआ आया पहला नाती और उनकी लाड़ली बईया हाँ बेटी तो उनकी खुशियो का खजाना थी। राखी भी बईया ही बांधती थी।"ब"से एक विशेष लगाव सा हो गया था एक एक्तेफ़ाक की माँ की तरह "ब"अक्षर ने साथ निभाया।और अंतिम साँस बेरला में लिए

पिता का जाना कितना दुखद होता है ससुरजी थे ,पर देवतुल्य व्यक्तिव था। उनका अपनों के जाने में लोग आंसू बहाते है पर उनके लिए गैरों को भी फफक कर रोते देखा। जिनसे भी मिलते सब उनके अपने हो जाते ।एक एक क्रियाकलाप देखा, मृत्यु को नजदीक से ,कितने बार टूटते देखा इनको, जिसे भूल पाना नामुमकिन है मेरे लिए पर इस बात की तसल्ली है की, उनके जाने के पहले उन्होंने अपनी सारी इच्छायें पूरी कर ली थी। एक हफ्ते पहले ही "बालाघाट"से अपने भैया भाभी और पुरे कुटुंब से मिलकर आये।कुछ वक्त उन्होंने उस स्थान में बिताया जँहा उनके पिता की चिता जली थी। अपना स्कूल दोस्तों का घर सब हमें दिखाया, काफी खुश थे।पर उनके जाने के बाद ऐसा लगा जैसे हम बिखर गए पीपल के सूखे पत्ते की तरह ।इस तकलीफ से उबरना तो आज भी मुश्किल पर विश्वास है की उनका आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है।



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