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हम क्यों नहीं समझ पाते ?

हम क्यों नहीं समझ पाते ?

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आतंक का कोई धर्म नही होता, होती है तो सिर्फ तबाही और तबाही

आतंक मानवता के खिलाफ़ हैं , हम क्यों नहीं समझ पाते ?

मजहब नही सिखाता ,आपस मे बैर रखना सदियों से सुनते आ रहे हैं ,

आदमी धर्म से नहीं ,कर्म से महान बनता है ,हम क्यों नहीं समझ पाते ?


भूखे , प्यासे , कंगाल हैं। एक तरफ दुसरी तरफ मक्कार, मालामाल हैं।

कमजोर को शक्तिशाली खा जाते हैं , फिर आदमी और जानवर मे क्या फर्क हैं ?

मौत के सौदागर बैठे है ,धर्म के नामपर हाथ में बम खुद विनाश के तरफ चल पडे हैं

इतिहास गवाह हैं ... भगवान घर देर है अंधेर नहीं... अभी भी वक्त है.. सुधर जाओ


एक दुसरे के दिल मे शक का बीज हमने ही तो बोया है

क्यों नहीं धिक्कारता जमीर हमारा क्या वह सोया है?

बन बैठे एकदुसरे के जान के दुश्मन चंद सिक्कों के लिये

नही ले सकते हम चैन का सांस , सुकून की ज़िन्दगी नहीं जी सकते ?


क्यों नहीं समझ पाते हम प्यार की परीभाषा , जीने की अभिलाषा

क्या हम इतने अनपढ़ , गवार है... ढोंग कर रहे हैं सिर्फ़ अच्छाई का ?

सिर्फ़ आदमी को आदमी समझने की जरुरत है ,और कुछ नहीं

बस . खुशियां से भरा पड़ा है संसार सारा .. जीने की जरुरत है सिर्फ़ आदमी बनके...


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