Shakuntla Agarwal

Children Stories Drama

4.7  

Shakuntla Agarwal

Children Stories Drama

"गुनहगार कौन?"

"गुनहगार कौन?"

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मुर्गे की बाँग के साथ ही पूरा घर चलायेमान हो गया था | चाँदनी में नहाया पूरा शहर, नयी - नवेली दुल्हन की तरह लग रहा था, क्योंकि मन में उमँग - उल्लास हिलौरे ले रहीं थी | आज नवीन आई - आई - टी करने के बाद इंजीनियर बनकर घर लौट रहा था | यह १९९६ का ज़माना था, जब बहुत कम लोग आई - आई - टी इंजीनियर बनते थे | और जो बनते थे उनका और उनके माँ - बाप का सीना गर्व से फूलें नहीं समाता था और आज वही दिन था - इंजीनियर और फिर ९ लाख का पैकेज और एक अच्छी कंपनी में नौकरी | माँ और भाभी नवीन की मन - पसंद की चीजें बनानें में जुट गयी थी | चहचाहते पक्षियों की स्वर - लहरियाँ वातावरण को और आनन्दित कर रही थी | इतने में ही नवीन ने दस्तक दी | सभी घरवालों ने तहे - दिल से स्वागत किया और फिर चला किस्से - कहानियों का दौर | नवीन को चार - दिन बाद ही नौकरी ज्वाइन करनी थी, इसलिए वह चला गया |


हष्ट - पुष्ट, गोरा - चिट्टा सजीला नौजवान, व्यक्तित्व ऐसा कि किसी की भी नीयत डोल जाये | और हुआ भी वैसा ही | उसी की कम्पनी में नीलम काम करती थी | जवानी में होश कहाँ रहता हैं | और फिर आग और फूस का तो वैसे भी बैर है | दोनों के अल्हड़पन ने उन्हें एक - दूसरें के और करीब ला दिया था | नवीन दिल्ली में अकेला रहता था | दोनों मोटरसाइकिल पर दीवानों की तरह घूमने लगे | नीलम की स्वच्छंदता और घर - वालों की आज़ादी ने, आग में घी का काम किया | ऑफिस में भी उन दोनों के किस्से आम हो गये थे | नवीन महंगे तोहफे देना, होटलों में नीलम और नीलम के घरवालों को दावतें देना, पार्टी में साथ घूमना इत्यादि | नवीन नीलम के पीछे भँवरें की तरहा मँडराने लगा | जैसे शराबी को शराब का नशा होता है, वैसे ही नीलम का नशा, नवीन के सर चढ़कर बोलने लगा | 


एक दिन नीलम को ऑफिस में एक ऑफिसर के हाथों ज़लील होते देख, नवीन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसने हँगामा खड़ा कर दिया | उसका परिणाम यह हुआ कि नवीन को नौकरी से हाथ धोना पड़ा | जिस नीलम के कारण, नवीन को अपनी नौकरी गँवानी पड़ी थी, उसकी नज़रें अब बदल चुकी थी | क्योंकि नवीन अब महंगे तोहफे, होटलों में डिनर, और क्लबों में डांस नहीं करवा सकता था | नीलम और उसके घर - वालों ने नवीन से अब कन्नी काट ली थी | लेकिन नवीन नीलम से बेइन्तहां मोहब्बत करता था | एक दिन नवीन ने नीलम को अकेले में पकड़ा और कहा कि मैं वही नवीन हूँ, जिसे तुम अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी | 


तो नीलम कहने लगी - कौन नवीन ? मैं तुम्हें नहीं जानती | तुम्हारें जैसे कितने आते और जाते रहते हैं | ज़्यादा बद्तमीज़ी की तो मैं शोर मचा दूँगी | फिर जो तुम्हारा हाश्य होगा, उसके ज़िम्मेदार तुम खुद होगे | नीलम के प्रति दीवानगी ने नवीन के दिमाग पर असर डालना शुरू कर दिया था | वह दीवानों की भाँति नीलम के घर और ऑफिस के आस - पास मँडराने लगा | नीलम माल बटोर कर अब नवीन की ज़िन्दगी से जा चुकी थी | और नवीन पागलपन के साथ गलियों और सड़कों पर उसे ढूँढ़ने के लिये फिरने लगा | किसी भी गाड़ी को आते - जाते देखता, तो उसे हाथ देकर रुकवाकर पूछता कि - क्या तुमनें मेरी नीलम को देखा है ? नवीन का पागलपन इतना बढ़ा कि उसे पागलखाने में दाखिल करवाकर बिजली के शोर्ट लगवाने पड़े, परन्तु उसका पागलपन कम नहीं हुआ | आख़िरकार संस्कारवान घर का लड़का नवीन, गलियों और सड़कों पर भिखारियों जैसे ठोकर खाता रहा और पुलिस ने एक दिन लावारिस लाश समझकर उसकी अंत्येष्टि भी कर दी | 


प्यार को खेल क्यों समझा जाने लगा है ? क्या किसी भी लड़के - लड़की को यह शोभा देता है कि दूसरें इन्सान को खिलौना बनाकर खेलें और फिर फेंक दे ? इन्सान खिलौना नहीं हैं, यह समझना होगा | कपड़ों की तरह बॉयफ्रैंड - गर्लफ्रैंड बदलना "शकुन" भारतीय संस्कृति के खिलाफ है | नीलम की बेवफाई की कीमत नवीन को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी | 


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