गुबरेले
गुबरेले
"यह देखो दोनों मिल कर ले जा रहें है ! " बच्चा चिल्लाया ! बच्चा माने उदय चाचा का सबसे बड़ा लड़का ! उसका असली नाम तो बलवंत है ! पर शायद ही कोई उसको बलवंत नाम से बुलाता हो? एक पिछली टाँगों से धकेल रहा है, (बड़ी वाली ) और दूसरा छोटी टाँगों से खींच रहा है ! बच्चे ने अपनी खोज सब को बतायी !
मीरा, शालू और पंडित तीनों भी देखने लगे ! दोनों गुबरेले कंकड़ों से बचते हुए गोबर की गोली सफ़ाई से ले जा रहे हैं। ऊबड़ / खाबड़ घास भरे रास्ते में पूरी लगन से अपने काम में जुटे थे। मानो गोबर की वो गोली ही दुनिया चलाने के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ हो।
“ अरे एक इधर भी ले जा रहा है , अकेले।” बच्चा जोश से बोला।
सभी ध्यान से घास के बीच देखने लगे। “ इधर भी दो हैं, पंडित बोला।”
एक ही रास्ते पर तीन जोड़े आगे / पीछे अपनी - अपनी गोबर की गोली लिए जा रहे थे। “ सबसे आगे वाले मेरे, पंडित बोला। आओ देखते हैं कौन जीतता है ? दूसरे नम्बर का मेरा मीरा बोली। मेरा और शालू का तीसरा बच्चा बोला।
चलो - चलो पंडित ने मानो अपनी टीम को जोश दिलाया। पंडित एक छोटी सी लकड़ी लेकर ख़ुद गोबर की गोली को उसी दिशा में धकेलने लगा। पर यह क्या जितना वो आगे धकेलता गुबरेले फिर से उसे वापिस ला कर अपने तय रास्ते से ले जाते। पंडित चिड़चिड़ा गया , ज़िद में फिर से गोली को आगे धकेला। नतीजा फिर वही। तब तक मीरा और शालू के गुबरेले आगे निकल गए। पंडित ने लकड़ी मार कर अपने गुबरेलों की गोली तोड़ दी। दोनों गुबरेले थोड़ी देर दिशा विहीन से इधर - उधर ढूँढते रहे। फिर वापिस गोबर के ढेर पर आकर पिछले पैरों से गोबर की गोलियाँ बनाने लगे।
“ अरे यहाँ तो पूरा ढेर लगा है , कितना सुंदर है। ” मीरा ख़ुशी से मानो पागल हो गयी। उसकी जोड़ी अपने बिल के पास पहुँच गयी थी। सारी गोलियों को दोनों सलीके से सजाने लगे। किसी ख़ास मेहमान के लिए मानो पार्टी की तैयारी हो रही हो।
दीदी। यह गुबरेले इसी मौसम में गोबर की गोलियाँ क्यों बनाते हैं ? गोबर तो साल भर मिलता है। शालू ने मीरा की तरफ़ देखा।
” इनका मेला होता होगा, इस मौसम में। जैसे बरसात में हम लोगों के गाँव में हरियाली का मेला लगता है ना, वैसा ही। मीरा दादी अम्मा की तरह बोली।
हाँ !! शालू की आँखें चमकने लगी, मैं तो मेले में जलेबी खाऊँगी और एक गुड़िया भी लूँगी नीले बालों वाली। पर दीदी इन गुबरेलों के मेले में मिठाई नहीं मिलती क्या ?
आओ झूला झुलें। पंडित चिल्लाया। मैंने और बच्चा ने झूला बना लिया।
आते हैं! मीरा ने शालू को खींचा चल।
पर दीदी बताओ, इन बेचारों के पास न गुड़िया, न मिठाइयाँ। कैसा अजीब लगता होगा इनको।
अरी पागल चल। इनकी मिठाई गोबर ही है, गुबरेलें है ना। चल झूला झुलें।
बेचारे! शालू दुःखी थी, उन काले गुबरेलों के लिए।