गणपति बप्पा मौर्या (14)
गणपति बप्पा मौर्या (14)
हमारे निवास स्थान नागपुर में प्रतिवर्ष अगस्त/सितम्बर में गणपति की स्थापना की जाती है। ऐसा हम वर्षों से करते आ रहे है और यह हमारी परंपरा बन चुकी है।
हमारा मंझला पुत्र, मूर्तिकार से कहता है, "काका, गणपति बप्पा की मूर्ति अच्छी तरह देख लो, इसी तरह बनानी है। फोटो आपके मोबाइल में भेज दिया है। पिछली बार की तरह बिगाड़ना नहीं है। नहीं तो मैं दूसरी जगह देख लूंगा।”
मूर्तिकार, “साहब इतने साल हो गए। तुम जब भी मूर्ति बनाने का आर्डर देते हो, हर साल यही कहते हो। बोलो तो, मैं क्या आपके घर की मूर्ति बनाऊंगा और बिगाड़ दूंगा। कभी हुआ है ऐसा?"
दोनों ही इस बात पर हंसने लगे। गणपति उत्सव हमारे घर में, विशेष रूप से मनाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य 10 दिनों तक गणपति की सेवा, पूजा-अर्चना, भजन स्थापना से लेकर विदाई तक, श्रद्धापूर्वक सहभागिता करते है।
यथायोग्य उपवास, भक्ति, गणेश जी की महिमा का बखान, अनवरत चलते रहता है। इसमे मोहल्ले वाले, रिश्तेदार, मित्र, परिचित सभी शामिल रहते है।
मंझले पुत्र ने कहा, "पापाजी मैं 2-3 दिनों के लिए, छोटे के पास बेंगलोर जाने वाला हूँ। वहीं से मैं गणपति के साजो शृंगार की सामग्री लेकर आऊंगा। नागपुर की अपेक्षा बेंगलोर में वेरायटी और डिजाइन ज्यादा अच्छी होती है।”
मैंने कहा, “बेंगलोर में तुम्हारी मम्मी भी है। उन्हे भी साथ ले जाना। उनकी पसंद बहुत उम्दा है।”
हमारे यहाँ गणपति जी की स्थापना गाजे-बाजे के साथ की जाती है। मोहल्ले के लोग भी शामिल होते है। स्थापना हमारे पारिवारिक पंडित करते है। गणपति जी का स्टेज, लाइटिंग की विधि वगैरह ज्येष्ठ पुत्र व्यवस्था देखते है।
बहुयें और पत्नि भजन-पूजन, आरती की व्यवस्था प्रतिदिन संभालती है। परंपरागत स्थापना के 8वें दिन की शाम गणपति के महाप्रसाद का भंडारा घर पर होता है। शाम से देर रात तक, भोजन करने लोग आते रहते।
हमारा छोटा पुत्र और बहू, नाती प्रतिवर्ष अवकाश लेकर बेंगलोर से नागपुर आते है। पूरा परिवार गणपति में एकत्रित रहता है। मैने इस बार महाराज (भोजन तैयार करने वाला आचारी) को मेनू बताने से पहले बुलवाया और कहा, "देखिये पंडित जी, तेल और मिर्ची का उपयोग जरा कम कीजिए। पिछली बार एक सब्ज तीखी थी। अब ऐसा नहीं होना चाहिए।”
महाराज ने कहा, "साहब आप निश्चिंत रहिए। लड़के ने एक सब्जी बना दिया था। अब मैं स्वयं ही भोजन की तैयारी करवाऊंगा।”
गणपति के भोजन में हम भोजन के साथ गणपति की कृपा भी लोगों को बांटते है। विसर्जन भी प्रसन्न होकर करते है। इसी आशा के साथ कि प्रथम पूज्य गणेश अगले वर्ष हमारे घर मेहमान बनकर आयेंगे। हम कहते भी है - गणपति बप्पा मौर्या
पुढ़च्या वर्षी लवकर या।।
