गणित वाले मासाब

गणित वाले मासाब

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यह बात उन दिनों की है जब हम नौंवी कक्षा में पढ़ते थे। उस दिन क्लास में एक लड़का घूम गया। घूम क्या गया! घूमा दिया गया। हुआ ये कि हमारे गणित के मासाब ने एक लड़के से उन्नीस का पहाड़ा पूछ दिया। लड़के ने उन्नीस चैक्को बहत्तर कह दिया। बस फिर क्या था! मासाब ने पहले तो हाथों से उसके बाल पकड़े और उसे गोल-गोल रिटा दिया। फिर उसकी पंचमुक्की पूजा की। फिर अचानक द्विलत्ती पूजा शुरू कर दी। पूजा के बाद मासाब ने उसके सामने एक लंबा-चौड़ा उपदेश भी पेल दिया: ‘‘ससुरा आइ जात है गणित पढ़ने। उन्नीस का पहाड़ा याद नहीं, गणित पढ़ेंगे। अब तुम ही बनोगे गणितज्ञ! अब कितना समझाया कि कला लेइ लो कला लेइ लो! नहीं हम गणित पढ़ेगा। अब होइगा ऐसे ही पास! तुम्हारा पिताजी-माताजी ने पढ़ा कभी गणित। का तुम पढ़ेगा। साइंस तुम्हार बस का रोग नाहीं, हम कितना कहें लेकिन हम बेकार में बके जात हैं। अरे जब हम तुम्हार उमर का था, तो बी0एस0सी0 की गणित पढ़ गवा था। ऐसे ही नहीं पास हो जाते बिटवा गणित में। जब प्रेमचंद पास नहीं हुए गणितवा में तो तू का चीज है। प्रेमचंद कौन थे? जानत है ? प्रेमचंद थे कथासम्राट। हिंदी में कहानी और उपन्यासों की खूब किताबें लिखी लेकिन बिचारे गणितवा में फेल होई गये। तो ई होती है गणित। अब अपना घर खाके समझाई का हम?’’ दरअसल में हमारे गणित वाले मासाब बिहार के थे। उनकी बातें सुनकर सभी के पेट में हंसी कूद पड़ती थी लेकिन मार के डर से किसी के होठों तक नहीं आ पाती थी। इस मार और उपदेश का उस विद्यार्थी पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने वाकई में उच्च गणित विषय छोड़ दिया और प्रारंभिक गणित ले ली। इस घटना का मुझ पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। मैंने मन में निश्चय कर लिया कि इन मासाब की क्लास में बोलूंगा तो सही बोलूंगा अन्यथा बोलूंगा ही नहीं।


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