हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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गम और तन्हाई

गम और तन्हाई

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पता नहीं ये प्रतिलिपि जी को अचानक क्या सूझा जो "तन्हाई" को लेकर बैठ गयी । अगर कुछ लेना ही था तो राम नाम ही ले लेती । यदि राम नाम से बैर हो तो "जाम" ही ले लेती । मगर मोहतरमा तन्हाई लेकर बैठी । शायद उन्हें यह मालूम नहीं है कि तन्हाई कोई "सिंगल वूमन" तो है नहीं जिसे कोई भी लेकर बैठ जाये । तन्हाई तो विवाहिता स्त्री है और एक विवाहिता स्त्री विवाह के पश्चात अकेली कहीं आती जाती नहीं है । अगर जाती भी है तो उसे उतना सम्मान नहीं मिलता है । वैसे ही पुरुष के साथ होता है । 

तन्हाई का पति "गम" थोड़ा उदास है । जैसे कि उसकी जान निकल गयी हो । और उदास हो भी क्यों नहीं । दोनों का चोली दामन का साथ जो है । जहाँ गम हों वहां तन्हाई अवश्य होगी । दोनों हमेशा साथ रहते हैं । जैसे सूरज और किरण या धरती और गगन । अब ये मत पूछना कि इनका विवाह कब हुआ था ? कुछ पता नहीं लेकिन मैं तो देख रहा हूँ कि सदियों से दोनों का साथ बना हुआ है । इनमें कभी खटपट भी नहीं होती है । किसी ने इनको लड़ते झगड़ते भी नहीं देखा है । ना कभी रूठते मनाते देखा और ना कभी शिकवे शिकायत करते हुये देखा । पता नहीं किस मिट्टी के बने हैं दोनों । काश वह मिट्टी हमको भी मिल जाये तो हमारा झगड़ा भी सुलझ जाये । 

पता नहीं वह कौन सा पंडित था जिसने इन दोनों का शुभ विवाह संपन्न करवाया । ऐसे पंडित अगर सबको मिल जाए तो जिंदगी की सारी समस्याएं ही खत्म हो जायें । जिस प्रकार गम और तन्हाई हिलमिल कर रहते हैं उसी तरह सभी लोग भी अपने अपने पति पत्नियों के संग हिलमिल कर रहें । मगर सबको वैसी मिट्टी और वैसा पंडित कहाँ नसीब होता है ? इसीलिए तो इंसान गमों से खेलता है और तन्हाइयों में रोता है । 

पति पत्नियों को लड़ते झगड़ते देखकर एक दिन तन्हाई ने गम से पूछ ही लिया "सुनो जी , धरती पर सब पति पत्नी लड़ते झगड़ते हैं । कुछ तो इतने महान होते हैं कि सुहाग रात को ही लड़ पड़ते हैं । हमको इतनी शताब्दियां हो गयी साथ रहते रहते लेकिन हम लोग तो आज तक नहीं लड़े कभी भी ? क्या कारण है इसका " ? 

गम ने अपनी गंभीर वाणी में कहा "मनुष्य के पास लड़ने झगड़ने का बहुत सारा मसाला है । धन , दौलत , सुंदरता, काम काज , रिश्तेदार, संबंधी, यार दोस्त , पड़ोसन , ऑफिस, सैक्रेटरी, कामवाली बाई और न जाने क्या क्या ? अब तो सोशल मीडिया भी बहुत बड़ा कारण हो गया है झगड़ने का । अपने पास क्या है ? फिर हम क्यों लड़ें" ? 

"जी , सही कहा आपने । लड़ने के लिए तो धरती के लोग ही बहुत हैं । उनको तो लड़ने का बस एक बहाना चाहिए । धर्म, जाति, लिंग, रंग, भाषा, क्षेत्रीयता, रीति रिवाज, परंपराएं, काम धंधा वगैरह वगैरह । और तो और पति पत्नी तो सब्जी क्या बनेगी, इसी पर लड़ लेते हैं । पर एक बात तो बताओ कि लड़ने के बाद फिर दोनों क्या करते हैं" ?  

" लड़ने के बाद एक ही काम करते हैं ये लोग । ये लोग एक दूसरे से अलग अलग हो जाते हैं । गम के सागर में डूब जाते हैं । तन्हाई के अंधेरों में खो जाते हैं । अकेले अकेले घुटते रहते हैं । एक दूसरे को कोसते रहते हैं । पुरुष तो अपनी मंजिल शराब में ढूंढता है । शाम होते ही जाम में डूब जाता है । अपने सारे गम शराब के प्याले में उंडेलकर पी जाता है । इतनी पी लेता है कि वह वहीं पर धड़ाम हो जाता है । 

महिलाएँ कुछ अलग करती हैं । वे अपने गम को अपने अहसासों में डुबाकर उन्हें शब्दों की आकृति बनाकर कागज पर उतार देती हैं । प्रतिलिपि जैसे एप ढ़ूंढ लेती हैं और अपने सारे गमों को कविता , गजल , मुक्तक , कहानियों , लेखों में उतारकर हल्की हो जाती हैं । प्रतिलिपि पर ऐसी बहुत सी महिलाएं मिल जाती हैं जो उसी की तरह दुखी, उदास , व्यथित होती हैं और गमों के समुद्र में डूबी रहती हैं । फिर वे अपना एक ग्रुप बना लेती हैं और एक दूसरे को ढ़ांढस बंधाने का काम करती हैं । इस तरह गम से दूर और तन्हाई से परे जाने की कोशिश करती हैं । यही फर्क है मर्द और औरत में । औरत हमेशा कुछ न कुछ रचनात्मक काम ही करती है जबकि मर्द हमेशा ऐसा नहीं करते है" । 

"अरे वाह । कितनी खूबसूरती के साथ बयां की है आपने दोनों की प्रवृत्ति । बहुत खूब । अब अपना भी समय हो रहा है चलने का । किसी सिंगल मैन या वूमैन को ढूंढते हैं और फिर उसको आबाद करते हैं गमों और तन्हाइयों से" । और वे दोनों खिलखिलाकर हंसते हुये चल दिये । 


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