Priyanka Gupta

Children Stories Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Children Stories Inspirational

गलती स्वीकार करना

गलती स्वीकार करना

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"मम्मा ,मुझे नानी ने आज फिंगर में जो रिंग पहनाई थी ;खेलते हुए कहीं गिर गयी । ", चैताली ने घर पर पहुँचते ही अपनी मम्मी छाया से कहा । 

"बेटा ,इसीलिए तो आपको कहा था कि रिंग पहनकर मत जाओ । ",छाया ने धैर्य के साथ कहा । छाया चैताली को अपनी गलतियाँ स्वीकार करना सिखाने की कोशिश करती थी । वह उस पर नाराज़गी दिखाने या गुस्सा करने की जगह पर उसे प्यार से उसकी गल्ती बताती थी।यही कारण था कि चैताली ने घर पर आते ही अपनी मम्मी को सच बताया ।

छाया का मानना था कि अपनी गलती स्वीकार करना एक बहुत बड़ी बात है । बच्चे डाँट या मार के डर से सच नहीं बताते । सच हमेशा कड़वा ही होता है ;जिसे हम लोग पचा भी नहीं पाते । 

छाया जब छोटी थी ;तब एक दिन उसकी दादी ने दोनों हाथों में उसे चाँदी के कड़े पहना दिए थे । 7 वर्षीय छाया अपने 1 वर्षीय छोटे भाई को लेकर घर के बाहर बैठी हुई थी । गांव में उनके घर के सामने ही पीपल का पेड़ लगा हुआ था । आसपास के घरों के लोग ,बच्चे आदि सभी वहीं बैठे रहते थे । छाया को बच्चों के साथ खेलना था और भाई को भी सम्हालना था । भाई रोये नहीं ,इसीलिए उसने अपने हाथों से कड़े निकालकर भाई को खेलने के लिए दे दिए । भाई कड़ों से खेलने लगा और छाया बच्चों के साथ । कुछ देर बाद ,छाया अपने भाई के पास आयी तो देखा कि कड़े नदारद थे । शायद किसी ने बच्चे के हाथ से ले लिए थे । 

छाया बहुत डर गयी थी ;उसकी माँ और दादी दोनों ही उसे खूब डाँटेंगे । फिर साथ ही खेल रही दीदी ने सलाह दी कि ,"तू घर पर कुछ मत बताना । "

छाया ने घर पर किसी को कुछ नहीं बताया । दादी ने सोचा कि छाया ने कड़े अपनी माँ को दे दिए हैं । माँ ने सोचा कि छाया ने कड़े अपनी दादी को दे दिए हैं । दो -तीन बाद दादी ने छाया की माँ से कहा कि ,"छाया की माँ ,चांदी के कड़े तो दे दे । दूसरे गहनों के साथ तिजोरी में सम्हालकर रख दूँ । "

"अम्माजी ,कड़े तो आप ही के पास होंगे । ",छाया की माँ के जवाब से दादी हैरान थी । दादी और माँ दोनों के पास ही कड़े नहीं थे । तब दोनों ने छाया को बुलाकर पूछा ,छाया ने सारी घटना ज्यों की त्यों सुना दी । 

"छोरी ,डाँट तो तुझे अभी भी पड़ेगी । अगर उसी दिन बता देती तो कम से कम कड़े मिल तो जाते । ",दादी ने कहा । छाया को डाँट भी पड़ी ;लेकिन यह घटना छाया के बाल मन प् ऐसी अंकित हुई कि उसे आज तक भी याद है ।

इस घटना से सीख लेते हुए ,उसने अपनी बेटी चैताली को अपनी गलती स्वीकार करना सिखाने के प्रयास किये । आज चैताली ने छाया को सब कुछ सच -सच बताया । 

"सॉरी ,मम्मा । ",चैताली ने नज़रें झुकाते हुए कहा । 

"कोई बात नहीं । चलो ,एक बार जहाँ आप खेल रहे थे ;वहाँ ढूँढकर आ जाते हैं । ",ऐसा कहकर चैताली और छाया दोनों घर से बाहर निकल गए । उनके घर के सामने स्थित पार्क में ही चैताली खेल रही थी ।दोनों ने बहुत ढूँढा ,लेकिन रिंग नहीं मिली । 

"सॉरी ,मम्मा । ",चैताली बार -बार कहे जा रही थी । 

"बेटा आपने गल्ती की है तो पनिशमेंट भी मिलेगा । ",छाया ने घर लौटते हुए रास्ते में चैताली से कहा । 

"क्या पनिशमेंट मम्मा ?",चैताली ने पूछा । 

"आपने नानी का दिया हुआ गिफ्ट खो दिया । अब आपको अपने खिलौनों में से एक खिलौना अंजू को गिफ्ट करना होगा । ",छाया ने सोचने की मुद्रा में कहा । अंजू छाया के यहाँ आने वाली घेरलू सहायिका सुमन की बेटी थी । 

"ठीक है ,मम्मा । ",ऐसा कहकर चैताली वहाँ से चली गयी थी । 

अगले दिन चैताली ने अपना टेडी बीयर सुमन को देते हुए कहा ,"आंटी ,यह आप अंजू के लिए ले जाना । "

चैताली की बात सुनकर छाया मन ही मन मुस्कुरा रही थी । उसकी बेटी गलती स्वीकारना ही नहीं ,बल्कि सुधारना भी सीख रही थी । 



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