गाँव वाला बरगद

गाँव वाला बरगद

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अभिनव पापा के साथ आज बहुत दिनों बाद गाँव आया है। पापा को जमीन और गाँव के घर के सिलसिले में कुछ काम था। पापा को जब भी गाँव आना होता है वो अभिनव को जरूर साथ ले के जाते हैं। अभिनव को भी बहुत ख़ुशी होती है, जब उसे पता चलता है कि गाँव जाना है। वो अपनी लूडो, शतरंज और बैटबॉल भी साथ लेकर जाता है।

 इस बार पापा गाँव में दो तीन दिन रहेंगे| चाचा जी के बड़े घर में जाकर अभिनव को बड़ा मजा आता हैं। आये भी क्यों नहीं, ये खुला पन ही तो उसे चाहिए, जिसके लिए वो शहर में तरस जाता है। खेलने का मैंदान तो शहर में हैं नहीं, कभी कभार पापा उसे अपने साथ पार्क ले जाते हैं वरना गली में ही सब बच्चे खेलते हैं। गली में खेलने का क्या मजा, जब कभी अभिनव मिंकू की गेंद पर तेज शाट लगता है, गेंद कर्नल अंकल के घर चली जाती है। कर्नल अंकल के घर से बाल बड़ी मुश्किल से आती है। उनके घर में एक बड़ा कुत्ता है। सब उससे डरते है, कोई उनके घर में घुसने की हिम्मत नहीं करता। एक बार एक चोर घुसा तो कुत्ते ने फट से पकड़ लिया था और पुलिस आने तक उसे छोड़ा नहीं। वो सिर्फ कर्नल अंकल का कहना मानता है, इसीलिए जब तक कर्नल अंकल ने उसे चोर की टांग छोड़ने के लिए नहीं कहा, कुत्ते ने छोड़ी भी नहीं। इसीलिए कर्नल अंकल के घर के अंदर जाने से सब डरते हैं । 'अंकल बाल दे दो,अंकल बाल दे दो' सब पुकारते है,पर वो सुनते ही नही । बस कभी कभार जब उनका मूड अच्छा होता है,सब बाल उठाकर अपने पड़ोसी को दे देते है । तब जाकर कहीं बाल वापस मिलतीं हैं । यही कारण है कि खेलने की जगह कम होने से कई बार खेलने का मजा खराब हो जाता है । इसीलिए अब लूडो और कैरम बोर्ड का जोर है,पर उसमे भागने कूदने का मजा कहाँ?

चाचा के घर के साथ उनका एक बड़ा बाग़ है, उसमे नीम, आम, अमरुद के कितने पेड़ लगे हैं और उनमे सबसे बड़ा है एक बरगद का पेड़ जिसके नीचे अभिनव और उसके चाचा का बेटा जीतू और उसके साथी सब इकठ्ठे होकर खेला करते हैं। कितना मजा आता है। बरगद की एक मोटी टहनी पर चाचा जी ने रस्से वाला झूला डलवाया है, इस पर अभिनव और जीतू खूब झूला झूलते हैं।


यह सब सोचते हुए अभिनव कार में ही सो गया। उसकी नींद तब खुली जब चाचा ने उसे आवाज दी, " अरे शैतान, तुझे आज कैसे नींद आ गई। चल उठ ,वो जीतू भी सुबह से ही बैट बाल लेकर तेरा इन्तजार कर रहा है। चल पहले कुछ खा पी ले, फिर सब मिल कर बाग़ में खेलने जाना।"

अभिनव ने आँखे मलते हुए चाचा जी के पैर छुए। जीतू से हाथ मिलाया और सब हँसते मुस्कुराते हुए घर के अंदर चले गए। चाची ने उसे चाय के साथ खोये की पिन्नी और नमकपारे दिए। दोनों अभिनव को बहुत पसंद थी। जीतू और उसने शर्त लगाकर दो दो पिन्नी खायीं। वे जल्दी से खा पीकर बरगद के पेड़ के नीचे जाकर खेलेंगें।

सभी बच्चे उनके आने से पहले ही बाग़ में आ चुके थे| जुगल, सचिन, किशनू, काली, नन्नू और मोहित। कितना अच्छा लग रहा था अभिनव को। सबने अभिनव से उसका हाल चाल पूछा| अभी मौसम में गर्मी जयादा थी, पर बरगद के पेड़ के नीचे आते ही जैसे ठंडी हवा के झोके आने लगे थे। कितनी ठंडी छाव थी बरगद की | दिन में तो सब यही आकर आराम करने लगते है जब लाईट चली जाती हैं। बरगद के पेड़ के चारों और चबूतरा बना है। उस पर बाग़ का माली सो रहा है।

 " उसे सारी रात जागकर बाग़ की चौकीदारी करनी होती होगी इसीलिए वो दिन में सोता है। शहर में भी तो अभिनव की कालोनी में चौंकीदार है, वो भी रात को कभी सीटी बजता है कभी लाठी पटकता है। पर दिन में सोया रहता हैं, ये माली अंकल भी ऐसे ही काम करते होंगे।"अभिनव ने अंदाजा लगाया था।

" माली अंकल बहुत बहादुर है, तभी तो रात को इस घने बाग़ में पहरा देता है। वरना इस बरगद पर तो मन्नी का भूत रहता है, सब डरते है उससे, रात को कोई इधर नहीं आता।"किष्नु ने धीरे से अभिनव को बताया।

" मन्नी कौन, उसका भूत क्यों यहां रहता हैं ?" अभिनव ने जिज्ञासा से पुछा।

" अरे यार मन्नी अपने पड़ोस के बिरजू चाचा की लड़की थी। उसे झूला झूलने का बहुत शौंक था। सारी दुपहर इसी बरगद की टहनी पर खूब ऊंचा ऊंचा झूला झूला करती थी। बस एक दिन झूला झूलते झूलते उसका पाँव झूले फिसल गया और सर जमीन पर टकराने से उस बेचारी के मौत हो गयी। पर ये बात बहुत पुरानी है, मैं खुद पिताजी के साथ कितनी बार रात को यहाँ चक्कर लगाने आया हूँ। पिता जी ने बताया था। भूत वूत कुछ नहीं होता है, सब लोगो का वहम है। इतने लोग दुनिया में मरते है, फिर तो हर जगह भूत होने चाहिए। ...ये किष्नु तो बस ऐसे ही डराया करता है सबको "| जीतू ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छा अब सब ये डरावनी बाते करके ही टाइम खराब करोगे या कुछ खेलोगे भी।"सचिन ने कमर पर हाथ टिकाकर कहा।

"खेलने ही तो आये है, खेलेंगें क्यों नहीं, पर पहले तोते के बच्चे तो दिखा दे अपने दोस्त अभिनव को, इतने दिनों बाद आया है।"जुगल बोला।

" तोते के बच्चे, तुमने कहाँ देखे।"काली ने जुगल से पूछा।

सब जुगल की तरफ हैरानी से देखने लगे।

" ओहो, यार इस बरगद की एक कोटर में हैं। अभी शायद तोता तोती उनके लिए खाना लेने गए होगें, ठहरो मैं दिखाता हूँ तुमको।"कहकर जुगल बरगद के पेड़ पर चढ़ने लगा। शायद उसे पेड़ पर चढ़ने की आदत ही, इसीलिए वो झट से चढ़ गया। थोड़ा ऊपर जाकर एक बड़े तने के सहारे वह बैठ गया। वहीं बैठकर उसने तने के एक छेद में कान लगाकर पहले कुछ सुना और फिर बोला|

" आ जाओ आ जाओ, देखो कैसे किर्र किर्र कर रहे हैं। यहां ऊपर  चढ़ कर उनकी आवाज सुनो।" जुगल ने सबको हाथ के इशारे से ऊपर बुलाया।

"बस बस, अब सब ऊपर कैसे आएंगे, पहले तू नीचे उतर या फिर एक बच्चा कोटर से निकाल के दिखा दे, तू तो रोज ही पेड़ पर चढ़ता रहता है।"अभिनव ने कहा।

"हाँ हाँ, ये भी सही है। जरा अपने सर के ऊपर देखों, बरगद में इतना बड़ा शहद का छत्ता भी तो लगा है, अगर कहीं मक्खियां  पीछे पड़ गयी तो बेटा भाग नहीं पाओगे।" मोहित ने चिल्लाकर कहा।

"हाँ हाँ ..पिछली बार तो ये खुद ढेला मारकर भाग गया था, वो तो गनीमत रही कि छत्ता छोटा था, हम लोग तो बच गए और मोहित बेचारे को पूरी पांच मक्खियों ने काट खाया और इस जुगल को जो जूते घर में पड़े सो अलग। क्यों जुगल याद है की फिर से जूते खाने का मन कर रहा है।"जीतू बोला।

"अच्छा भाई, मैं कोटर में हाथ डाल कर देखता हूँ, बस तोते का बच्चा चोंच से काट न ले, परसो बहुत जोर से काटा था काली को।"जुगल कहकर कोटर में हाथ डालने लगा।

जब उसके हाथ बाहर निकला तो उसके हाथ में किर्र किर्र करता छोटा सा तोते का बच्चा था। हल्का सलेटी रंग, बस अभी पंखों पर थोड़ी सी हरियाली छाई थी। जुगल ने अपनी जेब से मूंगफली के कुछ दाने उसके मुंह में डालने की कोशिश की। उसके पास एक सेब का टुकड़ा था, वो भी उसने उसे खिलाया। पर बच्चा किर्र किर्र करता और कुछ न खता था शायद। सभी बच्चे गौर से उसे देखने लगे।

" ए जुगल, यार इसको नीचे ले के आ ना,मई भी इसे छूकर देखूं,कैसा मुलायम है ये छूने में।"अभिनव ने प्यार से उसे देखा।

" नहीं नहीं, देखना है तो ऊपर आओ। अभी कही से इसके माता पिता ने देख लिया तो सर में चोंच मार मार कर सबक सीखा देंगें।"जुगल ने कहकर इंकार कर दिया।

"अरे परसों तो दो थे, दूसरा भी निकल कर देख न।"जीतू ने जुगल को कहा।

" अरे हाँ यार, आज दूसरा तो बोल नहीं रहा, शायद सो रहा होगा, ठहरो देखता हूँ।"जुगल ने कहकर अपना दूसरा हाथ कोटर में डाला।

उसके हाथ में सुस्त पड़ा तोते का दूसरा बच्चा हिल डुल नहीं रहा था।

" ओह, लगता है ये मर चूका है। मैंं इसे लेकर नीचे उतरता हूँ।"जुगल ने बेसुध पड़े बच्चे को लेकर नीचे उतरना ही ठीक समझा। दुसरे को वो उसी कोटर में रख आया।

सभी बच्चों ने तोते के बेसुध पड़े बच्चे को छूकर देखा, एक माली की चारपाई के नीचे से उसकी पानी की बोतल उठा लाया और उसी चूंच में कुछ बूंदे डालने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ। तोते का बच्चा मर चूका था।

" अब इसका क्या करे, बाहर रखेंगे तो इसे कोई और जानवर खा जायेगा।"जुगल बोला।

"चलो फिर माली अंकल से पूछ लेते हैं। वैसे हमारे गाँव में जब कोई मरता है तो उसे शमशान में ले जाकर जलाते हैं।"काली बोला।

" हाँ हाँ, मैंंने टीवी में एक फिल्म में देखा था, पर उसमे तो गड्ढा खोदकर दबा दिया था।" अभिनव बोला।

"हाँ कुछ लोग ऐसे भी करते हैं। जीतू ने कहा।

माली अपनी चारपाई पर पड़ा बच्चों की बाते सुन रहा था शायद, इसी बीच वो बोल पड़ा।"अरे बच्चों लाओ तुम ये बच्चा मुझे दे दो, मैंं अपने आप इसे यही मिटटी में दबा दूंगा। यहां इस बरगद के नीचे तो कई बार मैंंने मरे हुए पक्षी दबाये है। वो सब दोबारा पक्षी बन जायेगे।"

बच्चे माली की बात सुनकर हैरान हुए और उनोहने माली अंकल को वो पक्षी सौंप दिया। माली ने खुरपे से गढ्ढा खोदा और तोते के बच्चे को वही एक कोने में दबाकर उसे मिटटी से भर दिया।

"आओ बच्चो हम सब मिलकर भगवान् से प्रार्थना करें कि ये जल्दी दोबारा पक्षी बन कर लौट आये।"माली ने बच्चों को पास बुलाकर कहा।

सभी बच्चों ने मिल कर प्रार्थना की प्रार्थना की।

"अच्छा अब खेलो तुम सब|" माली ने सभी को थोड़ी देर बरगद के नीचे बने चबूतरे पर बैठ कर खेलने के लिए कहा।

अब जीतू, अभिनव, काली और जुगल लूडो खेलने लगे। बाकी  सब बच्चे उनके इर्द गिर्द बैठकर उन्हें देखने लगे।

पूरी दोपहर खेल चलते रहे। कभी लूडो तो कभी बैट बाल। बरगद की छांव गहरी होती गई और पक्षियों का शोर दिन ढलने के साथ बढ़ने लगा। अभिनव ये सब देखकर बहुत खुश था।


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