Priyanka Gupta

Others

4  

Priyanka Gupta

Others

एकांतवास माँ का

एकांतवास माँ का

6 mins
365


"रूपा ,अच्छे से सोच लिया है । एक बार कॉन्ट्रैक्ट होने के बाद तुम उसे तोड़ नहीं सकती। अगर तोड़ा तो तुम्हें दुगुने रूपये देने होंगे। प्रक्रिया पूर्ण होने में लगभग एक साल लग जाएगा। एक साल तक तुम अपने परिवार को देख नहीं पाओगी। अपने बच्चों से मिल नहीं पाओगी। ",डॉक्टर मुग्धा ने पूछा। 


" जी मैडम ,बिल्कुल सोच लिया है। आपकी सारी शर्तें मंजूर है। बस आप एडवांस थोड़ा जल्दी दिलवा दीजिये ताकि मेरी बच्ची का इलाज़ शुरू हो सके। ",रूपा ने दृढ़ शब्दों में कहा। 


डॉक्टर मुग्धा के बारे में रूपा को उसके साथ कपड़े की फैक्ट्री में काम करने वाली जया ने बताया था। जया के साथ ही वह मैडम से मिली थी। केवल एक साल की ही तो बात थी ,उसके बाद उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता। डॉ मुग्धा ने मानो उसे अलादीन का चिराग ही दिखा दिया था। 


रूपा अपने छोटे से घर में ,अपने छोटे से परिवार के साथ खुश थी। पति महेश सब्जी का ठेला लगाता था और रूपा फैक्ट्री में काम करती थी। दोनों के प्यारे -प्यारे दो बच्चे पिंकी और चन्दन। सब कुछ ठीक ही चल रहा था ;दाल -रोटी आराम से मिल रही थी। उससे ज़्यादा ख़्वाब उन्होंने देखे नहीं थे या उनकी औकात से बाहर थे। लेकिन ज़िन्दगी शायद उन्हें अपने कुछ और रंग भी दिखाना चाहती थी। एक दिन पिंकी खेलते -खेलते बेहोश हो गयी। डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कुछ टेस्ट आदि करवाने के लिए कहा। डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखने के बाद जो कहा ;उससे रूपा और महेश की सुकून भरी ज़िन्दगी में भूचाल आ गया। 


"आपकी बेटी के दिल में छेद है और ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन में लाखों का खर्चा होगा। ",डॉक्टर ने सपाट शब्दों में कहा। 


महेश और रूपा जैसे -तैसे अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे थे। उनकी कुछ हज़ारों की बचत से पिंकी का इलाज़ संभव नहीं था। डॉक्टर की बात सुनते ही दोनों हक्के -बक्के रह गए थे। जैसे -तैसे हैरान -परेशान दोनों अपने घर लौट आये। अगले दिन फैक्ट्री में रूपा के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर जया ने उससे पूछा ,"क्या हुआ ?तबियत ठीक नहीं है क्या तेरी। बड़ी बुझी -बुझी सी लग रही है। "


"नहीं ,तबीयत ठीक है। ",रूपा ने टालने के लिए कहा। 


लेकिन जया कहाँ मानने वाली थी ?उसके बार -बार पूछने पर आख़िर रूपा के दुःख का दरिया उसकी आँखों से बह ही गया। हम इंसान मजबूती का कितना ही दावा करें ,लेकिन सहानुभूति और प्यार हमारी मजबूती को पल में ही हवा कर देते हैं। 


रूपा की पूरी बात सुनकर जया ने उसे डॉक्टर मुग्धा के बारे में बताया। "बाकी सब तो ठीक है ,लेकिन एक साल के लगभग तुझे वहाँ अकेले ही रहना पड़ेगा। "

रूपा के कुछ टेस्ट आदि करने के बाद डॉक्टर मुग्धा ने उसे बुलाकर सब कुछ समझा दिया था और उसे सोचने के लिए एक सप्ताह का वक़्त भी दे दिया था। महेश ने भी मजबूरी में रूपा के निर्णय को स्वीकार कर लिया था। "तू बिलकुल भी फ़िक्र मत करना। मैं बच्चों को अच्छे से सम्हाल लूँगा। फ़ोन पर तो बात कर ही लेंगे न। ",महेश ने उसे कहा था। 


एक सप्ताह बाद रूपा महेश के साथ डॉक्टर मुग्धा के पास आ गयी थी। रूपा और महेश ने डॉक्टर मुग्धा के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया था। "डॉक्टर मैडम ,एक निवेदन और है। ",रूपा ने कहा। 


"बोलो। ",डॉक्टर मुग्धा ने कहा। 


"अगर आपकी अनुमति हो तो मैं बेटी के ऑपरेशन के बाद आ जाऊँ। बीमारी में बच्चे को माँ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। ",अपनी आँखों के गीले कोरों को पोंछते हुए रूपा ने कहा 


"तुम्हें आज ही एडवांस दे रही हूँ। वैसे तो एडवांस देने के बाद मैं किसी को जाने नहीं देती। ",डॉक्टर मुग्धा ने कहा। 


डॉक्टर मुग्धा की बात सुनकर रूपा की उम्मीद टूट गयी थी। "लेकिन तुम जया के रेफेरेंस से आयी हो और पता नहीं क्यों तुम पर भरोसा करने का मन करता है। इसीलिए तुम जा सकती हो। 15 दिन बाद आ जाना ,हम तब सारी औपचारिकताएं पूरी कर लेंगे। ",डॉक्टर मुग्धा ने कहा। 


डॉक्टर की बातें सुनकर रूपा के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी थी। बेटी का ऑपरेशन करवाकर ,रूपा 15 दिन बाद लौट आयी थी ;लगभग एक साल तक एक नयी दुनिया में रहने के लिए। 


रूपा एक निःसंतान दंपति को संतान सुख देने के लिए अपनी कोख किराए पर देने वाली थी। डॉक्टर मुग्धा ने प्रक्रिया शुरू की। २ बार भ्रूण प्रत्यारोपित किया गया ,लेकिन असफल रहा। तीसरी बार जाकर प्रत्यारोपण सफल हुआ ;अब तक हॉस्पिटल के हॉस्टल में रहते रूपा को तीन महीने हो गए थे। हॉस्टल में महिलाओं के लिए अलग -अलग कमरे थे ;हर कमरे में अटैच बाथरूम और किचेन थी। 


रूपा पहली बार अकेले इतने बड़े कमरे में रह रही थी। बाथरूम भी काफी बड़ा था और उसमें कई खुशबू वाले साबुन और तेल आदि रखे हुए थे। रूपा जब भी उन चीज़ों का इस्तेमाल करती ,उसे पिंकी और चन्दन की याद आ जाती। "दोनों कितने खुश होते। पिंकी तो झाग बना -बना कर खूब नहाती। हमारी बस्ती में तो पानी के लिए कितनी मारामारी होती है। ",रूपा बाथरूम की सुविधा देखकर सोचती। 

रूपा को दोनों समय पीने के लिए दूध मिलता था।वह तो अपने बच्चों को एक समय का दूध भी बड़ी मुश्किल से दे पाती थी। दही तो कोई महीने में एक बार ही खाने को मिलता था ;यहाँ तो उसे रोज़ खाने में दही भी मिलता था। रोज़ फल -फूल खाने को मिलते थे। रूपा तो कभी से केला ही खरीदकर ला पाती थी। वह भी कभी २ या कभी ४। चन्दन को केले बहुत ही पसंद थे ;हमेशा यही कहता कि माँ मेरे लिए २ केले लाया करो। 


डॉक्टर मुग्धा गर्भवती महिलाओं का मन प्रसन्न रहे ;इसीलिए उन्हें कुछ रचनात्मक गतिविधियों में भी भागीदारी करवाती थी। महिलाएं अपनी रूचि के हिसाब से संगीत ,कढ़ाई ,पेंटिंग आदि किसी भी गतिविधि में हिस्सा लेती थी। बाकी सब तो ठीक था ;लेकिन यहाँ महिलाओं को आपस में एक -दूसरे से घुलने -मिलने की इज़ाज़त नहीं थी। क्यूंकि कुछ वर्ष पहले कुछ महिलाएं मिल -जुलकर हॉस्टल से भाग गयी थी। अपने कोख में पलते शिशु को किसी और को दे देना आसान नहीं होता,उसके लिए दिल को पत्थर करना पड़ता है । 


रूपा ने यहाँ रहते हुए हारमोनियम बजाना सीखना शुरू किया। रूपा को संगीत का शौक था ;लेकिन पहले कभी अवसर नहीं मिला था। संगीत में रूपा का मन खूब रम गया था। हॉस्टल में हर काम का एक निश्चित समय था। रूपा एक तयशुदा टाइम टेबल में व्यवस्थित ज़िन्दगी जी रही थी। कभी -कभी जब उसे अपने बच्चों की बहुत याद आती तो दो -४ आँसू बहा लेती थी। जी भरकर रोती भी नहीं थी क्यूँकि माँ के रोने से गर्भस्थ शिशु का मूड भी तो खराब होता है। 


देखते ही देखते ९ महीने का समय पूरा हो गया था। रूपा ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया। जन्म के साथ ही शिशु अपने जैविक माता -पिता को सौंप दिया गया। रूपा बच्चे की शक्ल देखना तो दूर उसका लिंग भी नहीं जान सकी। लेकिन रूपा तो इन सबके लिए मानसिक रूप से तैयार थी,लेकिन फिर भी माँ गर्भस्थ शिशु से अटैच तो हो ही जाती है । एक वर्ष का एकांतवास पूरा होने को आया था। अपने परिवार वालों से मिलने की ख़ुशी ने रूपा द्वारा अपने गर्भस्थ शिशु को किसी और को देने के दुःख को कम कर दिया था। 


कुछ ही देर महेश दोनों बच्चों के साथ उसे लेने आ गया था। रूपा खट्टी -मीठी यादें दिल में लिए अपनी पुरानी ज़िन्दगी में लौट गयी थी। 

 


Rate this content
Log in