एक निःस्वार्थी समाज सेवी.
एक निःस्वार्थी समाज सेवी.
एक बालक का जन्म किसान परिवार में एक छोटे से देहात में हुआ था. वो परिवार मुख्य रुप से खेतिहर बिरादरी में आता था. खेति उनका पुश्तैनि पेशा था. उन्हे भूमिपुत्र भी कहाँ जाता हैं. परिवार के पास कुछ ही एकड जमिन बची थी. उसे के बदौलत उनका परिवार चलता था. जन संख्या में लगातार बढोत्री होने के कारण सभी परिवार में अभी बटवारे के कारण बिरादरी में सिमांत कृषक परिवार ही नजर आते थे.अभी उन्हे जीने के लिए अन्य स्त्रोतों की भी तलाश करना पडती थी.इसलिए अभी इन परिवारों के बच्चे पढने- लिखने के लिए भेजे जाते थे. बालक पढाई में कॉफी तेज था. उसने अपनी दसवीं तक की पढाई आजु-बाजु के बडे गांव और नजदिक के छोटे शहर से पुरी कर ली थी. स्नातकोत्तर की पढाई बडे मुशकिल से जिल्हे से पुरी की थी. अच्छी श्रेणी प्राप्त कर लेने के कारण उसे बडे शहर में एक प्राध्यापक की नौकरी मिली थी. अभी परिवार की माली हालत सुधरने लगी थी. प्राध्यापक शुरु से ही स्वाभाव से मिलनसार होने के कारण उसकी बिरादरी और बिरादरी के बाहर अनेक जीवलग मित्र थे. सभी की समय देखके मदत करना उसके शायद खुन में ही था. सामजिक कार्य करने से वो कभी पिछे नहीं रहता था. इसिलिए उनके गांव और शहर के घर में लोगों का आना-जाना लगा रहता था. समय के साथ चलते-चलते प्राध्यापक ने अपना परिवार तो बसा लिया था अन्य भाई-बहणों का परिवार भी बसाने में माता-पिता का पुरा संयोग किया था. गांव वाले उसके माता-पिता का गुण-गान करते नहीं थकते थे. वे कहते थे. उन्होने पिछले जन्म में कोई अच्छा कार्य किया होगा !. तभी तो इस जन्म में प्रकृतिने ऐसा सपुत उनके झोली में डाला हैं ?.प्राध्यापक उनके गांव और अगल-बगल के घर के बडे बेटों के लिए एक मिसाल बन चुके थे. प्राध्यापक ने शहर में एक बडा सा मकान बना लिया था. उस मकान में पोर्च के सामने बडा खुला मैदान था. ठिक पोर्च के पिछे एक बडासा हॉल था. और अन्य कुछ कमरे थे. घर रोड पर था. सभी को आसानी से मिल जाता था. घर के चारों और बडे-बडे पेड और अन्य पौधें भी थे. दिखने में छोटासा बगिचा बडा मनोहर और मनमोहक लगता था. प्राध्यापक को दो लडके और एक लडकी थी. प्राध्यापक की नाल अभी भी अपने पुश्तैनि गांव से जुडी थी. वे अकसर गांव अपने बच्चों के साथ जाया करते थे. उनका मंझला लडका उसी गांव के आस-पास के बडे गांव में शिक्षक था. अपने पेशे के साथ वो अपना खेति का भी व्यवसाय किया करता था.उसका परिवार पढाई के लिए दादा-दादी के पास शहर में रहता था.
प्राध्यापक को शुरु से ही सामाजिक कार्यों में बहुत रुची थी. वो ज्यादा तर बिरादरी के कार्यों में सभी तरफ नजर आता था. उसकी बहुंत जान-पहचान भी थी. कई परिवारों के गांव के उसे उनके कई पिढीयों की जानकारी मुंह-जबानी थी. जब कोई उसे अपना परिचय देता था. तब वो उनके सात पिढीयों का लेखा-जोखा, जो उसे भी पता नहीं रहता था. उसे भी बयान कर देता था. शुरु से ही उसे बहुंत सबरे कॉफी लंबा घुमने की आदात थी. वो रोज-रोज नये-नये इलाको में अपने क्षेत्र में घुमा करता था.इसलिए उसकी कॉफी पहचन बढ चुकी थी.
प्राध्यापक की तरह बिरादरी के कई होनहार बच्चे अपने-अपने गांव, छोटे-मोटे शहर छोडकर व्यवसाय और नौकरी के तलाश में बडे शहर में आके बसे थे. अभी बढती हुंई जनसंख्या और परिवार में होने वाले बटवारों के कारण गांवो में जीने के सिमित साधन रह गये थे.शहर में आकर वे शहरवासी हो गये थे.उन सभी की नाल अपने –अपने गांव से टुट चुकी थी. उनके परिवार इधर-उधर बिखर चुके थे.लेकिन उन्हे अपने बच्चों के घर बसाने के लिए, उन्हे अपने बिरादरी से अनुरुप जीवन साथी की जरुरत पडती थी. प्राध्यापक की छबी एक समाजसेवी की तरह बन चुकी थी. कई परिवार उनसे इस मामले में विचार- विमर्श और रिश्ते बताने के लिए संपर्क में रहते थे. प्राध्यापक को भी इस समस्या से गुजरना पडा था. इसलिए इस जीवंत समस्या का हल ढुढंने में लगे थे. अभी कुछ सलों बाद उसे नौकरी से सेवामुक्ति मिलने वाली थी. समाज के लिए कुछ करने की तीव्र इच्छा उसके मन में शुरु से ही थी. तभी पुरे परिवार ने निःशुल्क विवाह ब्युरो निकलने का सोचा था. उसे अमली –जामा पहनाने के लिए उन्होने मैल और फिमैल ऐसे जन्म तिथी के साल और अलग-अलग शैक्षणिक योगता नुसार फाईलें बनाई थी. जो भी परिचित उन्हे मिलता था. उसे वे इसके संबंध में जानकारी देते थे. उसके लिए उन्हे अपने पुत्र-पुत्री का जीवन परिचय एक छोटा और एक बडा फोटो की जरुरत थी. वो शादी के लिए प्राप्त जीवन परिचय को जन्म वर्षानुसार, शैक्षणिक योग्यतानुसर लडका और लडकी के बनाऐं फाईलों में खुद फाईल करते थे. उसी के पिछे बडी फोटो लगाके रखते थे. जो माता-पिता या अन्य कोई भी अपनी लडका या लडकी के लिए अनुरु लडका-लडकी को संबंधीत फाईल को देखकर जानकारी ले लिया करते थे. फिर उनसे फोन या मोबाईल से संपर्क करके अपना प्रस्ताव देने का कार्य करते थे. फिर संबंधीत पार्टियां एक –दुसरे के संपर्क रखकर रिश्ते को आगे बढाने या सहमती न होनेपर खत्म कर देते थे. इस सुविधा के कारण कई परिवारों के रिश्ते बन जाते थे.
ये सामाजिक कार्य के लिऐ उसका पुरा परिसर ,पोर्च और हाँल जरुरतमंद लोगो से भरा रहता था. सर्व साधरन मनुष्य अपने घर में कुछ समय के लिए कुछ्ही लोगों को कभी कवार भी बर्दाशत नहीं कर पाते हैं. लेकिन प्राध्यापक और उनका परिवार सुबह से श्याम तक इतने लोगों को कैसे बर्दाशत करते होगें ?. प्राध्यापक का आराम करने की भी व्यवस्था उसी हाँल में थी. आने-जाने वालों से लगातार बातचित करना. उन्हे आवश्यक मार्गदर्शन करना. ये उनका रोजमर्या का काम हो चुका था.
उसके ही गांव के बगल से एक गांववाला उसी शहर में अपने अंतिम सेवानिवृती के काल में नागपुर आया था. उसने उसी इलाके में अपना घर बनया था. जैसे की प्राध्यापक के आदत सुबह घुमने की थी. वैसे आदत उस गांव वाले की भी थी. घुमते-घुमते दोनों मे परिचय हो गया था. जब आपस में दोनों की बात हुंई थी.तब पता चला की दोनों एक –दुसरे के रिश्ते में भी लगते थे. एक दिन जब वो प्राध्यापक को घर ले गया था. उसी वक्त उसकी लडकी उनके लिए चाए लेके आई थी. तभी प्राध्यापक ने उसका जीवन-परिचय और फोटो देने के लिए कहाँ था.ताकी अनुरुप लडका देखने में दिकात नहीं हो. लेकिन उनके प्रयास से उस गांववाले के लडकी के लिए कोई लडका नहीं मिला था. लेकिन उस लडकी को जैसा लडका चाहिए था .वैसे लडके का योग अन्य स्त्रोतों से मिला था. जब उस लडकी की शादी तय हुंई थी. तभी उसके मात-पिता प्राध्यापक के घर उन्हे शादी का न्योता देने गये थे. उन्होने पुरे परिवर को आमंत्रित किया था. उसने उनसे बार-बार शादि में आने का आग्रह किया था. शादि के पहिले दिन दुल्हन के पिता ने फिर उन्हे शादी में आने के लिए आमंत्रित किया था और दुसरे दिने उनके और परिवार के लिए कार भेजने का वादा किया था. शादि के दिन पुरा परिवार शादि में आया था. उन्हे आदर-सम्मान के साथ आगे बिठायां गया था. जैसे ही शादि की कुछ रसमे पुरी हुंई थी. उन्हे मंच पर दुल्हा- दुल्हन के साथ खडा किया गया था. एंकरने उनका परिचय और सेवा के संबंध में समाज के लोगों को बतायां था. उनके महान समर्पित सेवा के लिए धन्यवाद भी दिया गया था. दुल्हन के बडे पिताने उनका शाल,पुष्प-गुच्छ और नारियल देकर उनका सम्मान किया था. उन्हे एक परिवार के तरफ से भेट वस्तु प्रदान की गई थी. जब समाज के सामने उनका ऐसा सम्मान होने के कारण उनकी और परिवार की खुशी आसमान छुने लगी थी. जो उन्होने सोचा नहीं ऐसी बात होने पर उन्हे अपने कार्य पर उस दिन गर्व महसूस हुआ था.
