दुविधा
दुविधा
कल शाम को बहुत दिनों के बाद मेरे पुराने दोस्त मनोज का फोन आया था। वो बता रहा था कि उसकी बेटी की शादी तय हो गई है और अगले महीने की तारीख पक्की की है। कहने लगा मुझे अपनी भतीजी की शादी में सपरिवार शामिल होना है। वो बोल तो रहा था लेकिन उसके बोलने में वो उत्साह नहीं झलक रहा था जो आमूमन बेटी की शादी तय करने के बाद एक पिता में होना चाहिए था। मेरे बहुत कुरेदने पर वो बोला ' यार,सब कुछ तो ठीक है लेकिन मेरी इच्छा बेटी की शादी में कार देने की थी,लेकिन सारे खर्च करने के बाद कार के लिए बजट ही नहीं बच रहा।खैर कोई ज़रूरी तो नहीं कि हर इच्छा पूरी हो। तुम तो शादी में ज़रूर आना।'
तभी से मेरा मन दुविधा में था कि क्या मुझे मनोज की मदद करनी चाहिए? मेरी आज के समय में आर्थिक स्थिति ऐसी है कि मैं मनोज की मदद कर सकता हूं,लेकिन दुनियादारी कहती है कि मैं क्यों इन पचड़ों में पड़ूं।
आज मैंने यही बात अपनी पत्नी से कही तो वो बोल पड़ी, 'इसमें इतना सोचना क्या?आज मनोज भैया को जरूरत है तो हमें जरूर उनकी मदद करनी चाहिए। आप भूल गए क्या मनोज भैया के अहसान को।आप ही ने तो मुझे बताया था।'
इसी के साथ मुझे याद आने लगी वो करीब तीस साल पुरानी घटना। मेरी और मनोज की एक ही कम्पनी में नई नई नौकरी लगी थी और हम दोनों ही इस शह
र में नए नए आए थे।
मैं पड़ोस के शहर से और मनोज पास ही के एक गांव से। हमने रहने के लिए एक कमरा किराए से लिया था और दोनों एक साथ रहने लगे। मुझे याद है महीने की वो पच्चीस तारीख थी जब घर से तार आया था कि पिता जी की अचानक तबियत खराब हो गई है और मुझे तुरन्त घर बुलाया था। महीने के आखिर में मेरे पास गिने चुने पचास साठ रुपए थे।इतने पैसों में मेरा घर जाना सम्भव ही नहीं था। मनोज ने पूछा 'क्या हुआ?घर क्यों नहीं जा रहे।' मैंने अपनी समस्या बताई तो वो बोला बस इतनी सी बात,और लाकर अपना पर्स मेरे हाथों में रख दिया और बोला ' भाई,तुम निकलो जल्दी से, ताकि समय से घर पहुंच सको।' मैंने देखा पर्स में करीब ढाई तीन हजार रूपए थे। मैंने कहा भाई इतने पैसों की ज़रुरत नहीं तो वो बोला रखे रहो क्या पता क्या खर्च आ जाए। उसने मुझे ज़बरदस्ती पैसे पकड़ाए और रवाना किया। मैं समय से पहुंच गया और पिता जी जल्द ही ठीक हो गए।
बाद के समय में मेरी भी शादी हो गई उसका भी परिवार गांव से शहर आ गया। हम दोनों अपनी अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गए। मैंने कई बार अपनी पत्नी से इस घटना का जिक्र भी किया था।
आज पत्नी ने इस घटना की याद दिला कर मुझे दुविधा से निकाल लिया। मैं तुरन्त मनोज को फोन मिलाने लगा जिससे कि उसे ये खुशखबरी दे सकूं।