दर्द का रिश्ता
दर्द का रिश्ता
चार महीने के बाद अपने शहर लौटा तो लगा कब से बिछड़ने के बाद मिल रहा हूं। मन हुआ अपने सब परिचितों से मिल आऊं। अगले दिन सुबह- सुबह अपने परिचित चाय की टपरी पर पहुंचा। मनसुख पहले की तरह ही हंस- हंस कर चाय बना रहा था और उसकी इधर- उधर की गप भी शुरू थी। मुझसे कुशल क्षेम पूछकर उसने चाय दी। अचानक मैंने देखा, दुकान के अंदर कोने में टाट बिछा था और वहां एक कुत्ता और बिल्ली आपस में खेल रहे थे। मुझे आश्चर्य हुआ। तुरंत मनसुख से पूछा, यह तुम्हारी दुकान में आठवां आश्चर्य देख रहा हूं- “ये कुत्ते- बिल्ली आपस में खेल रहे हैं?”
“हां भैया, इनके बीच दर्द का रिश्ता है न तो इनकी दोस्ती हो गई है।” उसने चाय का पतीला चढ़ाते हुए कहा।
“दर्द का रिश्ता?” मुझे आश्चर्य हुआ।
“हां! दरअसल दो महीने पहिले एक दिन काफी बारिश हो रही थी, सामने वाली झोपड़ी गिर गई। उसकी दीवार से बेचारा कुत्ता दब गया। इसे चोट काफी आयी, आगे और पीछे के एक- एक पैर टूट गए। यह एक कदम भी चल नहीं पा रहा था। मैं इसे दुकान पर उठा लाया। एक दर्द की गोली कूट कर खिला दी। दूसरे दिन यह बिल्ली मुझे मेरे घर के बाहर मिली। पता नहीं कैसे बुरी तरह घायल थी। इसके सिर से खून बह रहा था। एक पैर टूटा था। शरीर में खरोंच के भी निशान थे। इसे रोता देख मैं इसे भी दुकान पर ले आया। ज्यादा जगह नहीं थी तो एक ही बोरे पर दोनों को लिटा दिया। एक ग्राहक ने बताया कि डॉ रमेश जानवरों की भी दवा देते हैं। उनसे ही दवा ले आया। एक दो दिन तो दोनों एक दूसरे से अलग-अलग रोते रहे। फिर देखा दोनों एक दूसरे को चाट रहे थे। जैसे- जैसे दोनों ठीक हुए दोनों की दोस्ती गहरी होती गई है। अब ये लोग बाहर भी घूमते हैं। पर शाम को लौट आते हैं। रहते एक ही साथ हैं। अभी नाश्ता करके दोनों भाग जाएंगे पर शाम के पहले ही एक साथ ही वापस आ जाते हैं।”
मुझे आश्चर्य हो रहा था, “दर्द से पनपा रिश्ता दुश्मनी को भी भुला देता है।”