दोस्ती
दोस्ती
मोहन और रमेश लंगोटिया यार थे। ऐसे पक्के दोस्त, जिनकी मिसाले गाँव भर में दी जाती थी। दोस्त से भी बढ़कर वे दोनों सगे भाई जैसे थे। मोहन की माँ भी रमेश को अपनी कोखजाई जैसी ही समझती थी।परंतु जब से राधा के साथ मोहन का आशनाई हुआ था दोनों की दोस्ती में मानो एक दरार सी पड़ गई थी । राधा के साथ रहते -रहते मोहन की पसंद भी उसके जैसी ही हो गई थी। इधर रमेश का दिल भी उसी समय पर राधा पर आ गया था। फिर क्या था,,, बरसों पुरानी दोस्ती को तो टूटना ही था।पर क्या एक म्यान में कभी दो तलवारें रह सकती हैं?
मुसीबत यह हुई थी कि राधा मोहन को चाहती थी। दोनों के घरवालों को भी राधा-मोहन की यह जोड़ी पसंद आ गई । अतः उनका चट मंगनी पट ब्याह करा दिया गया।राधा को रमेश फूटी आंखों से न सुहाता था। वह रोज-रोज रमेश के खिलाफअपशब्द कहकर मोहन को भड़काया करती थी।
अब आप सबको तो यह मालूम ही होगा कि स्त्रियाँ इस मामले में कितनी माहिर होती है!! मोहन को भी जल्द ही अपनी नई-नवेली चहेती दुल्हन की बातों पर विश्वास होने लग गया। उसे खुश करने के लिए तो वह आसमान के सितारे भी तोड़कर ला सकता था। फिर यह अदना सा दोस्ती भला क्या चीज़ थी!
आखिर मोहन राधा से इतना प्यार जो करता था !! अतः मोहन ने लुगाई की खातिर अपनी वर्षों पुरानी दोस्ती से नाता तोड़ लिया।
दुःखी होकर रमेश गाँव छोड़कर चला गया। उसने न तो कभी शादी की और न ही कोई ढंग की नौकरी। परंतु जैसे-तैसे अपने गुजारे भर को वह कमा लेता था। उसमें धन की लालसा बिलकुल भी न थी। पैसे जमा करता भी तो किसके लिए?
काल की गति तेजी से आगे बढ़ती गई।
वर्षों बाद , मोहन की दोनों किडनियाँ खराब हो गई। वह मरनासन्न हो गया। डाॅक्टर ने सलाह दी कि उसे तुरंत एक नया किडनी चाहिए,,, वरना उसका बचना मुश्किल था। परंतु कोई डोनर न मिला। गाँवभर में ऐसा कोई न था जो पैसे लेकर भी अपना एक गुर्दा दे सके।
पता नहीं, रमेश को यह बात कैसे मालूम चली। वह गाँव आया और अपनी खुशी से अपनी किडनी देकर अपने पुराने दोस्त को ऐन मौके पर बचा लिया।
अपना एक गुर्दा प्रदानकर रमेश ने इस तरह अपनी दोस्ती पर लंबे अरसे से जमी धूल की सफाई कर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
किसी ने सच ही कहा है-- मुसीबत के समय काम आनेवाला ही दोस्त कहलाता है।
