yashwant kothari

Others

2.4  

yashwant kothari

Others

दिवाली पर उपहार

दिवाली पर उपहार

3 mins
146


दीपावली क्या आई। छोटे बड़े सभी व्यस्त हो गये। आजकल एक नई संस्कृति का विकास हो रहा है, जिसके अन्तर्गत दिवाली पर महंगे उपहारों का लेन देन हो रहा है। उपहार-संस्कृति का विकास अपनी आर्थिक हैसियत के आधार पर तय हो रहा है। गरीब को कोई उपहार नहीं देता मगर जिसके पास पहले से ही काफी है उसी के पास उपहारों का जखीरा जा रहा है, गरीब बच्चों को आतिशबाजी के लिए कोई पटाखे नहीं देता, मगर सम्पन्न वर्ग एक दूसरे को उपहारों से लाद देते हैं, क्योंकि वे काम के आदमी हैं। बड़े आदमी हैं, उनको उपहार देने से आज नहीं तो कल फायदा पहुंचेगा। कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिलेगा। गये वे दिन जब उपहारों के साथ भावनाएं, संवेदनाएं जुड़ी होती थी, लोग एक दूसरे को उपहार देकर खुश होते थे। अब उपहार विनिमय चाहता है, मैंने मिठाई दी, तुम भी मिठाई दो या प्रमोशन दो या आर्थिक लाभ दो। नहीं दे सकते तो फिर तुम्हें उपहार देने का फायदा क्या ? और चूंकि अधिकांश गरीब, बेसहारा लोग कुछ नहीं दे सकते उन्हें कोई उपहार भी नहीं देता। मिठाई, मेवे के पैकेटस, सूटलेन्थ, महंगे पैन, कलेण्डर, डायरियां, घड़ियां, जूते, आभूषण और नकदी तक। एक किलो मिठाई के डिब्बे मे दस हजार का गिफ्ट चैक रख कर दे आइये, कैसे नहीं होगा आपका प्रमोशन या साली का स्थानान्तरण या बैंक से ऋण। यह कैसी संस्कृति का विकास हो रहा है। हमने एक सीधी सादी सांस्कृतिक परम्परा के खोल में रिश्वत, कमीशन का नया काम शुरु कर दिया है। उपभेाक्तावादी समाज ने विकास और प्रगति के नाम पर उपभोग का नया बाजारु संस्करण शुरु कर दिया है। दीपावली लेने देने का त्यौहार बनकर रह गया है। एक उपहार देने से काम नहीं होता तो दूसरा, तीसरा या फिर कुछ नहीं तो बातचीत का रास्ता तो खुला और एक बार खुलने के बाद सब कुछ खुल जाता है ओर खालीपन बच रहता है जिसे उपहारों से भरा जाता हे। काम निकलते रहते हैं और उपहार और काम। ज्यादा उपहार ज्यादा काम। उपहार नहीं काम नहीं।

     लेकिन यह देने बराबरी वालों या ऐसे उच्च स्थानों पर ही होता हे जहां से कुछ पाने की उम्मीद है। उपहार का आकार, मूल्य, गुणवता सब कुछ तय की जाती है। यदि आपने इन बातों का ध्यान नहीं रखा तो उपहार का महत्व समाप्त हो जाता है। आपका मजाक उड़ाया जाता है और अन्त में आपका काम या फाइल कहीं धूल चाटती रहती है।

     आखिर आज के सन्दर्भ में क्या है उपहार-एक प्रार्थना एक याचना या फिर रिश्वत, कमीशन, मक्खन लगाना या फिर काम निकालने का सबसे आसान तरीका सर हमने कमाया आप भी अपना हिस्सा लें।

     उपहारों का आकार, कीमत सब कुछ दोनों पक्षों के संबंध, कार्य की स्थिति को देखकर तय होती है और दीपावली का उपयोग केवल एक अवसर के रुप में किया जाता है। अभी नहीं तो फिर कब। देओ और पाओ। नहीं दोगे तो नहीं मिलेगा।

     उपहार लेने देने के लिए दीपावली के अलावा बच्चों के जन्म दिन, शादी ब्याह के अवसर, या अन्य खुशी के मौके भी मौजूद रहते है। कभी बतासे या खीला को लेकर महिलाएं एक दूसरे के घर जाती थी। दीपक रखती थी, मगर अन्य उपहारों का स्वरूप और आकार आपकी हैसियत सामने वाले की औकात ओर आपका काम सब मिलकर तय की जाती है। एक करोड़ का टेंडर पास होने पर विदेश यात्रा के हवाई टिकिट तक उपहार में प्राप्त हो सकते है। मगर कोई भी किसी गरीब की अन्धेरी झोंपड़ी में एक दिया जलाने की जरूरत महसूस नहीं करता। अन्धकार तो रहेगा और उपहार संस्कृति भी रहेगी क्योंकि अन्धकार में उपहारों का लेन देन आसानी से होता हे। हम लक्ष्मी की आराधना करते हैं और मैनेजर, बड़े अफसर, राजनेता, व्यापारी उपहारों से लद जाते हें। क्योंकि उपहार संस्कृति रिश्वत का श्रेप्ठतम र्प्याय बन गया हे। काश उपहारों का एक छोटा हिस्सा भी गरीब के घर तक पहुंचे ताकि कुछ समय के लिए ही सही उसके घर का अन्धेरा भी मिटे।


Rate this content
Log in