धुन्ध
धुन्ध
नव वर्ष के आरम्भ में खिली धूप से हुए खुशनुमा मौसम के बाद बारिश के आगमन के साथ बढ़ती ठंड से परेशान हो कर कमरे में हीटर जला लिहाफ़ के अन्दर बैठ मन अतीत की स्मृतियों में भ्रमण करने लगा । पिछले मौसम में इसी ठंड नें घुटनों का दर्द देकर इतना अपाहिज कर दिया था कि तिपहिया रिक्शे पर पैरौ से लाचार हो भीख मांगने वाला मुँह पर तिरस्कार पूर्वक यह कह कर चला गया था कि "इनसे क्या मांगे ये तो खुद लाचार हैं ।" मन आत्मग्लानी से भर रो उठा था। तभी सोच लिया था कि आत्मबल से व्यायाम कर के ठीक हो कर रहूँगी।और साथ ही सर्दी के मौसम में ठंड से पूरा बचाव करते हुए सबके साथ अपना भी ध्यान रखूँगी। तभी स्मृतियों से बाहर निकलने पर परदे की झिर्री से चमकती हुई धूप दिखाई दी।आगे बढ़ कर फौरन ही मैंने सारे परदे हटा कर दरवाजे खोल दिये ।अन्दर धूप आने पर कमरे में समाई ठंड के भागने से हमें पड़ोसन भाभी जी के साथ हुई तनातनी से छाई मायूसी के बाद खुशनुमा एहसास के लिये दोस्ती का हाथ बढ़ाने का रास्ता भी दिख गया।