" डिजिटल क्रांति "

" डिजिटल क्रांति "

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इक्कीसवीं सदी की डिजिटल क्रांति में मार्क जुकरबर्ग ने तो फेसबुक का अविष्कार करके, जिस क्रांति को जन्म दे दिया है उसका तो कहना ही क्या। जिस तरह प्रिंट मीडिया का उदय बींसवीं सदी में क्रांति कर गया कि कागज़ और छपाई मशीन के अविष्कार के होने के बाद से अखबार, पुस्तकें, पत्रिकाएं समान्य जन के हाथों में आने लगीं और विचारों का प्रचार प्रसार होने लगा। 


जन जन, विचार को और लेखकों के दृष्टिकोण के साथ अपने विचारों को जोड़ने लगा। पर फिर भी यह कुछ सामर्थ्य वानों तक ही सीमित रह गया।

पर बीसवीं शताब्दी का अंत होते होते जिस डिजिटल क्रांति ने बुद्धू बक्से ( टीवी ) को हर घर की अनिवार्यता बनाते गई और ज्ञान की गंगा दृश्य और श्रव्य दोनो माध्यम से लोगों की सोच को प्रभावित करने लगी।


वहां मोबाइल क्रांति में सोशल मीडिया ने तो जो धूम मचाया हुआ है, वह तो सबसे सशक्त कड़ी साबित हुआ। 

आज हर हाथ में मोबाइल हैं और जुकरबर्ग की कृपा से दृश्य, श्रव्य के साथ कथ्य की भी शक्ति प्रदान कर गया है।


सोशल मीडिया में फेसबुक का यह स्लोगन "व्हाट्स ओन योर माइंड और राईट समथिंग हियर" ... अब जाने क्या रहस्य छुपाए बैठा है इस ब्लैंक में कि यह दिमाग का दही बनाता रहता है कि लिख कुछ, कुछ भी लिख, पर लिख...लिख। इतना मजबूर कर देता है कि फिर तो एक जूनून सा तारीक हो जाता है। 

और जितनी बार इसे खोलेंगे तो आप लिखेंगे, आप लेखक बन कर ही रहेंगे। 


यहाँ गुणवत्ता का, खाद्य, अखाद्य का कोई सवाल नहीं है। चूंकि आप लिखते हैं, अतः आप लेखक हैं। 

गजब का संसार है यह, लिखने की कोई सीमा नहीं, आप दिन में पचीस, पचास पोस्ट लिख सकते है। कहानी, कविताओं की बाढ़ लगा सकते हैं। यह तो अनादि, अनंत हैं ही, लेखक को भी अनादि, अनंत बनने की क्षमता प्रदान करता है। 

इसी तरह इसमें अमृत बरसाने, विष वमन करने, नफरत उगलने, ऊलजलूल लिखने पर कोई पाबंदी नहीं है। 

यहाँ लेखक, पाठक का कोई भेद नहीं, दोनों की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति सम्हाल सकता है। 

तो मंच हमेशा लकदक तैयार है कुछ तो लिखिए, कुछ भी लिखिए, क्या चल रहा है आपके दिमाग में... 

यह आईना है आपका, दर्पण है आपकी सोच का... आपके पूरे व्यक्तित्व को सबके सामने रख देता है। आपके नीयत, नैतिकता, सोच 

का परिचायक है। 

तो लगातार लिखते रहिए.... व्हाट्स ओन योर माइंड, राईट समथिंग हियर



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