डायरी लॉक्डाउन२ सातवाँ दिन
डायरी लॉक्डाउन२ सातवाँ दिन


प्रिय डायरी
इस वैश्विक महामारी कारोना के चलते भी आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय भगत सिंह कोश्यारी जी ने मुझे खुद फोन कर मेरा और मेरे परिवार का हाल पूछा, मेरे लेखन के विषय में पूछा। प्रिय डायरी मैने तो उनके साथ रहने वाले जानकार का फोन मिला उनका हाल जानना चाहा पर जब उन्होंने फोन नहीं उठाया तो मैने कल एक संदेश लिख खुद ही कोश्यारी जी को भेज दिया और आज सुबह ही उन्होंने मुझे फोन कर दिया...कितनी सादगी और सरलता है उनमें सोचकर ही गर्व होता है की मैं भी उनकी तरह उत्तराखंड से हूँ। आपकी सादगी से कही गई बात की भी गहराई है...बड़े लोग सरलता से ही गम्भीर बात कह देते हैं जिसकी छाप हमारे मानस पटल पर कई देर रहती है।
प्रिय डायरी कोश्यारी जी के वचन आपने कहा कट रही है जिंदगी बुढ़ापे में क्या करना, समुद्र के पास बैठे हैं, शिखर से समुन्दर की ओर आ गए, लोग समुद्र से शिखर की ओर जाते हैं, पर विलीन तो फिर समुन्दर में ही होना है। अब भी मेरे मस्तिष्क में कौतूहल कर रहे हैं, महान व्यक्तियों की विचारधारा भी विलक्षण ही होती है। ईश्वर आपको दीर्घायु बनाये यही कामना है। अभी आपको कई काम करने हैं, लौटना शिखर पर ही है समुन्दर में विलीन नहीं होना।आपको मेरा सादर नमन है की एक साधारण इन्सान को आपने असाधारण बना दिया। प्रिय डायरी आज मेरे पास इसके अलावा कुछ और नहीं, इस वैश्विक महामारी के प्रकोप से भयभीत समय में आदरणीय कोश्यारी जी के आशीष वचन मेरे लिये पहाड़ों की ठण्डी निर्मल स्वच्छ हवा जैसे हैं इसलिए आज यहीं विराम लूँगी इन पंक्तियों के साथ...
आपके आशीष वचनों ने
मुझे धरा से शिखर पर पहुँचा दिया।