चुरकी, मुरकी
चुरकी, मुरकी
एक गाँव में दो सगी बहने थी। जिनका नाम चुरकी व मुरकी था। उनका एक भाई भी था। दोनों का विवाह एक ही गाँव में होता है। चुरकी व मुरकी का घर भी जुड़ा हुआ था, दोनों अड़ोसी - पड़ोसी भी थे।
चुरकी दिखने में सांवली रंग की थी, साथ ही स्वभाव से नरम, दयालु व सहृदय भी थी। वही मुरकी बेहद खूबसूरत गौर वर्ण की थी वह स्वभाव घमंडी, कपटी व लोभी थी। सुंदर रूप रंग की वजह से उसे पैसे वाला पति मिला। वही मुरकी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पड़ोसी होने के बावजूद मुरकी कभी भी अपनी बडी बहन चुरकी की कभी मदद नही करती थी। चुरकी का हाल इतना बुरा था कि कभी-कभी पानी पीकर सोना पड़ जाता। खुद के लिए तो भूख सह भी लेती पर पति व बच्चों का भूखा रहना उसे पीड़ा देता। उसमे सोचा क्यों न भाई से मिलने जाऊँ। शायद कोई उपहार ही दे दे या मैं खुद कुछ मदद माँग लूँ। अगले दिन वो जाने लगती है घर के बचा कुछ ऐसा रहता नही जो भाई को स्नेह स्वरूप दे दे सिवाय आशीर्वाद के वो खाली हाथ ही भाई के घर जाने को निकल पड़ती है।
जाते-जाते रास्ते पे गौशाला मिलती है जहाँ कामधेनु रहती है वो चुरकी से कहती है, "बिटिया जरा यहाँ का गोबर साफ कर दे, बैठने की भी जगह नही है।" चुरकी तुरन्त ‘हाँ’ कहकर वहाँ का गोबर साफ करती है और आगे बढ़ जाती है।
आगे जंगल पड़ता है, चलते - चलते रास्ते पर एक बेर का पेड़ दिखता है। बेर का पेड़ चुरकी से कहता है, "बहन देखो तो नीचे कितने कांटे बीछे है जरा साफ कर दे।" चुरकी तुरन्त हामी भरती है और कांटे साफ कर देती है।
आगे जंगल के बाद गाँव दिखता है। रास्ते पर एक बूढ़ी अम्मा दिखती है जो सर पर भारी टोकरी रखे रहती है जिसके भार की वजह से उससे चला नहीं जा रहा। चुरकी को देख वो टोकरी को गाँव तक पहुंचाने बोलती है। चुरकी सहर्ष टोकरी अपने सर पर रख गाँव तक पहुँचा देती है।
चुरकी गाँव पहुँचती है तो खेत पर ही उसके भैया मिल जाते है। चुरकी को देख वो दौड़कर जाते है और चुरकी को गले से लगा लेता है। दोनों भाई-बहन घर जाते है। भाभी भी खूब आदर सत्कार करती है। अगले दिन चुरकी अपने ससुराल वापस आने को तैयार होती है कई बार बताती है पर फिर भी भाई उसे कोई उपहार नहीं देता। वो भी कोई मदद नहीं माँग पाती।
उदास मन से लौट जाती है। जहाँ रास्ते में उसे वही बुढ़िया मिलती है जो फिर से टोकरी पकड़ा कर गायब हो जाती है। जिसमे खूब सोना रहता है।