चुनावी भाषण

चुनावी भाषण

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डंका पार्टी से बल्लू ने वार्ड के चुनाव का पर्चा तो भर दिया किन्तु अब सोच सोच के परेशान था कि भाषण कैसे देगा। पार्टी के जिला अध्यक्ष छोटेलाल ने राय दी थी भले ही बड़ा चुनाव नहीं है एक रैली और भाषण तो जरूरी है। उसके बाद घर घर जाकर वोट मांगना।

कुछ समझ में नहीं आया तो वो छोटे लाल जी के पास गया।


छोटेलाल ने पूछा, “कहो कैसे आना हुआ। चुनाव की तैयारी कैसी चल रही है?”

बल्लू बोला, “पर्चे छप गए हैं। बैनर वगैरह भी तैयार हैं। एक समस्या है।”

जिला अध्यक्ष छोटेलाल ने पूछा, “क्या समस्या है?”

बल्लू बोला, “मैंने कभी भाषण नहीं दिया। भाषण में मैं क्या और कैसे बोलूँगा?”

छोटेलाल ने कहा, “इतनी सी बात है? अभी ज्ञान पुस्तक भंडार पे चले जाओ। वहाँ तैयार भाषण मिलते है। वार्ड के चुनाव वाला भाषण खरीद के रट लेना या रैली में उसे पढ़ देना।

बल्लू तुरंत ज्ञान पुस्तक भंडार पहुंचा और दुकान दार से बोला, “वार्ड चुनाव रैली का भाषण चाहिए।”

दुकानदार ने पूछा, “कितने मिनट या घंटे का भाषण चाहिए?”

बल्लू को ज्यादा देर बोल पाने में संदेह था अतः उसने पूछा, “पंद्रह मिनट वाला है क्या ?”

दुकानदार बोला, “मेरे खयाल से आधा घंटे वाला ठीक रहेगा। दूसरे प्रत्याशी यही ले गये। जितना बोलना है बोलिए जब बंद करना हो इंकिलाब जिंदाबाद बोलकर बंद कर दीजिए।” बल्लू को विचार पसंद आया।

बल्लू ने पूछा, “कितने का है?”

दुकानदार, “बस पाँच हज़ार रुपए।”

बल्लू के मुंह से निकला, “इतना महंगा ?”

दुकानदार ने पूछा,”आप खुद प्रत्याशी हैं?”

बल्लू ने कहा, “हाँ।“

दुकानदार ने फिर पूछा, “पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं?”

बल्लू बोला, “हाँ।”


दुकानदार मुस्कराते हुए बोला, “ठीक है। आप साढ़े चार हज़ार दे दीजिए।“ बल्लू ने रुपए देकर भाषण खरीद लिया। भाषण पुस्तिका के रूप में था। बल्लू ने उसे खोलकर देखा। पूरा भाषण आरोपों और अपशब्दों से भरा पड़ा था। बीच बीच में खाली जगहें थीं।

बल्लू को कनफ्यूज होता देख दुकान दार ने बल्लू से कहा, “ नेताजी, भाषण पढ़ने से पहले खाली जगहों में अपने विरोधी का नाम भरना है। यह मत भूलिये।”

बल्लू नेताजी सम्बोधन से प्रसन्न होकर भाषण लेकर अपने घर चला गया। उसकी मुख्य समस्या का समाधान हो गया था।


  



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