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Sarita Maurya

Children Stories

4  

Sarita Maurya

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चींटियों का स्वाद

चींटियों का स्वाद

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दिवाली आने वाली थी ​इसीलिये सबलोग अपने घर की सफाई में लगे हुए थे। कोई जाले साफ कर रहा था तो कोई जाले साफ करने वाले डंडे से कल्लू यानी हमारे मुहल्ले के प्यारे कुत्ते को पीट के साफ कर रहा था। कल्लू का रंग चमकदार काला था और हम बच्चों का वह सबसे अच्छा दोस्त था। क्या हुआ जो जरा सा रसोई में घुस जाता था। उसे भी तो सबके साथ बैठने खाने में मजा आता था। अब बड़ों को कौन समझाये? किसी किसी ने तो अपनी दीवार पर दीवाली की खुशी में फूलों के साथ दिये भी बनाये थे। सुंदर—सुंदर फूलों वाले दिये। और हम मुहल्ले के बच्चे! किसी को अपनी ग्वालिन की गर्दन टेढ़ी लग रही थी तो कोई अपने तराजू से किसी का सामान तोल रहा था। किसी—किसी घर से तो मिठाई बनने की खुश्बू भी आ रही थी और सीधी नाक के अंदर।

रानी ने भी बताया था कि उसके घर में सिंघाड़े का हलवा बन रहा था। अम्मू से पूछना बाकी था कि उनके घर में क्या बनेगा और छोटे भैया से मोटे वाले हंसतु हुए लाला जी भी तो मंगवाने बाकी थे। पता नहीं लाला जी की तोंद इतनीे कैसे बड़ी हो गई? लेकिन इस बार वो लालाजी के पेट में पैसे जरूर इकट्ठा करेगी। लाला जी गर्दन कितनी सुंदर मटकाते हैं। एक प्याला भी तो लेना है नहीं तो इत्ती बड़ी थाली में दूध चावल खाने में कितनी मुश्किल हो जाती है। अब अगर मंझले भैया उसका दूध चावल न छीनते तो उसे गुस्से में अपना प्याला भी नहीं पटकना पड़ता। चीनी मिट्टी का प्याला तोड़ने पर उसे अम्मू की संटी भी खानी पड़ी और डांट भी कि उसने भैया को एक कौर क्यूं नहीं खिलाया। अब वो अम्मू को कैसे बताये! उसे दूध चावल इतना पसंद था कि किसी को देने का मन ही नहीं करता था।

स्वीटू अपनी यादों से बाहर आकर कल्पना सागर में गोते लगाने लगी। मार तो हर बार खानी पड़ती है लेकिन इस बार पूरी मिठाई जम के खानी है। अब सालभर तो डांट ही खानी है कि ये मत खाओ गला खराब हो जायेगा, वो मत खाओ दंत सड़ जायेंगे, वगैरा—वगैरा। अरे भ्ई!!!!!! मिठाई घर में न हो तो मत खाओ लेकिन मनपसंद मिठाई रखी हो तो फिर रूका नहीं जाता। अभी स्वीटू का कल्पना संसार शुरू हुआ ही था कि अम्मू बाजार से वापस आ गई। 'स्वीटू देखो तो मैं तुम्हारे लिए ढेर सारे बालूशाही और मीठे खिलौने लाई हूं।

मीठे खिलौनों की बात सुनते ही उसे अम्मू की आधी बात सुनाई नहीं दी, वो सरपट भागी, अहा! मीठे खिलौने, मजा आ गया। स्वीटू को मीठे खिलौने इतने पसंद थे कि बाकी सारी मिठाइयां छोड़ी जा सकती थीं।

स्वीटू ने देखा कि इसबार के मीठे खिलौनों में बालगणेश, मंदिर, कुल्हड़, गाय, घोड़ा सभी कुछ था। वह मचल पड़ी ‘"अम्मू मुझे खिलौने खाने हैं। अम्मू मैं तेा इन्हीं खिलौनों से खेलूंगी।" मां ने उसे समझाया‘‘नहीं बेटा, दो दिन बाद दिवाली है, और तब फिर पूूजा के बाद ही सबलोग एकसाथ खायेंगे।" " हूं एक साथ कैसे खायेंगे! संजू भैया तो हमेशा सबसे पहले खा लेते हैं और मंझले भैया तब खाते हैं जब वो सो जाती है।" अम्मू की बात सुनकर स्वीटू वहां से चली तो गई लेकिन सचाई ये थी कि उसका मन खेल में कम और मीठे खिलौनों में ज्यादा अटका हुआ था। एक तो चख लेने देतीं प्यारी अम्मू बस उसके बाद सब भगवान की पूजा करके खाते। अम्मू ने सारी मिठाइयां संभाल कर रखी थीं तो जरा स्वीटू को अलमारी के सबसे आखिरी ऊपरवाले खाने में पहुंचने के लिए स्टूल का भी सहारा लेना पड़ता था। ऐसे में अगर कोई देख ले तो बिना पानी के ही धुलाई-सफाई हो जाती। और अम्मा की बांसवाली संटी से लगती बड़े जोर से, और कभी -कभी गुस्सा जाती हैं तो हाथ में जो होता है उसी से पीट देती हैं। पिछले हफ्ते जब बिल्ली ने तेल का डिब्बा गिरा दिया था तो अम्मा को पता चल गया कि स्वीटू दरवाजा बंद किये बिना ही खेलने चली गई थी। फिर! फिर तो अम्मू के हाथ में नया-नया कंघा था और अम्मू ने उसी कंघे से स्वीटू की पिटाई कर डाली। कभी पैर में तो कभी सिर पर तड़ातड़ कंघे पड़ रहे थे और स्वीटू रोती-रोती सोच रही थी कि अब कभी दुबारा कोई ऐसा काम नहीं करेगी कि उसे अम्मू के कंघे से मार खानी पड़े।

मीठे खिलौनों का स्वाद स्वीटू को अपनी तरफ बार-बार चिल्लाकर बुला रहा था, मानो कह रहा हो स्वीटू आओ मिठाई खाओ खेल खिलौने खाते जाओ-खुशियां खूब मनाओ, आई दिवाली मिठाई खाओ खुशियां खूब मनाओ। लेकिन अलमारी की तरफ बढ़ते कदमों को फिर से अम्मा की नीम वाली डंडी याद आ गई। बस जरा सा हलवा थाली में उंगली डाल कर चाट लिया था। फिर क्या था -अम्मू के भगवान जी का हलवा जूठा हो गया और.........पटाक से डंडी स्वीटू के हाथ पे, साथ में गाल पर चांटा मुफ्त मिल गया था। उसे समझ नहीं आता था कि अम्मू बड़ी खुशी से बताया करती थीं कि लड्डू गोपाल मक्खन चुराया करते थे तब भी उनकी पूजा क्यों? और उसका हलवा खाने का मन कर गया तो डंडा सटाक और थप्पड़ पटाक.....कहीं खेलने भी नहीं जाने दिया सो अलग। सारी कशमकश में पूरा एक दिन बीत गया और रातभर स्वीटू को मीठे खिलौने बुलाते रहे।

आज छोटी दिवाली थी और अम्मू बाहर पूजा के दिये जला रही थीं। बस, बहुत हो चुका! आखिर कितना इंतज़ार और करना पडे़गा? अभी अम्मू कहेंगी कि भैया के साथ खाना हुंह! चलो ज्यादा नहीं खाना चाहिये पर एक का स्वाद तो लिया जा सकता है। स्वीटू ने धीरे से अलमारी के अंदर डिब्बे में हाथ डाल कर एक मीठा खिलौना निकाल लिया और खट् से काट लिया..... पर आज मीठे खिलौने का स्वाद कुछ अलग सा क्यूं आ रहा है? जाने कैसा नमकीन सा खट्टा सा! ओफ्फो अब ये मिठाई वाले अंकल भी मिठाई गड़बड़ दे रहे हैं क्या? अब मीठे खिलौने को खट्टे नमकीन स्वाद में खाना है तो फिर इमली या कैथा खा लिया जाये। अरे ! अरे! ये हाथ पर क्या चल रहा है, तबतक जल्दी से स्वीटू ने मीठा खिलौना एक बार और काट लिया। आक थू, आक थू उसका पूरा मुंह अजीब से स्वाद से भर गया था और उसके हाथ पर तो मानों किसी ने हमला कर दिया हो। चोरी की मिठाई होने की वजह से वो बाहर नहीं जा सकती थी। अभी जरा सी बात पर उसके साथ डंडा बज़ार हो जाती। भैया और दूसरे लोग हंसते सो अलग। अब वैसे तो संजू भैया भी खोया चुराकर खाने के लिए उसे गोद में उठाकर अलमारी पर चढ़ाते थे लेकिन उसके मुह खोलने पर मारने की धमकी देते थे। अब पकड़ी जाती तो उसकी तरफ से कौन बोलेगा। स्वीटू ने जल्दी-जल्दी अपना सिर झटकना शुरू किया। लेकिन यह क्या उसका सिर खटाक से अलमारी में भिड़ गया। दर्द से उसकी चीख निकल पड़ी।

स्वीटू के हाथ, मुंह और सिर पर चींटियां घूम-घूम कर काट रही थीं। स्वीटू चिल्लाती कूदती अम्मू के पास जाती इससे पहले ही पूरा परिवार इकट्ठा हो गया। अम्मू ने जल्दी से उसकी फ्राक निकाली और कुल्ला करने के लिए पानी दिया। भैया उससे बार -बार पूछ रहे थे! क्यूं स्वीटू , चीटियों का स्वाद कैसा था? और अम्मू को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वो उसे डांटें या चींटियां निकालें। उन्होंने जल्दी से उसके सिर पर पानी डाल दिया और कुल्ला करने के लिए नमक-पानी देते हुए हिदायत दी ‘‘पूरा पानी जल्दी से पियो। स्वीटू का मुंह शर्म से लाल था या चीटियों के काटने से?अम्मू के सिवाय किसी को समझ नहीं आ रहा था। उधर स्वीटू सोच रही थी तौबा-तौबा! अब तो कभी भी किसी भी मिठाई की चोरी नहीं करूंगी। अगर मिठाई में चीटियों की जगह काॅकरोच, छिपकली या चुहिया बैठी होती तो उसके मुंह का स्वाद..... आक, आक आक...................



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