छोटी सी ख्वाहिश
छोटी सी ख्वाहिश
काम पूरा होने के बाद सफाई करने वाली दीदी फूलबाई मेरे पास आकर बैठ गई। मैं हॉल में टीवी देख रही थी जिसमे कार्यक्रम आ रहा था ' आप भी करें अपने सपनो को साकार' । उस वक्त मेरे मन मे यह बात आई कि हर इंसान की कुछ न कुछ ख्वाहिश होती है तो सफाई वाली दीदी का भी कोई न कोई सपना जरूर होगा और मैंने उस से पूछा- "दीदी तुम्हारा भी कुछ सपना है तो बताओ।" उसने शरमाते हुए कहा- दीदी जब मैं भैय्या के कमरा म पोछा करे बर जाथव तो एकदम ठंडा रहिथे, मोला अइसे लगथे के थोड़कुन बर महू ओ कमरा म आराम कर लेतेवं(जब मैं भैय्या का कमरा साफ करने जाती हूँ तो कमरा ठंडा रहता है ऐसा लगता है कि मैं उस कमरे में थोड़ी देर आराम करती)। कहाँ हमारी ख्वाहिश कार, बड़ा मकान, अच्छी नौकरी, महंगे कपड़े या देश-विदेश घूमने की होती है" ऐसे में फूलबाई के इस छोटी सी ख्वाहिश को सुनकर मुझे लगा के मैं उसकी ये इच्छा तो पूरी कर ही सकती हूँ। मैंने मुस्कुराते हुए उसे कहा कि आज दोपहर को बर्तन धोने जल्दी आ जाना । जब वह तीन बजे आई तो मेरे बेटे का कोचिंग टाइम था और वह कोचिंग गया था। मैंने बेटे के रूम का एसी चालू कर दिया था और फूलबाई के आते ही मैं उसे कमरे में ले गई और बोली "चलो आज तुम्हारी छोटी सी ख्वाहिश पूरी कर देती हूँ तुम एक घंटा भैय्या के ठंडे कमरे में आराम कर लो फिर उठ कर काम करना" फूलबाई मुझे हतप्रभ से देख रही थी उसकी मनोदशा समझ कर "मैंने उसे समझाते हुए कहा चल जल्दी से आराम कर ले भैय्या कोचिंग से आ जायेगा तो उसे पढ़ना रहेगा" यह कहते हुए मैं कमरे से निकल गई । थोड़ी देर बाद जब मैं कमरे में गई तो फूलबाई नीचे चादर बिछाकर सोई थी उसके चेहरे में संतुष्टी के ऐसे भाव थे जैसे वह जन्नत में हो। उसके चेहरे मे संतुष्टि और खुशी के भाव देखकर मेरा मन खुश हो गया, लगा कभी- कभी किसी की छोटी ख्वाहिश पूरी करने से हमें जो आत्म संतुष्टि मिलती है वह अपनी बड़ी ख्वाहिश के पूरी होने पर भी नहीं मिलती।