satish bhardwaj

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5.0  

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बुन्दू ताऊ

बुन्दू ताऊ

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बुन्दू ताऊ जीवन के 65 वर्ष बिता चुके थे। अब सब उन्हें “बुन्दू ताऊ” ही कहते थे। कोई नहीं था जो ये बताये कि पुरोहित ने उनका क्या नाम सुझाया था और कैसे अपभ्रंश बुन्दू की उत्पत्ति हुई। बुन्दू ताऊ के पास बहुत से किस्से थे अपनी उपलब्धियों के, लेकिन ताई हमेशा कहती थी “उत्ते नै कुछ ना करा चिलम फूंकने अर सराप पिने सै सिवा, यो तो मैं ही..... होर कोई होत्ती तो चली जात्ती छोड़ कै।"

बुन्दू ताऊ कभी स्कूल तो गए नहीं थे। पिता ने दो तीन वर्ष अथक प्रयास किये गाँव की पाठशाला में पढ़ाने के। लेकिन आखिर बुन्दू के बाल-अवतार ने सिद्ध कर दिया कि शिक्षा जैसी भौतिक अकांक्षाओ से परे हैं वों। यौवन के 15 वें वर्ष की दहलीज पर आते ही बुन्दू कुछ महान संतों के सानिध्य में आकर चिलम फूंकने में माहिर हो गए थे। बाकी अफीम, गांजा पर भी पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। जवानी का 20 वाँ साल आते आते तो बुन्दू चिलम फूंकने की विधा में इतने पारंगत हो चुके थे कि पहले ही दम में अपनी प्रतिभा का यशोगान करती हुयी ऊँची अग्नि की लुक चिलम से उठा देते थे। काफी नाम कमा लिया था बुन्दू ने। बुन्दू की प्रतिभा यहीं तक नहीं रुकी वो एक सम्मानित शराबी भी थे। इकलौता उदाहरण थे बुन्दू जिनका शराबियों की महफ़िल और भंगेडियों की टोली में बराबर सम्मान था। बुन्दू की प्रतिभा इतनी ही नहीं थी, वो घर में ही कनस्तर के भपारे से शराब निकालने में माहिर थे और बुन्दू के हाथ का उतरा सुल्फा भी ख़ास स्थान रखता था। लेकिन ये सब बुन्दू करते अपने लिए ही थे। बुन्दू को अपनी प्रतिभा पर बिलकुल अभिमान नहीं था। चिलम में लम्बा कश तब तक खींच कर जब तक की चिलम की अग्नि की ज्वाला ऊँचे उठकर बुन्दू की शक्ति को नमन ना करे फिर अपनी चढ़ी आँखों को झपझपा कर बुन्दू बोलते थे “मैं क्या हूँ सब बाबा भोले नाथ का प्रताप है।" सामान्यतया भांग फूंकने वाले शराब नहीं पीते और शराबी भांग नहीं पीते। लेकिन बुन्दू ताऊ इस मामले में अपवाद थे, दोनों ही दैवीय पदार्थो का सेवन बराबर करते थे। और इसके पीछे बुन्दू ताऊ का एक गूढ़ दर्शन भी था। वो कहते थे “भाईईईईईई शराब यादमी के भित्तर जोश बढ़ा.... अर भांग मन कु शांति दे। तो दोन्नो कु बराबर लो, कोई सिमस्या ई ना हो। इब ये सराप्पी पियों जा.... अर फेर भिड़ते फिरो जां।जोश कु होश की जुरुत हो, तो सराब तै जोश आ अर सुल्फा दिमाग कु होश मै रक्खै”

वैसे बुन्दू ताऊ का आचरण उनके इस गूढ़ दर्शन को प्रमाणित भी करता था। बुन्दू अपने ही भपारे की निकली कच्ची पीने के बाद साक्षात् काल का अवतार बन जाते थे। उस समय वो चीन से अत्यंत क्रुद्ध होते थे। आखिर हो भी क्यों ना, चीन ने उनके अराध्य शिव के वास स्थान पर जो अतिक्रमण कर रखा था। वो बस तुरंत चीन पर आक्रमण के लिए उद्यत हो उठते थे। वो तो भला हो उन समझदार शराबियों का जो उनके साथ होते थे और उन्हें संभाल लेते थे अन्यथा चीन कभी का मानचित्र से ग़ायब हो गया होता। विश्व में किसी को नहीं पता था कि इन महान शराबियों के कारण विश्व तृतीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से बचा हुआ था।

लेकिन जब वो भांग फूंक लेते थे तो बेहद शालीन होते थे। यदि उनसे कैलाश पर्वत पर आततायी चीन के अतिक्रमण की बात की भी जाती थी तो वो बोलते थे “पापकरम हैं भाई म्हारे, आग्गै तो आवेंगे।चीन की के औकात..... यो तो बाब्बा कु ई ना रहना हा म्हारे गैल।रै नूं बी कहं कि यु तो नशा करै इस्तै दूर रओ, रै बावलो यो तो आशीर्वाद है बाब्बा का”

बुन्दू ताऊ के पास किस्सों की कोई कमी नहीं थी।वो अपने किस्सों में महानायक होते थे। जब उनकी महफ़िल जमती तो वो बताते “सुभास चन्न बोस मझै छोट्टा भाई मान्नै हे” फिर वो बताते थे कि सुभाष चन्द्र बोस हादसे में नहीं मरे थे और उनके बराबर संपर्क में रहे थे।जब नेता जी हिमालय पर गए तो बुन्दू ताऊ उनके साथ गए थे। यूँ ही कभी वो बताते “कह्त्तर मै पकिस्तान के गैल जिब जंग छिड़ी ही तो मैई हा जिन्नै तगड़ी जसुस्सी करी ही” ऐसा कोई भी किस्सा बताते समय बुन्दू ताऊ फुफुसाकर बोलते थे। ऐसे संवेदनशील मुद्दों की गोपनीयता का ध्यान वो हमेशा रखते थे।उनके चेले विस्मृत हो जाते थे, अब ये कहा नहीं जा सकता कि ये प्रभाव किस्सागोई का था या उस बूटी का जो वो चिलम में खींच रहे होते थे। अपने चेलों के विस्मृत चेहेरो को देखकर बुन्दू ताऊ एक बुलंदियों भरा कश चिलम में खींचते और उद्दघोष करते “जय हो पहाड़ वाले बब्बा की।" ये उद्दघोष उनकी विजय के आत्मबोध को दर्शाता था।

घर की खेती बाड़ी अच्छी थी तो कभी कोई आर्थिक समस्या नहीं हुई। अब बच्चे भी सब अपने कामों में ठीक लगे हुए थे। घर में घी दूध की कोई कमी नहीं थी तो सेहत आज भी बढ़िया थी। जब उनके भांग और शराब पीने और उसकी दर का पता किसी डॉक्टर को भी लगता था तो वो आश्चर्यचकित हो जाता था। क्योंकि किसी सामान्य आदमी का स्वास्थ्य भी इतना बढ़िया नहीं था जितना इस उम्र में बुन्दू ताऊ का।

चलिए अब आते हैं बुन्दू ताऊ के जीवन की एक रोचक घटना पर। किसान आन्दोलन चरम पर था और लखनऊ में किसानों की बड़ी रैली थी। बुन्दू ताऊ भी अकेले ही रैली के लिए निकल लिए। धरना समाप्त करके बुन्दू ताऊ कुछ दिन और लखनऊ में ही रुके। वापसी में बुन्दू ने गाज़ियाबाद की रेल पकड़ ली। वहाँ से शामली अपने निवास स्थान निकलना था। ताऊ खिड़की के साथ ही सुखासन लगाए बैठे थे। तभी एक लड़का जो उम्र में 25 वर्ष का होगा पूरे डिब्बे का अवलोकन करते हुए ताऊ के बराबर में ही आकर फंस गया। बुन्दू ताऊ अपने मस्त-मलंग स्वभाव के कारण दुनिया घूमा था और हर तरह के लोगो के सानिध्य में रहा था तो ताऊ को समझते देर नही लगी कि ये लड़का कोई ठग है।

ताऊ अपनी टारजन की बीड़ी में मस्त थे। तभी उस लड़के ने भी एक बीड़ी मांग ली। बीड़ी, हुक्का और भांग भले ही व्यसनों के दायरे में आतें हों लेकिन ये वो माध्यम हैं जो रंग, धन, जाति, संप्रदाय और क्षेत्र के भेद को अलोप कर देते हैं। बिना किसी की जात, स्तर और परिचय जाने लोग आपस में एक ही बीड़ी साझा कर लेते हैं। बुन्दू ताऊ ने भी उस लड़के को बीड़ी दे दी और दोनों दम खींचने लगे। ये सामान्य श्रेणी का डिब्बा था और अब भीड़ भी बढ़ चुकी थी।सामान्य श्रेणी में कोई धुम्रपान पर टोका टाकी नहीं करता। जिसको भी तलब हो रही थी वो अपनी तलब मिटा रहा था।

तभी लड़के ने झल्लाते हुए कहा “ताऊ या मैं रस ना आरो”

बुन्दू ताऊ को ये अपने टारजन ब्रांड का अपमान लगा और बुन्दू ताऊ ने तुनक कर बोला “भाई तै ई मांगी ही... मैं तो नोत्ता दिया ना हा बीड़ी पिन कू”

वो लड़का खींसे निपोर कर बोला “ताऊ जी बीड़ी तो बढ़िया है पर हम तो लम्बे खिलाडी हैं। बीड़ी सु कहाँ चैन मिलेगी कालजे कु”

फिर उस लड़के ने अपनी पतलून की जेब में से एक पोटली नीकाली और भांग की सिगरेट तैयार करके उसमें कश खींचने शुरू कर दिए। दो कश खींचने के बाद लड़के ने बुन्दू ताऊ को भी आमंत्रण दिया। बुन्दू ताऊ ने एकदम नए खिलाड़ी की तरह उत्सुकता दिखाते हुए दो हलके दम मार लिए। लड़के को ख़ुशी हुई और लगा कि शिकार फँस गया अब तो। अब पता नहीं कौन किसका शिकार करने वाला था। एक तरफ लम्बे अनुभव के साथ देहात का देशज बुजुर्ग तो एक तरफ अय्यारी में पारंगत ठग।

भांग की सिगरेट का वो क्रम आगे बढ़ चला। अब तक दोनों आधा दर्जन सिगरेट पी चुके थे। बुन्दू ताऊ एकदम सिखदड की तरह दम लगाये जा रहा था।हर सिगरेट के साथ बुन्दू ताऊ की चढ़ी आँखें देखकर ठग को लगता था कि अबकी सिगरेट में तो बुड्ढा चित्त हो ही जाएगा। लेकिन बुन्दू ताऊ दम खींचे ही जा रहा था। उस लड़के के पेशेवर जीवन में पहली बार कोई मिला था जो इतनी भंग की सिगरेट खींच गया था और अभी भी सुध में ही था। अब तो उस लड़के को भी नशा होने लगा था।

ठग ने देखा की ताऊ की आँखें चढ़ गयी थी तो उसने अंतिम आशा में बची हुई दो-तीन सिगरेट भी दाँव पर लगा दी। ताऊ की चढ़ी आँखें देखकर ठग को उम्मीद थी कि ताऊ एक नहीं तो दो सिगरेट में चित्त हो जायेगा।दो के बाद ठग ने आखिरी बची सिगरेट भी दाँव पर लगा ही दी। लेकिन बुन्दू ताऊ की आँख चढ़ी हुई थी पर सुध में अभी भी था।

अब ठग का समस्त शस्त्र भण्डार समाप्त हो चुका था तो वो ठग चुप होकर बैठ गया। ताऊ ने इशारे से और सिगरेट की मांग की लड़के ने हाथ हिला कर सिगरेट ख़तम होने का इशारा किया।

बुन्दू ताऊ ने एक मोहक मुस्कान के साथ कहा “रै तो फिकर किस बात की भाई, यो बुन्दू ताऊ अखिर किस मरज की दवा...”।

फिर बुन्दू ताऊ ने अपना जखीरा निकाल लिया और एक टार्जन की बीड़ी निकाल कर अपने हाथ का उतरा विशेष सुल्फा बड़े ही करीने से माचिस की तिल्ली से तपा कर तम्बाकू में मिश्रित करके बीड़ी भर कर तैयार कर ली।बाबा भोले नाथ को धन्यवाद करते हुए सुलगा कर एक हल्का कश खींचने के बाद ठग की तरफ बढ़ा दी। अब बेचारा वो लड़का जो ठगी करने आया था खुद ही ठगा सा बुन्दू को देख रहा था। लेकिन बेचारा करता भी क्या? सो बुन्दू से बीड़ी लेकर कश खींचने शुरू किये।

एक तो पहले ही उसके सर पर नशा चढ़ चुका था फिर इस बीड़ी ने तो जैसे उसके दिमाग में सीधी टक्कर मार दी। लड़का एक अलग ही दुनिया में पहुँच गया था। आखिर हो भी क्यूँ ना? बुन्दू ताऊ के हाथ के उतरे माल और बुन्दू ताऊ के हाथ से बनी बीड़ी की प्रसिद्धि तो दूर दूर तक थी। ठग ने दो तीन दम और खींचे और दैवीय दुनिया से धरातल पर वापस आते हुए जैसे ही बुन्दू ताऊ की तरफ देखा तो बुन्दू ताऊ दूसरी बीड़ी बनाकर उसे सुलगा चूका था।अब ठग को एकदम से आभास हुआ कि हो ना हो इस बुड्ढे ने अपने लिए हलकी बीड़ी बनायीं है और मुझे जरा तगड़ा माल भरकर दिया है। उस ठग ने नशे में ही कहा “ ताऊ जी मोये तो तुम अपने वाली बीड़ी दो, या तो ससुरी कछु मजा ना देरी”

बुन्दू ताऊ ने इस प्रस्ताव पर पूर्णत: असहमति जाता दी और कड़क आवाज़ में बोले “अरै उसै ई पिलै”

अब ठग का संदेह और गहरा गया और वो बुन्दू ताऊ की बीड़ी लेने की ज़िद पर अड़ गया अंत में उस ठग को पहली विजय प्राप्त हुई और बुन्दू ताऊ ने अपनी बीड़ी उसे दे दी और उसकी लेकर स्वयं कश खींचने लगे।

उस लड़के ने जैसे ही इस वाली बीड़ी में दम मारे तो इस बीड़ी का प्रभाव तो और भी ज्यादा अलोकिक और प्रलयंकारी था।वास्तव में चिलम खींचने वाले बुन्दू ताऊ का सिगरेट पीने से स्वाद ख़राब हो गया था तो ताऊ ने उस ठग के लिए बीड़ी बनाकर अपनी जरा और कड़क बीड़ी तैयार की थी।

उस बीड़ी के निपटने से पहले ही वो ठग निपट चुका था। अब वो ठग चार आयामी दुनिया में पहुँच गया था। ठग का स्थूल शरीर अपनी जगह पर ही बिना रीढ़ के प्राणी की तरह बलखाया सा पड़ा था। बुन्दू ताऊ के हाथ के उतरे सुल्फे और उनके ही हाथ से बनी प्रलयंकारी बीड़ी को झेल पायें ऐसे तो अभी उनके चेले भी गिनती के ही थे।अब इस ठग को 24 घंटे से पहले तो होश आना नहीं था।

बुन्दू ताऊ की बीड़ी भी निपट चुकी थी। बुन्दू ताऊ ने एकबार उस लड़के को देखा और हँसते हुए अपनी पोटली में से चिलम निकाल कर उसे भरा फिर उसे सुलगा कर अपनी विख्यात शैली में एक जोरदार दम मारा, चिलम में से अग्नि की ज्वाला ने ऊँचे उठकर बुन्दू ताऊ की क्षमता से आसपास वालो को परिचित करवाया। ज़ोरदार दम खींचकर बुन्दू ताऊ ने चिलम मुहँ से हटाई और एक ओजस्वी उद्घोष किया “जय हो पहाड़ वाले बाब्बा की।"



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