Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Children Stories Inspirational

5.0  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Children Stories Inspirational

बिखरते मोती

बिखरते मोती

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"चल संजू आइसक्रीम खाने चलें " शाहिद ने संजय की पीठ पर धौल जमा कर कहा। 

 

"अरे शाही यार, थोड़ा प्यार से मार।मेरी रीढ़ की हड्डी न टूट जाय " संजय ने मुँह बना कर हँसते हुए कहा। 


"अरे तुम दोनों अपनी प्यार -मोहब्बत छोड़ जल्दी से चलो। आइसक्रीम की दुकान बस बंद होने वाली है।" गुरुप्रीत ने उन्हें याद दिलाया।

 

"तू भी किन्हे टोक रहा है गुरी, ये तो ऐसी ही नौटंकी करते रहेंगे। चल हम दोनों भाग के दुकान तक जल्दी से पहुंच जाते हैं " जैकब झट से बोला। 


संजय, शाहिद, गुरुप्रीत और जैकब -चारों बचपन के गहरे दोस्त थे। उनके घर अगल बगल में थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे। उम्र में भी बस एक आध साल से ज्यादा का अंतर नहीं था। सबसे बड़ी बात की चारों ही अपने स्कूल की फुटबाल टीम में थे। तो बस दोस्ती इतनी गहरी थी की एक दूसरे की दांत काटी रोटी से भी कोई परहेज नहीं था। 


स्कूल और मोहल्ले के बाकी बच्चे उनकी पक्की दोस्ती देख खुश भी होते थे पर कभी कभी जलते भी थे। कई बच्चे कोशिश कर चुके थे उनकी दोस्ती तुड़वाने की।पर सचमुच ही बेहद मजबूत जोड़ था उन सभी के दिल में। 

उनके घरवाले भी उन की दोस्ती से खुश थे। चारों बेहद शरीफ थे। पढ़ने में अव्वल। हाँ मौजमस्ती भी पूरी करते थे। 

फिर अचानक ही शहर का माहौल बदलने सा लगा। फेसबुक और व्हाट्सप्प पर अलग अलग धर्मों के लोगों के बीच की छोटी सी तकरार या छोटा सा मतभेद भी सब बढ़ा चढ़ा कर वायरल करने लगे। 


संजय की कक्षा का एक लड़का मोहन काफी टाइम से संजय का दोस्त बनने की कोशिश कर रहा था। पर संजय के अपने जिगरी यार होते हुए उसकी जिंदगी में मोहन के लिए कोई खास जगह होना बेहद मुश्किल था। मोहन भी फुटबॉल टीम में था। उसे अक्सर ये लगता था की संजय और उसके दोस्त सारे अच्छे पास एक दूसरे को ही देते थे। इसीलिए शाहिद ही सबसे ज्यादा गोल करने वाला खिलाड़ी रहता था। 

मोहन अक्सर सोचता था की काश संजय और उसके दोस्तों में शाहिद की जगह उसे मिल जाय तो फुटबाल टीम में उसके गोल सबसे ज्यादा होने से कोई नहीं रोक पायेगा। 


वो मौका मिलते ही संजय और गुरुप्रीत को सोशल मीडिया में धर्म से संबंधित भड़काऊ पोस्ट दिखाता रहता था। झूठी और एकतरफा पोस्टों ने धीरे धीरे जहर का काम किया और सालों की दोस्ती खतरे में पड़ गयी। 

संजय और गुरुप्रीत शाहिद से कुछ कुछ कतराने सा लगे। जैकब को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आयी। वो शाहिद के साथ ही डट कर खड़ा रहा। 


इसी बीच फूटबाल टीम का एक महत्वपूर्ण मैच खेला जाना था। फुटबाल कोच को प्रैक्टिस मैच के दौरान ही लग गया की जीन चार महत्वपूर्ण खिलाडियों के बीच के सटीक तालमेल की वजह से स्कूल की टीम आसानी से जीत जाती थी वही चारों अब दो अलग अलग खेमों में ऐसे बंट चुके हैं की उनके बीच के मनमुटाव की वजह से वही मैच में हार की जड़ बन जाएंगे। कोच ने उन्हें बेहद समझाने की कोशिश की पर नाकामयाब ही रहे। 


जिसका डर था वही हो गया। मैच के दौरान जब शाहिद आसानी से गोल कर सकता था, संजय ने उसे बॉल पास न कर बॉल को गोल से दूर खड़े मोहन को पास दिया। नतीजा की मोहन गोल नहीं कर पाया और टीम हार गयी। 

टीम की हार के बाद सब खिलाडियों के चेहरे लटक गए। कोच ने संजय को न केवल बेहद बुरी तरह डांटा बल्कि उसे टीम से तुरंत बाहर कर दिया। 

संजय को बेहद बुरा लगा। वो मोहन के पास अपना दुःख बांटने चल पड़ा। मोहन अपने फोन पर किसी से बात कर रहा था 


"अरे यार मैंने तो सोचा था की संजय और उसके दोस्तों में दरार डाल कर मेरा फायदा हो जाएगा। पर आज टीम हार गयी तो कोच ने तो संजय को टीम से बाहर ही कर दिया है। अब उसकी दोस्ती को मैं क्या शहद लगा के चाटूँ। कितना टाइम बर्बाद किया मैंने उसे विडिओ और मैसेज दिखाने में। सारी मेहनत फालतू ही थी। "


संजय ये सुन कर तो सन्न रह गया। फिर उसे पूरी बात समझ आयी तो लगा की शर्म के मारे धरती में गड जाए। कितनी आसानी से धर्म के नाम पर बरसों पुरानी दोस्ती को भुला बैठा था। जिस टीम में एकता नहीं वो कभी जीत नहीं सकती ये मूल मन्त्र भी याद नहीं रखा। आत्मग्लानि से उसकी आँखे नम हो गयीं। 

वो उलटे पैर वापस लौट आया। सोचा कोच से माफी मांग ले। पर कोच के पास पहुंचा तो उसकी ऑंखें खुली की खुली रह गयी। शाहिद और जैकब वहीं मौजूद थे। दोनों कोच से संजय को वापस टीम में रखने के लिए मिन्नतें कर रहे थे। 

संजय से रुका नहीं गया वो दौड़ कर शाहिद और जैकब के गले लग गया। गुरूप्रीत भी आकर उन सबसे चिपक गया। 


कोच ने उन सब को देखा तो उनके होठों पर मुस्कान आ गयी। वो जान गए की एक ही माला के बिखरते मोती एक बार फिर साथ खड़े हैं। अब अगले मैच में टीम की जीत पक्की थी। उन्होंने संजय की भूल माफ़ कर उसे वापस टीम में ले लिया। 

तो ये दोस्त तो फिर मिल गए। एकता की शक्ति लिए जीत की तरफ अग्रसर। 


सोचिये की अगर एक टीम बिना एकता और तालमेल के जीत नहीं सकती तो क्या एक देश जीत सकता है कभी अपने करोड़ों मोतियों में बिखराव और टकराव के साथ ??

कोई भी धर्म हो कोई भी जाति हो हर भारतवासी का साथ चाहिए देश को आगे ले चलने में। वर्ना आपसी मतभेद में हम खुद ही अपने देश को हरा बैठेंगे। दुश्मन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। 



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