Charumati Ramdas

Children Stories Horror Thriller

4.2  

Charumati Ramdas

Children Stories Horror Thriller

बीस साल पलंग के नीचे

बीस साल पलंग के नीचे

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वो सर्दियों की शाम मैं कभी नहीं भूलूँगा। कम्पाऊण्ड में ठण्ड थी, तेज़ हवा चल रही थी, वो गालों को, जैसे चाकू से चीर रही थी, बर्फ खूब तेज़ी से गोल गोल घूम रहा थी। बहुत उदास और ‘बोरिंग’ लग रहा था, बिसूरने को जी कर रहा था, और ऊपर से पापा और मम्मा पिक्चर देखने चले गए थे। तो, जब मीश्का ने फ़ोन करके मुझे अपने घर बुलाया, तो मैं फ़ौरन कपड़े पहनकर उसके घर चला गया। वहाँ ख़ूब उजाला था और गर्माहट थी और काफ़ी सारे लोग आए थे।

अल्योन्का आई, उसके पीछे पीछे कोस्तिक और अन्द्र्यूशा आए। हम सभी तरह के खेल खेल रहे थे, और ख़ूब शोर हो रहा, ख़ुशी हो रही थी। और अंत में अल्योन्का ने अचानक कहा:

 “और अब, छुपन-छुपैया खेलते हैं ! चलो, छुपन-छुपैया खेलें !”

हम छुपन-छुपैया खेलने लगे। ये बहुत बढ़िया था, क्योंकि मैं और मीश्का पूरे समय इस तरह से ट्रिक चलते रहे, कि ढूँढ़ने का काम छोटे बच्चों पर पड़े : कोस्तिक पे या अल्योन्का पे, और हम ख़ुद छुपते रहे और छुटकों की नाक में दम करते रहे। मगर हमारे सारे खेल सिर्फ मीश्का के कमरे में ही हो रहे थे, और जल्दी ही हम इससे ‘बोर’ हो गए, क्योंकि कमरा बहुत छोटा था, तंग था और हमें या तो परदे के पीछे, या अलमारी के पीछे या सन्दूक के पीछे ही छुपना पड़ रहा था, और अंत में हम चुपके से मीश्का के कमरे से छिटक कर बड़े, लम्बे कॉरीडोर में खेलने लगे।

कॉरीडोर में खेलने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था, क्योंकि हर दरवाज़े के पास हैंगर-स्टैण्ड थे, जिनमें ओवरकोट और फ़र-कोट लटक रहे थे। ये हमारे लिए काफ़ी अच्छा था, क्योंकि, जैसे, अगर कोई हमें ढूँढ़ने आ रहा है, तो वह फ़ौरन तो अंदाज़ नहीं लगा पायेगा कि मैं मारिया सिम्योनोव्ना के ओवरकोट के पीछे छुपा हूँ और फ़र-कोट के नीचे रखे लम्बे बूट्स में घुस गया हूँ।     

जब कोस्तिक पे ढूँढ़ने की बारी आई, तो वह दीवार की तरफ़ मुँह करके खड़ा हो गया और ज़ोर से चिल्लाने लगा:

 “एक ! दो ! तीन ! चार ! पाँच ! पहुँचा मैं तुम्हारे पास !”

अब सब बच्चे छुपने के लिए अलग-अलग दिशाओं में भागे, कोई कहीं, तो कहीं। कोस्तिक ने कुछ देर इंतज़ार किया और फिर से चिल्लाया:

 “एक ! दो ! तीन ! चार ! पाँच ! पहुँचा मैं तुम्हारे पास ! दूसरी बार !”

ये दूसरा सिग्नल समझा जाता था। मीश्का फ़ौरन खिड़की की सिल पे चढ़ गया, अल्योन्का – अलमारी के पीछे, और मैं और अन्द्र्यूश्का कॉरीडोर में भागे। अन्द्र्यूश्का ज़्यादा कुछ सोचे बगैर मारिया सिम्योनोव्ना के फ़र-कोट के अन्दर घुस गया, जहाँ मैं हमेशा छुपता था, और पता चला कि अब मेरे पास छुपने के लिए कोई जगह ही नहीं बची ! मैं अन्द्र्यूश्का को एक चांटा मारने ही वाला था, कि मेरी जगह छोड़ दे, मगर तभी कोस्तिक ने तीसरा सिग्नल भी दे दिया:

 “छुपे, ना छुपे, चला मैं आँगन से !”

मैं डर गया, कि वो मुझे अभ्भी देख लेगा, क्योंकि मैं छुपा ही नहीं था, और मैं घायल ख़रगोश की तरह कॉरीडोर में इधर उधर भागने लगा। तभी मैंने एक खुला हुआ दरवाज़ा देखा और मैं फ़ौरन उछल कर उसके भीतर चला गया।

ये कोई एक कमरा था, और उसमें सामने ही, दीवार के पास, एक पलंग रखा था, ऊँचा और चौड़ा, तो, मैं फ़ौरन इस पलंग के नीचे घुस गया। वहाँ थोड़ा अंधेरा था और कई सारी चीज़ें पड़ी थीं, मैं ग़ौर से उन्हें देखने लगा। पहली बात, इस पलंग के नीचे अलग-अलग फ़ैशन के कई सारे औरतों के जूते थे, मगर वे सब काफ़ी पुराने थे, लकड़ी की एक चिकनी सूटकेस भी थी, और सूटकेस के ऊपर एल्युमिनियम का एक बेसिन उल्टा रखा था, मैं बड़े आराम से एडजस्ट हो गया: सिर को एल्युमिनियम के बर्तन पे, कमर के नीचे सूटकेस – बहुत हलका और आरामदेह था। मैं अलग-अलग तरह के स्लीपर्स और चप्पलें देख रहा था, और सोच रहा था, कि मैं कितनी अच्छी तरह से छुपा था और कितना मज़ा आयेगा, जब कोस्तिक मुझे यहाँ ढूँढ़ेगा।      

मैंने कंबल का किनारा ज़रा सा हटाया, जो पलंग के चारों ओर से फ़र्श तक लटक रहा था, और जिसने पूरे कमरे को मुझसे छुपा रखा था: मैं दरवाज़े की ओर देखना चाह रहा था, जिससे ये देख सकूँ कि कैसे कोस्तिक भीतर आकर मुझे ढूँढ़ता है। मगर कमरे में कोई कोस्तिक-वोस्तिक नहीं, बल्कि एफ़्रोसीन्या पेत्रोव्ना आई, ये थी तो प्यारी सी बूढ़ी औरत, मगर कुछ-कुछ बाबा इगा (रूसी लोक कथाओं की जादूगरनी) जैसी थी।

वह तौलिए से हाथ पोंछती हुई आई।

मैं पूरे समय ख़ामोशी से उसकी तरफ़ देख रहा था, सोच रहा था, कि जब कोस्तिक मुझे पलंग के नीचे से खींचकर निकालेगा, तो वह कितनी ख़ुश हो जाएगी। मैं भी हँसाने के लिए उसका कोई जूता दाँतों में पकड़ लूँगा, तब तो वह हँसते हँसते गिर ही पड़ेगी। मुझे यक़ीन था कि बस एक-दो सेकण्ड बाद ही कोस्तिक मुझे ज़रूर ढूँढ़ लेगा। इसलिए मैं अपने आप ही हँस रहा था, बिना आवाज़ किए।

मेरा मूड बेहद अच्छा था। मैं पूरे समय एफ़्रोसीन्या पेत्रोव्ना को देखे जा रहा था। इस बीच वो बड़े आराम से दरवाज़े की ओर गई और यूँ ही उसे ज़ोर से बन्द कर दिया। इसके बाद, देखता क्या हूँ, कि चाभी घुमा दी – और बस, काम तमाम ! अन्दर बन्द हो गई। उसने सारी दुनिया से अपने आप को बन्द कर लिया ! मेरे समेत और एल्यूमिनियम के बर्तन समेत। चाभी दो बार घुमा दी।

कमरे में अचानक अजीब सी ख़ामोशी और वहशत सी छा गई। मगर मैंने सोचा कि उसने कुछ ही देर के लिए दरवाज़ा बन्द किया है, एक मिनट को, और अभी खोल देगी और सब ठीक हो जाएगा, और फिर से होगी हँसी और ख़ुशी, और कोस्तिक अपने आप को बड़ा ख़ुशनसीब समझेगा कि ऐसी मुश्किल जगह पे भी उसने मुझे ढूँढ़ लिया ! इसलिए, मैं हालाँकि थोड़ा सा नर्वस ज़रूर हुआ था, मगर मैं एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना को देखता रहा, कि आगे वह क्या करती है।

वो पलंग पे बैठ गई, और मेरे ऊपर स्प्रिंग्स चरमरा उठे, और गाना गाने लगे, मुझे उसके पैर नज़र आ रहे थे। उसने एक के बाद दूसरा जूता उतार दिया और सिर्फ मोज़ों में दरवाज़े तक गई, मेरा दिल ख़ुशी से उछलने लगा।

मुझे यक़ीन था कि अब वो ताला खोलेगी, मगर ये बात नहीं थी। सोचिए, उसने – खट् ! – और लाइट बन्द कर दिया। मैंने फिर से स्प्रिंग्स को अपने सिर के ऊपर बिसूरते हुए सुना, चारों ओर घुप अंधेरा था, और एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना अपने पलंग पे लेटी है, और उसे ये नहीं मालूम है, कि मैं भी यहाँ हूँ, पलंग के नीचे। मैं समझ गया, कि बुरी तरह फँस गया हूँ, मैं अब क़ैद में हूँ, जाल में फँस गया हूँ।

मैं कितनी देर यहाँ पड़ा रहूँगा? अगर एक या दो घण्टे भी पड़ा रहूँ तो ख़ुशी की बात होगी ! मगर, यदि सुबह तक रहना पड़ा तो? और, सुबह भी बाहर कैसे निकलूँ? और, अगर मैं घर नहीं पहुँचा, तो पापा और मम्मा ज़रूर मिलिशिया में शिकायत कर देंगे। मिलिशियामैन आएगा खोजी-कुत्ते के साथ। उसका नाम मुख़्तार है।

और, अगर हमारे मिलिशिया में कुत्ते ही न हुए तो? और, अगर मिलिशिया मुझे न ढूँढ़ पाई तो? और, अगर एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना सुबह तक सोती रही तो, और सुबह अपने फ़ेवरेट स्क्वेयर पे बैठने के लिए गई और जाते जाते मुझे बन्द कर गई तो? तब कैसे? मैं, बेशक, उसकी अलमारी से कुछ निकाल कर खा लूँगा, और, जब वो वापस आएगी, तो मुझे फिर पलंग के नीचे जाना पड़ेगा, क्योंकि मैं उसकी चीज़ें खा चुका होऊँगा, और वह मुझे क़ानून के हवाले कर देगी ! और, इसलिए, शर्मिन्दगी से बचने के लिए क्या मैं हमेशा उसके पलंग के नीचे पड़ा रहूँगा? ये सबसे बड़ी मुसीबत होगी ! बेशक, इसमें कुछ अच्छी बात भी है, कि मैं स्कूल का पूरा जीवन पलंग के नीचे बिता दूँगा, मगर सर्टिफ़िकेट कैसे मिलेगा, ये प्रॉब्लेम है। सर्टिफ़िकेट – बड़े हो जाने का ! पलंग के नीचे बीस साल बिताकर मैं बड़ा तो नहीं हो जाऊँगा, मैं बूढ़ा ही हो जाऊँगा।  

 अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं गुस्से में उस बेसिन पर घूँसे बरसाने लगा, जिस पर मेरा सिर था ! भयानक आवाज़ हुई ! इस डरावनी ख़ामोशी में, घुप अंधेरे में और मेरी परेशान हालत में मुझे ये आवाज़ बीस गुना डरावनी प्रतीत हुई। उस आवाज़ से मैं जैसे बहरा हो गया।

डर के मारे मेरा दिल जम गया। और मेरे ऊपर, इस भयानक आवाज़ से, एफ़्रोसीन्या पेत्रोव्ना जाग गई। शायद वह काफ़ी देर से गहरी नींद में थी, और अचानक ये – पलंग के नीचे से – ताख़-ताख़।।। ! वह कुछ देर पड़ी रही, फिर गहरी साँस लेकर कमज़ोर और डरी हुई आवाज़ में अंधेरे से पूछने लगी:

 “चौ-की-दा-र? !”    

मैं उससे कहना चाहता था: “क्या आप भी, एफ़्रोसीन्या पेत्रोव्ना, यहाँ कहाँ से आया ‘चौकीदार’ ? सो जाइए, ये मैं हूँ, डेनिस्का !” मैं उससे ये सब कहना चाहता था, मगर इसके बदले पूरी ताक़त से छींक पड़ा:

 “आप्छी ! छी: ! छी: ! छी: !।।।”

शायद, इस सब करामात से पलंग के नीचे धूल ऊपर उठी होगी, मगर मेरी छींक से एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना को यक़ीन हो गया कि पलंग के नीचे कोई भयानक बात हो रही है, वह बेहद डर गई और ज़ोर से चिल्लाई:

 “चौकीदार !”

और, मैं न जाने क्यों, फिर से पूरी ताक़त से छींका:

 “आप्छी-ऊ ऊ !”

जैसे ही एफ़्रोसीन्या पेत्रोव्ना ने ये बिसूरने की आवाज़ सुनी, वो और भी धीमी और कमज़ोर आवाज़ में चिल्लाई:

 “चोरी कर रहे हैं !।।।”

ज़ाहिर है, कि फिर उसने ही सोचा कि अगर चोरी कर रहे हैं, तो ये सिर्फ ग़लत बात है, डरावनी बात नहीं है। और अगर।।।तो, अब वो ज़ोर से चिल्लाई:

 “मार डालेंगे !”

कितना झूठ बोलती है ! कौन उसे मार डालेगा? और किसलिए? और किससे? क्या रात को झूठमूठ चिल्लाना चाहिए? इसलिए मैंने फ़ैसला कर लिया, कि ये सब ख़त्म करने का समय आ गया है, और जब वो सो ही नहीं रही है, मुझे बाहर आ जाना चाहिए।

मेरे नीचे की हर चीज़ गरज रही थी, ख़ासकर बर्तन, क्योंकि अँधेरे में तो मुझे दिखाई नहीं दे रहा था ना। शैतान जैसा शोर हो रहा था, और एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना अजीब तरह से चिल्ला रही थी:

 “चोरीकार ! चौकी कर रहे हैं !”

मैं उछल कर बाहर आया, और दीवार टटोलने लगा, कि स्विच कहाँ है, मगर स्विच के बदले मेरा हाथ चाभी पर पड़ा, मैं ख़ुश हो गया कि ये दरवाज़ा है। मैंने चाभी घुमा दी, मगर पता चला कि मैंने अलमारी का दरवाज़ा खोल दिया है, मैं इस दरवाज़े की चौख़ट से गिर गया, और खड़ा होकर चारों ओर भागने की कोशिश करने लगा, सिर्फ सुन रहा था कि कैसे मेरे सिर पे सामान गिर रहा है।

एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना चिंघाड़ रही थी, और मैं डर के मारे गूँगा हो गया, तभी सचमुच के दरवाज़े पर कोई ज़ोर ज़ोर से मारने लगा ! “ऐ, डेनिस्का ! फ़ौरन बाहर आ जा ! एफ्रोसीन्या पेत्रोव्ना ! डेनिस्का को वापस दे दो, उसके लिए उसके पापा आए हैं !”

और पापा की आवाज़:

 “प्लीज़, बताइए, क्या मेरा बेटा आपके यहाँ है ?”

तभी भक् से लाइट जल उठी। दरवाज़ा खुला। और हमारी पूरी टोली कमरे में घुस गई। वे कमरे में दौड़ने लगे, मुझे ढूँढ़ने लगे, और जब मैं अलमारी से बाहर आया, तो मुझ पर पड़ी थीं दो टोपियाँ और तीन ओवरकोट।

पापा ने कहा:

 “तेरे साथ क्या हुआ था? तू कहाँ खो गया था?”

कोस्तिक और मीश्का ने भी कहा:

 “तू कहाँ था, तेरे साथ क्या एडवेन्चर हुआ? बता !”

मगर मैं ख़ामोश रहा। मुझे ऐसा लग रहा था, कि मैं वाक़ई में बीस साल पलंग के नीचे बैठकर आया हूँ।


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