भय

भय

8 mins
860



"बहुत बहुत बधाई हो बिटिया जॉब लग गया"। सुबह से सब रिश्तेदारों के फोन आ रहे हैं ,बधाई देने के लिए। घर में सब खुश हैं और होंगे भी क्यों नहीं , मैं कॉलेज पढ़कर निकली... कि मेरा जॉब लेक्चररशिप के लिए हो गया। सब खुश हैं ,सिवाय मेरे।

मैं ...मैं इसलिए खुश नहीं कि एक तो, इतना दूर चालीस किलो मीटर ,बस से जाना होगा। बस क्या ?ऑटो में आधे किलोमीटर की दूरी तय कर ,मैं आधी हो जाती हूँ ,इतनी उल्टियाँ शुरू हो जाती हैं। ये पेट्रोल ,डीजल की ...उफ्फ्फ!! फिर प्रतिदिन चालीस किलोमीटर का सफर ओह्ह गॉड! जाने क्या होगा मेरा?और दूसरी बात अगले माह मेरी चचेरी बहन की शादी है ,कितनी सारी शॉपिंग करनी है।अब इस बस के सफर और थकान की वजह से कुछ भी नही कर पाऊँगी। कभी-कभी सोचती हूँ कि काश !! सब पदयात्रा ही करते कोई बस-वश रहता ही नहीं ,औऱ स्कूटी से तो इतने दूर जाने का सवाल ही नहीं उठता हाइवे है इसलिए।

तभी दीदी कमरे में आई "ऐ रिंकी तेरे जीजा जी भी फोन करके बधाई दिए हैं ,और बोल रहे थे की रिंकी से जरा पूछना कि,स्कूल तक कैसे जाएगी फ्लाइट से या ट्रेन से; बस में तो कभी सफर ही नही करती न। "

और इतना कहकर दीदी हँसने लगी। मैंने भी गुस्से में कहा "ओहहो दीदी आप भी न! जीजा जी हमेशा मेरा मजाक उड़ाते हैं। ऐसे कोई बधाई देता है भला।" "ओह!! रिंकी अभी तो तुम छुट्टी भी नहीं ले सकती। अब कैसे करोगी दीदी फिर ताना कसने लगी।" मैं गुस्से में कमरे में चली गयी। दीदी औऱ मेरी ज्यादा जमती नहीं थी। दीदी की शादी जल्दी हो गयी। जबकि वो आगे पढ़ना चाहती थी;और मैं अपने सपनो में अपने ड्रीम बॉय को देखती हूँ कि कब हो शादी तो...पहले तो मेरी पूरी पढ़ाई हुई फिर अब जॉब लग गया। बस दीदी को इसी बात की जलन की रिंकी और हममें इतना भेदभाव क्यों?हमें पढ़ाई पूरी नही करने दिए,और ये पंख फैलाकर आसमान में उड़ने की तैयारी कर रही है। जो भी है,मैं तो दीदी को बहुत प्यार करती हूँ, और उम्मीद करती हुँ की कभी हमारा रिश्ता भी अच्छा हो।

अगले दिन स्कूल गयी ,बस में हालत खराब हो गयी। स्कूल में पढ़ाने की जगह हाथ टेक कर सो गई। घर वापस जाते समय खूब सारी उल्टियाँ शुरू हो गयी। अगले दिन फिर वही सिलसिला बस में इतनी ज्यादा भीड़ की मैं पूरे समय खिड़की से बाहर का नजारा देखते रहती थी। कभी -कभी तो शीट ही नहीं मिलती। खड़े-खड़े जाने से दिक्कत नहीं थी,दिक्कत इस बात की,की कुछ मनचले मौके का फायदा उठा धक्का-मुक्की तो कभी छूने की फिराक में रहते।

पन्द्रह दिन ही हुए कि , बस का सफर बहुत संघर्षमय लगा। घर वालों से जिद करके स्कूटी खरीद ली।जबकी पहली तनख्वाह भी नहीं मिली थी,पर बस में सफर करना, मेरे बस की बात नहीं थी।

स्कूटी तो वैसे चलाना नही आता था ,पर सबने कहा कि जो साइकिल चला लेते हैं उनको स्कूटी सीखने की जरूरत नहीं और मैं साइकिल तो बहुत अच्छे से चला लेती थी।अगले दिन ही स्कूटी से निकली अति उत्साह में बिना टेस्ट ड्राइव के निकल पड़ी। रास्ते भर बहुत डर लगा ;बहुत धीमी रफ्तार में बिल्कुल पदयात्री की स्पीड में स्कूटी थी। रास्ते भर ऐसा लग रहा था कि कोई सुरक्षा गार्ड की तरह अगल-बगल चले। कोई स्कूटी से बगल से गुजरती तो दिल करता उसे आवाज दूं कि हमें स्कूटी कोई बंद करना तो सीखा दे। भाई ने चालू कर दिया और निकल पड़े। डरते-डरते दो घण्टे में स्कूल तक का सफर तय की,स्कूल पहुँचते-पहुँचते रफ्तार पैदल चलने लायक हो गयी तो एक बच्चे से पूछी "बेटा बंद कैसे करते हैं ? " वो पहले हंसा,फिर अपनी हँसी रोकते हुए उसने बताया की "चाभी ऐसा घुमा दो।" बस आगे जाकर गाड़ी रोकी व चाभी घुमाई स्कूटी बंद हो गयी। मैं खुशी के मारे उछल पड़ी लंच के समय आधे घण्टे मैदान में स्कूटी चलाना सीखी। छुट्टी के बाद घर आ रही थी अबकी डेढ़ घण्टे में ही पहुँचने वाली थी कि ,बकरियों का झुंड सामने आ गया एक बकरी स्कूटी से टकराई उसे तो कुछ नहीं हुआ पर मैं स्कूटी समेत गिर गयी। चोट लगी कई जगह खून भी आया।हल्की बेहोशी छा गयी।लोगों की भीड़ लग गयी किसी ने बैग से मोबाइल निकाला अब मोबाईल तो लॉक रहता है न पर मेरे मोबाईल में पीछे कवर में दो तीन नम्बर घर के चिपका के रखी हुँ। नम्बर पर फोन लगाया। घर के लोग आए और सीधे हॉस्पिटल ले जा रहे थे पर मैं जिद करके घर आ गयी कि घर से हॉस्पिटल नहीं जाना है।

घर आने के बाद चोट में मरहम पट्टी के लिए हॉस्पिटल जाना था। पापा ने कहा टिटनेस भी लगेगा ये सुनकर प्राण हलक में अटक गया। इंजेक्शन के नाम से तो चक्कर आने शुरू हो जाते है। मैं तैयार भी हो जाऊँ तो घर के लोग, भाई ने मना कर दिया पापा डांटे तो वो किस्सा याद दिला दिए " कि सातवीं क्लास में जब रिंकी थी तो एक बार बुखार आने पर हॉस्पिटल ले गया डॉक्टर ने जैसे ही इंजेक्शन निकाला तो पूरे हॉस्पिटल के केम्पस में रिंकी औऱ उसके पीछे मैं था थकहार कर जब पकड़ी गई तो इंजेक्शन लगवाने के बाद कलाई पकड़कर गुस्से में काट दी थी न बाबा न मैं नही जाता इसके साथ।"

अचानक पापा को भी एक किस्सा याद आया कि "एक बार इंजेक्शन लगवाने ले गया तो; सड़क पर गिर के बेहोश हो गयी।पूरा धूल से नहा ली थी ,ओह्ह!! मेरे भी बस के बात नहीं। "भैया और पापा का किस्सा सुन मुझे याद आया कि एक बार चोट लगने पर घर में सबने डराया की टिटनेस लगवाना ही पड़ेगा। मैंने भी सोचा कि चलो इस डर पर विजयी भव प्राप्त की जाए ये सोच कर अकेले डॉक्टर के यहाँ चली।हिम्मत कर इंजेक्शन भी लगवा ली पर अगले पल बेहोश होकर गिर गयी। तब से अब तक गोलियाँ खाकर काम चलाना पड़ा इंजेक्शन तक नौबत ही नहीं पहुँची।

आखिर चोट लगी तो ज्यादा थी पर हिम्मत करके हॉस्पिटल जाने को तैयार भी हो गयी पापा भी मान गए कि मैं कोई नौटँकी नही करूँगी। हॉस्पिटल पहुँची की होंठ सूखने लगे। मुझे हॉस्पिटल जाने में भी बहुत डर लगता है दवाइयों की बदबू से मन भारी हो जाता है ,इस संसार का नरक हॉस्पिटल औऱ डॉक्टर मुझे यमदूत लगते हैं। भय भी कि हॉस्पिटल में चुड़ैल होती होगी। बहुत किस्सों में मैंने सुना है। मेरी दिल की धड़कन भी बढ़ गयी थी। मैंने पापा का हाथ पकड़ लिया। आगे बढ़े ड्रेसिंग रूम में ले गए।ड्रेसिंग हुआ। डॉक्टर साहब ने जल्द चोट की सूखने की दवाई लिखी। बाते करते हुए इंजेक्शन लेकर उसमें दवाई भरने लगे ये देख भय के मारे कान सन्न होने लगे। आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। बहुत रो -धोकर इंजेक्शन लगवाई और फिर बेहोश हो गयी।

स्कूल फिर बस ..से जाना शुरू की !कुछ दिन बाद चचेरी बहन की शादी थी हम लोग शामिल होने चले गए। बड़े धूमधाम से विवाह हुआ। बुधवार को शादी हुई और विदा होते सबकी मति मारी गयी किसी ने कह दिया गुरुवार को बेटी विदा नहीं करते। शादी तो हो चुकी थी। वरपक्ष इसे वधूपक्ष की मनमानी समझने लगे। बहुत समझाइश कर बाद मुख्य दरवाजे की जगह पीछे के दरवाजे से बेटी की विदाई हुई। गाजे बाजे के साथ पीछे दरवाजे से विदाई हुई। घर का पिछला दरवाजा बहुत कम ही खुलता था। बहुत बड़ी बाड़ी थी जहाँ खूब सारा पेड़ लगाथा।,नींबू,अमरूद,संतरा, बेर व सबसे अलग व बहुत पुराना इमली का पेड़। घर के बच्चे कभी नहीं जाते थे बस बड़े लोग जाते थे,पर आज सभी पिछले दरवाजे की तरफ गए।

शादी के बाद चूंकि बहुत दिनों बाद पैतृक गाँव गए थे तो बीस पच्चीस दिन रुकने का प्रोग्राम था। अभी कुछ दिन हुए दीदी के पगफेरे के लिए जाना था,हम लोग गए तो पता चला कि जीजा व दीदी के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा दीदी बहुत उदास सी थी, न उनके ससुराल के लोग ही बात कर रहे हैं रहा नहीं गया जब अकेले में दीदी से पूछी तो,जो पता चला वो सुनकर मेरे होश उड़ गए।

मैंने ये बात पापा को बतानी चाही पर दीदी के ससुर स्वयं इस विषय पर चर्चा कर रहे थे। ये देख दीदी फिर रोने लगी। जीजा जी ने ढाढस बढ़ाया की "प्रीति चिंता मत कर मैं हूं न साथ।" ये देख हम सबको अच्छा लगा। दीदी को घर ले आये यहाँ तो कुछ दिन रही सब ठीक रहा पर ससुराल जाते ही समस्या शुरू हो जाती । खूब पूजा पाठ करवाये। बात नहीं बनी ,तब एक पहुँचे हुए सिद्ध महात्मा के पास दीदी को लेकर गए।

महात्मा जी को सारी बात बताई की दिन दीदी ठीक रहती है ;लेकिन रात को दीदी नहीं बल्कि उनके शरीर में कोई औऱ है ,ऐसा लगता है। महात्मा जी ने आँखे बंद की। उन्होंने बताया कि घर के पीछे जो इमली का पेड़ है उस पर बुरी आत्मा का साया है। कुछ हवन ,पूजा हुआ करीब दस दिनों बाद दीदी स्वस्थ हो गयी। आगे कोई दिक्कत नहीं आई उनके जीवन में। इमली के पेड़ को लेकर मेरे मन भय हमेशा के लिए बन गया।

सच कहूँ तो मुझे ज्यादा किसी चीजो से डर नहीं लगता पर सुनसान रास्तों पर जब कोई नदी का पुल पड़ता है तो भय लगता है ।

आज काफी वक्त बीत गया स्कूल का सफर बस से ही करती हूँ ,इंजेक्शन से लाख कोशिशों के बाद भी आज भी डर लगता है।

पर अपने जीवन में ये सबक मैंने सीखा की 'आपको किसी चीज से नहीं डरना चाहिए क्योंकि इंसान जिस चीज से डरता है उसका सामना बार-बार होता है और तब तक होता है जब तक कि आपका भय न निकल जाए।



Rate this content
Log in