भय किस से
भय किस से
उससे अब रहा नहीं गया, वह गोद में रखी पुस्तक को हटाकर खड़ा हुआ और अपने ही घर के दूसरे कमरे के बंद दरवाजे पर कान लगा दिया, लेकिन अंदर की आवाजें बाहर तक नहीं आ रहीं थी।
"कहीं उन लोगों ने निशा के साथ कुछ.... उफ्फ! क्या सोच रहा हूँ मैं? निशा ने तो केवल अपने शोध के साक्षात्कार के लिए उन लोगों को बुलाया है... लेकिन वो लोग तो अकेले में ही बात करना चाहते थे.... चार घंटे हो गये हैं और वह बेचारी अकेली...."
उसकी व्यग्रता घड़ी की सुइयों की आवाज़ के साथ और बढ़ती जा रही थी, वह घर के बाहर जाकर उस कमरे की खिड़की से अंदर देखने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह भी अंदर से बंद थी। उसी समय अंदर से कुछ हलचल की आवाज़ आई और साथ में निशा की हल्की सी चीख सुनाई दी।
चीख सुनते ही उसकी आंतरिक ऊर्जा ने उछाल मारी, वह तुरंत खिड़की के ऊपर झरोखे पर चढ़ गया और रोशनदान से झाँक कर कमरे में देखने लगा।
अंदर लगभग सभी ने उसके चढ़ने की आवाज़ सुन ली थी, उनमें से एक ने उसे रोशनदान से झांकते हुए देख कर ताली बजाते हुए विशिष्ट लहजे में कहा, "क्या देख रहे हो? हम लोग कोई इंसान थोड़े ही हैं, जिनसे तुम्हारी पत्नी को कोई डर हो..."
कह कर वह किन्नर फर्श पर गिरे पेन को देखने लगा, जो निशा के हाथ से छूट कर किसी पैर के नीचे दब कर टूट गया था।
