भरी दोपहरी में
भरी दोपहरी में
भरी दोपहरी में भी जीवन व्याकुल होता है, जब किसी की किसी से व्याकुलता का अनवारण होता है, असफलता का होना सफलतापूर्वक रूप होता है, निःशब्द सफलताओं का सफल रूप होता है, भरी दोपहरी में भी कोई ज़िक्र किया नहीं जाता है, अनावरण से ततपश्चात आवरण ही एक अनुयायी होता है।
कल्पना कभी काल्पनिक नहीं होती है, समय निश्चित जिसके विपरीत हो, संघर्ष ही सफलता का आशय है। जिसका किसी संघर्ष से संघर्षपूर्ण जीवन अनुभवी हो।
हर समय दोपहरी प्रहार बनता जा रहा है, जिससे भरी दोपहरी में भी पहर आनंदित हो, अनुरूप अनुकूल जीवन जिसका कभी दोपहरी में गुज़र रहा हों, वही प्रतिपल हर दोपहरी में अपने जीवन का व्याकुलता से करता त्याग हो।
जीवन दोपहरी का निकालना कहां सम्भव है, प्रतिस्पर्धा में भरी दोपहरी का समय जो अनुयायी हो।
सरल सहज और संघर्ष ही जीवन का एक प्रतिपल है, जिसका भरी दोपहरी में भी हो रहा अत्याचार हों।
शब्दों से शब्दों का व्यक्तित्व अब कहाँ हर किसी के समय पर जब हर दोपहर में शब्दों को शब्द में व्यतीत करता हों।
अनुभवी शब्द का कभी कोई आकलन हों, हर भरी दोपहरी में लिखा जो समन्वय का एक निश्चित आवरण हों।
गठित होती है तुलनायें शब्दों की शब्दों से जिसका शब्द ही शब्दों का अनुयायी गठबंधन हों।
भरी दोपहरी में भी जीवन व्याकुलता का होता है, जिस जीवन का जीवन से कोई काल्पनिक नहीं हों। संघर्ष का उत्तरदायित्व किसी की व्याकुलता का अनवारण नहीं हों।
निःशब्द सफलताओं का सफल रूप शब्दों का शब्दों से शब्द अनुरूपी हों, भरी दोपहरी में भी कोई ज़िक्र जिससे किया नहीं जाता है।
ज़िक्र ही ज़िक्र से करना ज़रूरी नहीं
जब ज़िक्र ही ज़िक्र का कभी हो नहीं
कल्पनाओं से भरा अदृश्य है, जिसमें विकल्प का कोई सुंदर सार्थक हो, भरी दोपहरी सोचते सोचते लिखना जिससे मेरा समय निर्धारित हो।
अनवारण से ततपश्चात आवरण ही एक अनुयायी होता है, जिसका किसी से किसी का कोई मतभेद नहीं हो।