भोंकना
भोंकना
घनानन्द के हाते में कुत्ते-बिल्ली का हमेशा आना-जाना लगा रहता था। घनानन्द का बड़ा परिवार था , सो चापाकल के पास कुछ न कुछ खाने के लिए उन्हें मिल ही जाता । लेकिन कुत्ते-बिल्ली की आपस में कभी बनती ही नहीं थी। मौक़ा पाते एक-दूसरे पर छींटाकशी शुरू कर देते ।
एक बार बिल्ली उछलकर आँगन में रखे बालू के टीले पर जा बैठी और कुत्ते को मुँह चिढाते हुए बोली,
”देख भाई, मैं तुमसे बड़ी हो गई, हा..हा..हा....!”
“मौसी, कद से कोई बड़ा नहीं होता..अक्ल से होता है |”
“अच्छा...! बड़ा अक्लमंद का दावा है तो..गली -चौराहे पर इतना तुम भोंकते क्यों रहते हो ?”
“क्या करूँ मौसी ? आजकल बिना भोंके से कोई रास्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं होता !” भोंकते हुए कुत्ता वहाँ से चल पड़ा ।