भल्ला व्यापारी
भल्ला व्यापारी
भल्ला एक बहुत ही ईमानदार और मेहनती व्यापारी था। उसके पास एक ताकतवर ऊंट था। जो बहुत लंबी दूरी तय करने पर भी थकता नहीं था। वह रोज अपने अपने ऊंट पर अनाज लादकर गांव से शहर 50 किलोमीटर दूर जाता था। वह जब शहर जाता था तो रास्ते में एक स्कूल पड़ता था। वहां कुछ गरीब बच्चे स्कूल के बाहर पढ़ते थे। स्कूल के अंदर टीचर जो भी पढ़ाता था। वह गरीब बच्चे उसको सुनते थे।
टीचर द्वारा सुनी हुई बातों को याद करते रहते थे। यह दृश्य व्यापारी रोज देखता था। लेकिन उनकी सहायता नहीं कर सकता था, क्योंकि भल्ला खुद गरीब था और सहायता करने में असमर्थ था।
एक दिन उस व्यापारी को रास्ते में एक थैला पड़ा मिला। व्यापारी ने जब उस थैले को खोला तो उसके अंदर बेशकीमती हीरे थे। उस व्यापारी ने ईमानदारी दिखाते हुए उस हीरे के थैले को शहर जाकर पुलिस थाने में जमा करा दिया। वह हीरे किसी अमीर व्यापारी के थे । पुलिस ने पूरे शहर को सूचित कर दिया कि जिस किसी के हीरे खोए हैं वह आकर अपने हीरे थाने से ले जाए ।
जब उस अमीर व्यापारी लक्खा को अपने खोए हुए हीरे के बारे में पता चला। वह थाने में आकर अपने हीरे लेकर जाने लगा तभी उसने पुलिस वाले से पूछा, यह मेरे हीरे आपके पास किसने जमा कराए थे। पुलिस वाले ने उस गरीब व्यापारी भल्ला का पता बता दिया। फिर वह अमीर व्यापारी उस भल्ला व्यापारी के पास गया उसने इनाम में दो लाख के हीरे भल्ला को दे दिए। लेकिन भल्ला ने हीरे नहीं लिए, उसने कहा मुझे हीरे नहीं चाहिए। आप मेरे साथ स्कूल चलिए और वहां उन गरीब बच्चों को देखिए। आप उनकी पढ़ाई की जिम्मेदारी लीजिए, उन बच्चों को पढ़ा लिखा कर योग्य कर दीजिए। यही मेरा इनाम होगा।
दूसरे दिन भल्ला ने अमीर व्यापारी लक्खा की सहायता से स्कूल के बाहर पढ़ने वाले उन गरीब बच्चों का एडमिशन उस स्कूल में करवा दिया। नई किताबें लाकर दी, बच्चे किताबें देखकर बहुत खुश हुए। उनको स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। भल्ला और लक्खा व्यापारी उन बच्चों की तब तक सहायता करते रहे, जब तक वह बच्चे सरकारी नौकरियों पर नहीं लग गए।
एक दिन भल्ला व्यापारी बहुत बीमार हो गया। उसे शहर के सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जब हॉस्पिटल का मुख्य चिकित्सक रघुराम उनके उपचार के लिए आया। तब उसने भल्ला व्यापारी को पहचान लिया और उनसे कहा:-
" श्रीमान भल्ला जी आपने मुझे पहचाना ?"
भल्ला जी ने बहुत कोशिश की पहचानने की लेकिन पहचान हो सके।
तब उन्होंने कहा:- "डॉक्टर साहब क्या आप मुझे पहचानते हैं?"
जी हां आपको मैं बहुत अच्छी तरह पहचानता हूं ।श्रीमान जी आपका नाम भल्ला व्यापारी है। आप ही मेरे संरक्षक हैं। आप के प्रयत्न के कारण मैं एक सरकारी विद्यालय में पढ़ सका और डॉक्टर बन सका। यह मेरा सौभाग्य है कि आपका इलाज कर रहा हूं।
यह सब सुनकर भल्ला व्यापारी की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। खुशी के मारे बिस्तर से उठा और अस्पताल में झूम उठा। फिर तो बिना उपचार के ही भल्ला व्यापारी पूर्ण स्वस्थ हो गया।
और डॉक्टर का शुक्रिया अदा करके अपने घर चला गया।