भैंसे का शिकार !
भैंसे का शिकार !
किसी समय महा वन नामक वन में एक साहसी और पराक्रमी बाघ रहता था। वह बहुत साहसी और पराक्रमी था। वह जंगली भैसों के झुण्ड में अकेला घुस जाता और सबसे तगड़े नर भैंसे का शिकार कर लेता था।
एक भेड़िया उसका सहायक था। जो उसे शिकार की खोज-खबर देता, साथ ही शिकार को घेरने का काम भी करता था। इसके अलावा बाघ का मूड बनने तक मृत पशु की रखवाली भी करता था। बदले में उसे भरपेट मास खाने को मिलता। वह बाघ का सहायक था इसलिए जंगल के सभी जानवर बाघ उसका आदर भी करते थे।
बाघ और भेड़िया एक दूसरे के पूरक, सहयोगी तथा हितैषी थे। वे बहुत समय तक परस्पर सहयोग करते रहे जिसका उन्हें लाभ भी हुआ। इस तरह उनका कुछ काल बहुत सुखपूर्वक बीता।
एक बार भेड़िया के सिर पर कलियुग सवार हो गया। इससे उसकी बुद्धि डाँवाडोल हो गयी। उसने अपनी तुलना बाघ से किया। उसने सोचा कि इस बाघ की वजह से उसका बल, पराक्रम तथा शिकार चातुर्य संसार के सामने नहीं आ रहा है। मेहनत का सारा कार्य वह करता है और शिकार का सारा श्रेय बाघ ले जाता है। वह सिर्फ शारीरिक बनावट तथा वजन में बाघ से उन्नीस है। दंत, नख, गुर्राहट, जीवटता, बल, पराक्रम, शिकार चातुर्य में वह बाघ के बराबर ही है। दोनों की प्रजाति भी मांसाहारी ही है। इतनी समानताएं होने पर भी उसके शिकार कौशल को भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि बाघ उसे शिकार करने नहीं देता। सिर्फ शिकार को घेरने तथा बाघ की ओर खदेड़ना ही उसका काम रह गया है।
यदि ऐसा ही रहा तब उसके वंशज शिकार करना ही भूल जायेंगे और बाघों के चमचे बनने के सिवाय उनके पास कोई दूसरा काम न होगा।
बाघ की सोच थी कि मेरे लम्बे तीखे दांतो और नाखूनों के होते हुए भेड़िये के अपेक्षाकृत नन्हे-नन्हे दाँतों और नाखूनों को क्यों कष्ट दिया जाये।
उसे तीतर, बटेर, खरगोश, वन बकरी जैसे जीव-जंतुओं का शिकार करने की पूरी छूट है, ताकि उसकी शिकार करने की इच्छा तथा आदत दोनों बनी रहे।
मित्रता ऐसी चीज है कि चले तो सालों-साल वरना चार दिन भी मुश्किल ? भेड़िया खालिस भेड़िया था। मक्कारी उसके खून में थी, साथ ही वह बाघ की छाया से आजाद भी होना चाहता था।
एक दिन उसने बाघ से कहा- महाराज इस बार भैंसे का शिकार मैं करूँगा। आप उसे घेरने का काम करेंगे। मुझे भी अपना हुनर दिखाने का मौका मिलना चाहिए ! उसके अटपटे मांग से बाघ की हँसी छूट गयी वह बोला—। बरखुरदार ! अपना पेट फड़वाने का इरादा है क्या ? जिसकी ताकत अधिक हो, बड़ा काम उसे ही करना चाहिए ! भैंसे का शिकार तुम्हारे वश की बात नहीं है । यह मेरे करने लायक काम है।
बाघ की उचित तथा नीति युक्त बातें भेड़िए को अच्छी नहीं लगी। वह उससे नाराज रहने लगा वह पूरी तरह से ढिठाई पर उतर आया। उसने अपनी नाराजगी को छिपाने की कोशिश भी नहीं की। मौका मिलते ही वह बाघ को आँखें दिखाने लगता।
बाघ भेड़िए की गुस्ताखी को उसकी नादानी और बचकानी हरकत समझकर हँस देता। इसे भेड़िया बाघ की कमजोरी समझता। धीरे-धीरे उसे यह भ्रम हो गया कि बाघ उसके ऊपर पूरी तरह से आश्रित है, और उसके सहयोग के बिना वह सर्वथा असमर्थ है। अतः उसने बाघ को सबक सिखाने को ठान लिया। इसके लिए उसे बाघ के शत्रुओं की तलाश थी। हालांकि उसे इस काम में बहुत भटकना पड़ा, फिर भी उसकी कोशिश कामयाब रही।
महा वन में बाघ का सबसे बड़ा विरोधी एक शूकर था, बाघ ने उसकी एक टाँग मुठभेड़ में चबा डाला था। एक तेंदुआ, जो बाघ के पंजे की मार को नहीं भूला था, जो उसे तब पड़ी थी, जब वह बाघ के शिकार को चुराकर पेड़ के ऊपर छिपाने की कोशिश कर रहा था।
शूकर का मित्र साँप तथा एक लालच का मारा सियार ! शूकर, तेंदुआ, साँप और सियार ये चारों बाघ से बदला लेने को तड़प रहे थे। लेकिन बाघ की बढ़ी-चढ़ी शक्ति के आगे वे लाचार थे। भेड़िये की कोशिशें रंग लाई और एक दिन ये सभी सागौन वृक्ष के नीचे इकट्ठे हुए। विचार-विमर्श का दौर आरंभ हुआ।
तेंदुआ बोला- भाई भेड़िया ! आपका प्रयास सराहनीय है, दुष्ट बाघ की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाना ही चाहिए। मैं उसके थप्पड़ को नहीं भूला हूँ।
शूकर ने कहा – बिल्कुल ! हमें भेड़िये का शुक्रगुजार होना चाहिए क्योंकि इसने हमारे साहस और पौरुष को जगाया है, और हम भैंसे के शिकार में भेड़िया भाई का हर संभव मदद करेंगे। इसीलिए यहाँ इकट्ठा हुए हैं।
सियार बोला – बिल्कुल ! मुझे शिकार को घेरने का अच्छा तजुर्बा है, मैं साथ दूंगा। लेकिन मैं चाहूंगा कि मुझे खाने के लिए भैंसे के पिछले दोनों पैर मिलने चाहिए ! साँप ने फुस्स-फुस्स करने के बाद कहा – मैं अपने जहर से बाघ के शिकार को, उससे पहले ही मार सकता हूँ, लेकिन यह पता कैसे चलेगा कि वह किस भैंसे का शिकार करने जा रहा है?
भेड़िया बोला – भाई लोगों ! हममें से कोई भी बाघ के ‘शिकार’ को उससे छीनकर अकेले नहीं मार सकता। यदि हम सब एक हो जायें तब यह काम कर सकते हैं। हम चाहे पचासों भैंसों का शिकार करें उससे बाघ को कोई फर्क नहीं पड़ेगा ! उसे फर्क पड़े, इसलिए हमें उसी भैंसें को मारना होगा ! जिसके पीछे वह बाघ दौड़ रहा हो या दौड़ना चाहता हो। यदि हम ऐसा कर पाये, तो यह महा वन के इतिहास में अद्भुत तथा अविस्मरणीय घटना होगी। क्या आप सब तैयार हैं ?
जाहिर है हम सब तैयार हैं, इसीलिए यहाँ इकट्ठे हुए हैं—तेंदुए ने कहा – लेकिन शिकार कर चुकने के बाद उसके मांस में हिस्सेदारी को लेकर कोई विवाद न हो, इसलिए यह पहले ही तय कर लेना चाहिए कि शिकार का कौन सा हिस्सा किसे मिलेगा !
बहुत बढ़िया सुझाव है—साँप फुसफुसाया- मुझे भैंसे की जीभ में रुचि है।
ठीक है – भेड़िया बोला- मैं उसकी आगे के दोनों पैरों को खाऊँगा।
तेंदुआ बोला- मुझे उसका पूरा धड़ चाहिए क्योंकि शिकार में सबसे ज्यादा मेहनत तो मेरी ही लगने वाली है। बुरा मत मानना दोस्तों ! मेरे जैसा ताकत तुममें से किसी में नहीं है।
शूकर बोला – क्षमा करें महोदय जी ! माना की आप ताकत में बाघ से कम नहीं है लेकिन मेरे थूथन के ये दाँत कितने कमाल के हैं, यह आपको मालूम ही होगा ?
बात बहस तक ना पहुँच जाये। इसलिए भेड़िया ने हस्तक्षेप करते हुए कहा – माननीय शूकर जी ! हमें आपके थूथन के बल पर कोई संदेह नहीं है। अभी भैंसे का सिर बचा है। उसे आप ले लें। और ‘मिली-जुली शिकार’ के लिए अपनी सहमति दें।
शूकर ने कहा – मैं सहमत हूँ। न सहमत होने का प्रश्न ही नहीं है। लेकिन शिकार में हिस्सेदारी की तरह शिकार का तरीका भी तय हो जाना चाहिए। ताकि यह हम पाँचों का मिला-जुला काम लगे।
यह सुन कर सियार खुश हो गया। बोला – बिल्कुल सही ! भैसे के शिकार में सभी की सहभागिता समान हो ताकि बाद में कोई यह गाल न बजा सके कि शिकार उसकी वजह से ही संभव हुआ था।
शूकर बोला - मैं सियार की बातों से सहमत हूँ।
साँप ने भी फुस्स-फुस्स कर अपना फन हिलाया।
तेंदुआ, सियार, भेड़िया, शूकर और साँप परस्पर सिर जोड़कर शिकार की रुपरेखा तय करने लगे। महा वन का वह सागौन वृक्ष शानदार तर्कों-कुतर्कों का साक्षी बना। और उनकी बेमिसाल शिकार योजना का भी।
घंटों की तू-तू, मैं-मैं और हाँ,नहीं के पश्चात बाघ से उसका शिकार छीनने की योजना तैयार हुई। पांचों ने सर्व-सम्मति से यह फैसला किया कि -
१.वे अपने हिस्से के काम को ईमानदारी से करेंगे
२. वे किसी भी हालत में दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
३. जिस वक्त बाघ भैंसे पर हमला करना चाहेगा उसी समय सियार उस भैंसें को शोर मचाकर वहां से भगा देगा और उसे घेरते हुए उन चारों की ओर लायेगा।
४.तेंदुआ कूदकर भैंसे की पीठ पर सवार होगा और उसकी गर्दन के ऊपरी हिस्से को दाँतो से दबोचेगा। लेकिन अपने पंजों से उस पर वार नहीं करेगा। उस पर यह प्रतिबंध है।
५. भैंसे के गर्दन के निचले हिस्से को भेड़िया दांतों से जकड़ेगा।
६. शूकर बिना दौड़ लगाये बिल्कुल पास आकर भैसे के पेट पर अपने दांतों से वार करेगा।
७. भैसा भाग न सके इसके लिए सांप उसके आगे वाले दोनों पैरों में लिपट जायेगा। लेकिन वह उसे किसी भी सूरत में नहीं काटेगा।
ऊपरी तौर पर इस योजना में कोई खामी नहीं थी सिवाय इसके कि उन्हें एक दूसरे पर घोर अविश्वास था।
कुछ दिनों बाद ही उन्हें अपना मनोरथ सिद्ध करने का सुनहरा मौका मिला। वन भैंसों का एक बड़ा झुण्ड पानी पीने नदी पर आया था। सियार बाघ के पीछे-पीछे ही वहाँ तक पहुंचा था , उसके देखते ही देखते बाघ लंबी लंबी घासों के बीच चलता हुआ सही जगह पर पहुंच गया।
सियार ने देखा कि बाघ के दोनों कान खड़े हो चुके थे और उसने अपने नाखूनों को पंजे से बाहर निकाल लिया था और उसकी नजर झुण्ड के मुखिया पर टिकी हुई थी। वह समझ गया कि बाघ आज भैंसों के मुखिया का शिकार करेगा। वह चुपके से मुखिया के पास गया और जोर से हू-हू हू हू आ आ आ किया।
सारे भैंसे चौंक पड़े और भाग खड़े हुए। सियार मुखिया के पीछे भागा। और जोरों से हू हू हू आ का नाद भी करता जा रहा था। संयोग से भैंसा उधर ही भागा जिधर वह शैतान मंडली मौजूद थी, वे सियार के हुआने से चौकन्ने हो गये।
भैंसा जैसे ही उनके जद में आया। योजना अनुसार सभी उस पर एक साथ टूट पड़े।
भैंसों के सरदार के ऊपर पहले कभी इतनी मुसीबतें एक साथ नहीं आई थी। सांप उस के पैरों से लिपट गया। तेंदुआ उसकी पीठ पर और भेड़िया उसका गला दबोचने लगा। और शूकर उसका पेट फाड़ने की तैयारी करने लगा।
भैंसा अपनी दाईं ओर घूमा और पिछले पैर से शूकर पर वार किया। संयोग से उसका खुर शूकर के थूथन के निचले भाग पर पड़ा। जिससे वह कई फीट दूर उछला और सीधे चट्टान पर मुंह के बल गिरा। उसका एक दाँत हिल गया और वह पीड़ा से बिलबिला उठा।
शूकर क्रोध से भर उठा। उसने शिकार की शर्त को किनारे किया और भैंसे की ओर दौड़ा।
तेंदुए ने शूकर को शर्त का उलंघन करते देखा तो उसे बड़ा गुस्सा आया और वह भैंसे का गर्दन छोड़ शूकर के सामने आ खड़ा हुआ तथा उसे शर्त याद दिलायी। शूकर ने इसे अपना अपमान समझा और वह तेंदुए से ही भिड़ गया।
तेंदुए और शूकर की लड़ाई से भेड़िए का ध्यान भटका उसके पिछले पैर का नाखून सांप को जोर से चुभ गया । वह उससे नाराज हो गया और भैंसे पर अपनी पकड़ ढीला कर दिया। भैंसा झुका और आगे की ओर भागा।
भेड़िये की दोनों पिछली टांगे भूमि पर घिसट रही थी। इस भागा भागी में भेड़िए का एक पैर भैंसे के पैर के नीचे आ गया। भेड़िया दर्द से बिलबिला उठा और उसके गले को छोड़ दिया। उसी समय भैसे का एक टांग भेड़िए के मुँह से जा टकराया।
परिणामस्वरूप उसके आगे वाले दो केनोइंग दांत टूट गये। सिर नीचा करके उसे अपने सींगों पर उठाने के लिए दौड़ा। भेड़िए ने भागने में ही अपनी भलाई समझा।
भेड़िए को निपटाने के बाद भैंसों का सरदार तेंदुए और शूकर की ओर मुड़ा। दोनों जान बचा कर भाग खड़े हुए। सांप झाड़ियों में गुम हो गया।
बाघ दूर से एक टीले के ऊपर से यह सारा तमाशा देख रहा था। उसने मिली-जुली शिकार की योजना को फ्लाप होते देखा! उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
उसकी खुशी तब दोगुनी हो गयी जब उसने भैंसों के सरदार को टीले की ओर आते हुए देखा।
फिर क्या था, वह शिकार की तैयारियां करने लगा।
