Suraj Kumar Sahu

Others

4.0  

Suraj Kumar Sahu

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बड़ा भाई

बड़ा भाई

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उसने बताया कि तब उसकी उम्र मात्र दस साल थी। उसके अलावा परिवार में माता पिता और दो बड़े भाई थे। मझला भाई तब पंद्रह साल का, और उससे बड़ा भाई बीस साल का। बड़े भाई को सिर्फ पढ़ाई पसंद थी, वो घर के कामकाज से दूर ही रहते। माँ बाप भी उनको घर के काम के लिए बहुत कम कहते। कहीं पढ़ाई डिस्टर्ब न हो सोचकर ज्यादा कुछ नहीं कहते। वैसे भी बड़े भाई के मन की मर्जी रहती, वो जल्दी किसी की नहीं सुनते। 

तब खेती बाड़ी का काम पिता के साथ मझला भैया देखते। उनको पढ़ाई-लिखाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। बड़े भाई के डर से भले पढ़ने के लिए बैठ जाये, मगर ध्यान उनको कल के काम का होता। उन्हें लगता था कि पढ़ने से कुछ नहीं हो सकता। वो आसपास के लड़कों को देख चुके थे। पढ़ने के बाद कुछ दिन तो बाहर प्रदेश में रहकर कमाते हैं, बाद में घर पर ही रहने लगते हैं। अब उनकी शादी जो हो चुकी, परिवार भी तो देखना होता है। दो पैसा कम कमा लेंगे, मगर घर गाँव में ही रहेंगे। यह सोचकर फिर कभी प्रदेश का ख्याल नही आता। 

एक छोटा ही था जो बड़े भाई की तरह पढ़ाई करता और मझले की तरह घर का काम। पढ़ाई तो बड़े भाई के डर से, तो काम छोटा होने के नाते सबकी बात मानकर। काम न करने पर कोई मार दे तो क्या कर सकता हैं। छोटा हैं रोया भी तो माँ बाप यह कहकर चुप करा देते कि बड़े भाई की बात माननी चाहिए। इसलिए उसे सब करना पड़ता।

बड़े वाले को सभी बड़ा भाई कहकर ही पुकारते थे। आज भी गाँव में बड़े लड़के का नाम लेने से परहेज था। नाम से घर परिवार वाले क्या आस पड़ोस के लोग भी नहीं पुकारते। ऐसा नहीं कि वो नाराज होगा, मगर इतना पढ़ लिख चूका कि सभी सम्मान करने लगे। फिर आगे के भविष्य के लिए सुझाव भी तो लेना होता, तो बड़े भाई कि याद आती।

अपने बड़े भाई की बात मनाना उन दोनों के लिए जरूरी था। मगर इक दिन ऐसा आया कि मझला भाई उसकी बात मानने से इंकार कर दिया। पढ़ाई छोड़ दी, और पूरी तरह से खेती बाड़ी में लग गया। जबकि बड़ा भाई चाहता था कि वह भी पढ़े लिखे। मझले के इस फैसले से बड़ा भाई तब नाराज हो गया और दोनों में बातचीत भी बंद हो गई। कभी जरूरत पड़ी तो माँ या छोटे भाई से कहकर काम निकलवा लिया, मगर आपस में नहीं बोले। साथ में काम करना होता तो बिना बातचीत के करते।

कुछ समय बाद बड़ा भाई शहर चला गया, कम्पनी में काम करने लगा तो इज्जत और बढ़ गई। पूरे गाँव भर माँ-बाप बढ़ाई करने लगे। गाँव के अन्य लोग भी तारीफ में दो चार शब्द कह देते। कोई होगा जो उनकी बुराई करता हो। इस तरह हमारा परिवार सुखपूर्वक बीत ही रहा था कि एक दिन बड़े भाई का घर आना हुआ। 

शहर से घूमने के लिए आये हुए थे गाँव, और कुछ खेतीबाड़ी का काम देखने। हम सभी को उनकी याद आ रही थी, मिलकर बहुत खुशी हुई। माँ स्वागत में लग गई और बाबूजी उनकी बड़ाई में। बड़े भाई की मदद से पक्का मकान का निर्माण, कुआँ और खेत की मरम्मत करवाया गया। कुछ खेतीबाड़ी से तो कुछ उनके सहयोग से। बस कमी थी तो सिंचाई मोटर की, आज वह भी पूरी हो गई। चुँकि मझला भाई जब खेती देख रहा हैं तो उसे सुविधा के साथ अपनी आमदानी और बढ़ाने की सोची।

मगर उस दिन जैसे भगवान हमसे रूठ गये हो। रात का वक्त था, नया नया बिजली मोटर, चोरी के डर से मझला भाई के साथ बड़े भाई भी खेत चले गये। खेत पर पानी लग रहा था। जोताई के बाद बुवाई की तैयारी थी। बड़ा भाई सोचा बुआई का काम करवाकर ही शहर जाता हूँ। लेकिन समय को कुछ और मंजूर था, पानी लगाते वक्त मझला भाई को करंट लगा और उसकी मौत हो गई। हमारे सिर पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा। हम सभी विलाप करने लगे। देखते ही देखते हमारी खुशियाँ दुख मे ं बदल गई। माँ का जवान बेटे की मौत ने अंदर से तोड़ दिया। वह बहुत रो रही थी, हम भी भाई के गम में दुखी थे। किसी ने यह बात पुलिस को बता दी। सुबह आकर जाँच पड़ताल की गई, पंचनामा तैयार हुआ, पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार किया गया। 

पूरे परिवार को मझले भाई की याद रह रहकर आने लगी। बड़े भाई का रो रोकर बुरा हाल था। वो हर वक्त यही कहकर रोते रहते कि मैं आजतक अपने भाई से ढंग की बात नहीं कर सका और वह मुझे छोड़कर चला गया। उसकी जगह मैं क्यों नहीं चला गया।

जिस वक्त वो यह कहकर रोते रहते सबका सीना दुख से भर जाता, मगर एक दिन अपना चाचा ही पुलिस को शिकायत किया कि मझले भाई की मौत दुर्घटना से नहीं बल्कि साजिश से हुई हैं। उसका इल्जाम भी बड़े भाई पर आया। पुलिस घर आकर बड़े भाई को गिरफ्तार कर ली। हम सब और परेशान हो गये। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि बड़ा भाई ऐसा कर सकता हैं। मगर सभी को उस दिन यकीन हुआ जिस दिन अदालत में साफ हो गया कि वह बड़े भाई की ही साजिश थी। चाचा और उसके दो चार साथी ने गवाही दी। पास में चाचा का भी खेत था, जिस वक्त करंट लगा वो अपने साथियों के साथ खेत में ही घूम रहे थे। बड़े भाई को मझले के लिए करंट फैलाते देख लिया। उसको रोकते उससे पहले मझले की मौत हो गई। चुँकि मझले भाई को बचाने में वो और उनके साथी भी शामिल थे, इसलिए सभी ने यकीन कर लिया। एक बड़े भाई थे जो यह मानने के लिए तैयार नहीं थे। मगर उनकी सुनने वाला कौन था। अब तो माँ बाप भी मुँह फेर लिये। उस रात एक भाई तो मरा ही मरा आज एक और भाई परिवार के लिए पराया हो गया तब, जब पिताजी उसे यह कहकर मुँह दिखाने से मना कर दिये कि आज के बाद वह भी हमारे लिये मर गया।

बड़ा भाई सभी को बहुत समझाने की कोशिश किया। वह सिर्फ ये चाहता था कि सच्चाई के सामने आते तक माँ बाप उस पर यकीन करें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनके लिए माँ बाप के दिल में जो नफरत पैदा हुई कभी कम नहीं हुई। मुझे ही अपनी औलाद समझ कभी बड़े भाई से मिलने नही गये।

तब बड़े भाई के मन में हम सबके लिए नाराजगी बढ़ गई। वो जेल के अंदर रहकर न्याय की लड़ाई लड़े और अंत में जीत गये। अदालत के सामने खुद को बेगुनाह साबित किये, और जेल से छूट गये। उस दिन वो घर नहीं आये, सीधे शहर के लिए ही निकल गये। तब से कोई उन्हें ढूँढने की कोशिश नहीं किया। फिर एक दिन मालूम चला अब वो खुद बड़ी कम्पनी के मलिक बन चुके हैं। घर, पैसा सब कुछ उनके पास हैं। वो शादी कर चुके। इसलिए छोटा भाई आज मिलने आया। 

नाम शेखर, उम्र बीस साल, उदास मन, पतला दुबला शरीर, कद काठी पर भी भगवान ने कटौती कर दी। हाईट पांच फिट ही होगी, उसके चेहरे पर चिंता साफ छलक रही थी। पता नहीं कैसे शहर आ पहुँचा, बड़े भाई के बारे में बताया, और मिलने की जिद करने लगा। आज पूरे दस साल हो गये घर से गये भाई को। तब तो किसी को याद नहीं आई। इसलिए मैंने पूछा-

"जब तुम्हारे परिवार वालों ने उसे भूला दिया, तब तुम उससे क्यों मिलना चाहते हो?"

"एक जरूरी काम हैं उनसे।"

"कैसा काम? और वो भला तुम्हारा काम क्यों करेगा?"

"मुझे पता है, मगर हम उनके बिना अधूरें हैं। माँ जो रोज कहती हैं कि उसका बेटा लौटेगा। पिता जो किसी से नज़र नहीं मिला रहें। शर्म से झुकी नजर और शराब के नशे में दिन गुज़र रहे हैं। उन्हें लगता हैं कि बड़े बेटे को गलत मानकर जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर चुकें। जिसका पछतावा आज भी है।"

"अच्छा तो फिर वो क्यों मिलने नही आये?" 

मैंने पूछा। वह सिर झुकाकर हाथ जोड़े जवाब देता रहा। 

"वो बड़े भाई से नज़र नहीं मिला सकते।"

 "फिर तुम क्यों मिलना चाहते हो?"

वह हाथ जोड़कर मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगा।

"मैं वह सब उन्हीं से मिलकर कहूंगा। एक बार मुझे मिल लेने दीजिए मेरे बड़े भाई से, बस। "

मैं समझता था बात कुछ ऐसी हैं जिसकी वजह से वह गिड़गिड़ा रहा था मेरे सामने। वरना वह सीधे बड़े भाई से मिल सकता था। उसके लिए किसी तीसरे के पास गिड़गिड़ाने की क्या जरूरत हैं। मैंने उसे भरोसा दिलाया तो वह थोड़ा खुश हुआ। किन्तु उसके आँखों के आँसू अभी भी थम नहीं रहे थे। उसने बहुत खोज किया तब मेरे पास आया। वह जानता था कि सीधे मिलने पर भाई पहचानने से इंकार कर सकता हैं, इसलिए उसने मुझे चुना। आखिर मैं दोस्त जो ठहरा राहुल का।

राहुल उसके बड़े भाई का नाम, जिस पर तमाम तरह के इल्जाम और बाद में घर परिवार सब त्यागना पड़ा। अब वह मेरा जिगरी दोस्त था।  

मैंने शेखर को अपने घर पर ही रोक लिया।  दोस्त का छोटा भाई था, इसलिए मेरी पत्नी को कोई ऐतराज भी नही हुआ। उसने हम सभी का बहुत अहसान माना। बस अभी उसकी एक ही चाहत थी, एक बार बड़ा भाई से मुलाकात हो जाए।

"उससे कह दो, उसका कोई बड़ा भाई नहीं हैं। और न ही किसी और को मिलने के लिए मेरे पास वक्त, मैं सब कुछ भूल चुका हूँ।"

मैंने शेखर के बारे में राहुल को बताया तो जवाब मिला। मेरे लिए कोई आसान काम नहीं था, तब जब परिवार का भूले दस साल से अधिक समय हो चुका। मैं क्या करता, एक तरफ राहुल की नाराजगी तो दूसरी तरफ शेखर की उम्मीद। उसने तो साफ इंकार कर दिया, मगर मैं उसका दोस्त था, मनाने की बहुत कोशिश किया। कुछ देर बाद ही सही मेरी मेहनत का असर हुआ। वह सिर्फ मेरे लिए मिलने को तैयार हुआ, किन्तु अपने घर पर नहीं।

शाम के वक्त हम शहर के बाहर हाईवे पर मिलने गए। राहुल अपनी कार के समीप खड़ा हुआ था। शेखर मेरी कार से उतरकर राहुल की तरफ बढ़ा। पैर छूने लगा तो राहुल ने रोक दिया। उसका छोटा भाई बहुत रो रहा था किन्तु एक बड़ा भाई ही था जिसका हृदय नहीं पसीजा, 

राहुल ने पूछा -

"तुम मेरे से मिलने क्यों आए हो?"

वह बोलना तो चाह रहा था किंतु उसके मुख से आवाज नहीं निकल रही थी। बस अपने बड़े भाई के सामने सिर झुकाकर हाथ जोड़े खड़ा हुआ था। उसने अपने आँसू पोंछे दूसरी तरफ देखते हुए कहा-

"हम बहुत मजबूर हैं बड़े भैया। मझले भाई की मौत, और आपका घर छोड़ना, दुश्मनों के लिए खुला छुट मिल जाना था। उसके बाद माँ बीमार रहने लगी, बाबूजी कमजोर हो गए, शराब पीने लगे, घर की खेती कौन करता। सुक्कु काका हमारी जमीन पर खेती करने लगा। जो फसल मिलती सारा खुद रख लेता और हमें बस वही जीने खाने के लिए देता। जब वह भी कम पड़ने लगा तो मैं पढ़ाई छोड़ दिया और काम पर लग गया। आज दस साल से खेती करते सुक्कु काका अब वह जमीन बेचने के लिए मजबूर कर रहा। वह चाहता हैं कि पूरी जमीन हम उसे कम कीमत में बेच दे। रोज रोज वही वही बातें करके उसने माँ बाप को मना लिए यह सपने दिखाकर कि उस जमीन बेचने से मिले पैसों पर मेरी शादी, और माँ की दवाई करवा सकेंगे। मगर मैं उस जमीन को बेचना नहीं चाहता।"

"तो तुम मुझसे से क्या चाहते?" 

राहुल ने बिना उसके ओर देखें पूछा।

"मैं बस इतना चाहता हूँ कि वह जमीन सुक्कु काका के पास न जाये। सड़क पर की जमीन है, कल को हाईवे निकल सकता हैं। सोने के भाव की जमीन को वह मिट्टी के भाव खरीदना चाहता। मेहरबानी करके आप उस जमीन को खरीद ले। मैं आपका कोई हक नहीं लूँगा, वह जमीन आपकी ही होगी। मगर सुक्कु काका को लेने से रोक ले। मेरी बात माँ बाप भी नहीं मान रहे, वो भी सुक्कु काका को कम कीमत में जमीन देने को तैयार हो गए। मुझे तसल्ली होगी बड़े भैया कि जमीन मेरे अपने बड़े भाई के पास हैं। मुझे उसमें से कोई हिस्सा नही चाहिए।"

"रूको, किन्तु मैं ऐसा करूंगा, क्यों? तुमने सोच कैसे लिया कि उस जमीन को मैं खरीदूंगा। देखो मेरा मतलब न तुमसे रह गया और न कोई जमीन से। आगे से मिलने की कोशिश भी मत करना।"

"मैंने सूना था कि आपके पास बहुत पैसा हैं। इसलिए मैं आपके पास आया हूँ। सुक्कु काका के पास जमीन जाने से अच्छा हैं कि बड़े भाई के पास चली जाए। आप उसके तय कीमत से ज्यादा पैसा देकर जमीन ले ले। मैं माँ बाप को मना लूंगा कि वह जमीन शहर के व्यापारी को ज्यादा कीमत में बेच दी। उन्हें इस बात का भनक भी नहीं होगी कि जमीन लेने वाले आप उनके हैं।" 

उसने उसी उम्मीद से कहा, जिस उम्मीद से आया हुआ था। 

राहुल के लिए सुक्कु काका कोई नया नाम नहीं था। खुद का सगा चाचा, जिसने अदालत में गवाही देकर उसको भाई के मौत का जिम्मेदार ठहराकर जेल भेजवा दिया। राहुल यह कहकर कार में बैठ गया कि-

"इसके लिए बेटा कोई दूसरा व्यक्ति ढूँढ ले, मेरे से भी ज्यादा इस शहर में कमाने वाले हैं। और वो उस जमीन को पसंद भी कर लेंगे। मैंने जिस जमीन, जिस परिवार को कल भूला दिया उससे दोबारा नाता नहीं जोड़ सकता।"

कार चालू करके चला गया। मैं दोनों की बात सुन चुका था। छोटा भाई रोते हुए उसी जगह बैठ गया। मैं करीब जाकर उसे पुन: भरोसा दिलाया की वह जमीन राहुल ही खरीदेगा। उसने बताया उसके पास बहुत कम वक्त हैं। यदि वह बड़ा भाई के पास से खाली हाथ गया तो उसकी उम्मीद पर पानी फिर जाएगा। 

मैं मैं था, और राहुल को भी अच्छी तरह जानता था। हम दोनों की दोस्ती ऐसे ही दस साल से नहीं चल रही थी। मैं रात भर उसे फोन करके समझाता रहा। पूरी रात उसे समझाने में बीत गई। उसका छोटा भाई तो सुकून की नींद सो रहा था। सुबह आँख खुली तब तक राहुल की भी हाँ हो चूकी थी। मैंने बताया तो वह खुशी से उछल पड़ा। उसने मेरे पैर छुएं। मैंने रोका, गले से लगाया और गाँव जाने की तैयारी में लग गया। मैं असहज था उसकी खुशी को देखकर। उस वक्त मेरी भी आँखों में आँसू थे, जो थे शेखर की खुशी देखकर। 

रात में तय हुआ कि राहुल अपने माँ बाप के सामने नहीं जाएगा। सारा कागजी कार्रवाई का काम मुझे मिला, वह अपनी कार में ही बैठेगा।

दूसरे दिन शेखर गाँव जाकर अपने माँ बाप को मनाया कि सुक्कु काका से ज्यादा कीमत पर जमीन बेच रहा है। माँ बाप भी उसके विचार से सहमत हो गये। चाचा को कानों कान खबर भी नहीं हुई और जमीन की कागजी कार्यवाही पूरी कर ली गई। पैसा का लेन देन भी हो गया। किसी को जमीन के नए मालिक के बारे में पता नहीं चला। 

जब चाचा को मालूम हुआ तो वह आग बबूला हो गया। वह भाभी भैया से गाली गलौच करने लगा। जिसने भी जमीन ली देख लूंगा कहकर धमकी दिया। उसे पता चला जमीन खरीदकर हम शहर के लिए लौट रहे हैं तो हमारा पीछा किया। उसके वही पुराने साथियों ने अचानक हमारा रास्ता रोका, तो हम समझ गये। राहुल को गाड़ी में छोड़ मैं नीचे उतरकर देखा। टैक्टर में पाँच दस लोग हाथ में डंडा, हथियार लिए, हमें मारने के लिए दौडे। शेखर और उसके माँ बाप भी वही पर थे, जो इस समय बंधक बने हुए थे। 

गाड़ी की तरफ लपकते देख राहुल भी कार से उतरा। हम दो और वो दस, देखते ही देखते हम दोनों ने उन लोगों की जमकर पिटाई की। कुछ तो भाग गये मगर चाचा राहुल के पकड़ में आ गया। जिसे देख शेखर बहुत खुश हुआ। वह ताली बजाकर झूमने लगा। उसने जोर जोर से चिल्लाया, 

 "मारो बड़े भैया मारो। उसको छोड़ना नहीं।"

जिसे सुनने के बाद उसके माँ बाप और राहुल के बाँहों में दबा सुक्कु काका आश्चर्यचकित रह गया। आँखे खुली की खुली रह गई। आखिर अपना बड़ा भाई किसे कह रहा हैं? सभी सोच ही रहे थे कि उसका चाचा पूछा-

"तो तू उसकी बड़ा भाई, जिसने आज से पंद्रह साल पहले अपने भाई की हत्या कर दिया था।"

यह सुनकर राहुल की आँखों में खून सवार हो गया। उसने बल से चाचा की गर्दन मरोड़ा तो चिल्लाया

"अरे! छोड़, मार डालेगा क्या, तेरा चाचा हूँ रे। तूने तो अपने भाई को नहीं बक्शा, मुझे तो बख्शे दे।"

"मैंने अपने भाई की हत्या नहीं की, और ये बात मैंने साबित कर चुका। हाँ आज तू नहीं बचेगा। तेरे कारण मैं अपने माँ बाप से अलग हुआ, तूने मुझे जबरदस्त फंसाया, क्यों चाचा, क्यों?"

सुक्कु काका को लगा राहुल प्राण लेकर ही छोड़ेगा, इसलिए उसने जान बचाने की लिए कहा-

माफ कर दे बेटा, मैं तेरा चाचा हूँ। मैं जानता था कि वह एक दुर्घटना थी किन्तु उस जमीन पर मेरी कब से नज़र थी। तुझे रास्ते से हटाने के लिए ही सब किया। मुझे मालूम था कि तू निर्दोष हैं एक दिन जेल से छुट जाएगा, इसलिए भैया भाभी को बातों में फंसा कर तेरे से मिलने के लिए रोकता रहा। ताकी उनके लिए तेरे दिल नफरत पैदा हो सके, और तू हमेशा हमेशा के लिए उन्हें भूल जाये। हुआ भी वही, मगर आज सब पानी फिर गया। माफ कर दे बेटा, अब ऐसा कभी नहीं करूँगा।"

राहुल उसे अपने माँ बाप के चरणों में ले जाकर पटक दिया। लड़ाई खत्म हो चूकी थी। अपने बड़ा बेटे की सच्चाई और भाई की बेईमानी जानकर माँ बाप को बहुत पछतावा हुआ। आज उन्हें पता चला कि 'वह एक दुर्घटना ही थी, जिसमें भी कुछ मौका परास्त लोग, अपना हथियार बनाकर फायदा उठाये।'  

माँ बाप को इस तरह ग्लानी से भरा देख राहुल का भी दिल पिघल गया। चाचा के चाल की वजह से वह माँ बाप से दूर चला गया था। जानकर उसे भी बहुत पछतावा हुआ। वह माँ से लिपटकर रोने लगा। सभी के आँखों में आँसू थे। माँ बेटे को गले लगाकर खूब रोई। आज मन का जितना भी मैल था धुल गया। सभी ने अपनी अपनी गलती मानी। सुक्कु काका को वही छोड़े शहर आ गए। जहाँ मिलकर साथ रहने लगे।

शेखर जब भी मिलता हैं मुझसे, मेरा अहसान मानते हुए चरण छूता हैं। आज वह राहुल के साथ साथ मुझे भी जब बड़ा भाई कहता है तो दिल को बड़ा सुकुन मिलता है। क्योंकि मेरा कोई छोटा भाई नहीं था जो शेखर के रूप में मिला। 


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