बबूल का पेड़

बबूल का पेड़

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मोहन ने अपने माता पिता, सुशील जी और बिमला जी को साफ़ साफ़ बिना किसी लाग लपेट के समझा दिया था कि वो अब आगे उनका बोझ नहीं संभाल सकता और वैसे भी घर में रोज़ रोज़ होती माँ और बीवी की खिट - पिट में वो त्रिशंकु की तरह फंस जाता था। अब सब उसकी बर्दाश्त के बाहर था।

बिमला जी ने जब से मोहन की बात सुनी तब से ही रोना शुरु कर दिया था और साम, दाम , दंड, भेद हर तरह की चाल आजमा कर देख ली थी बेटे पर लेकिन उनका हर पैंतरा विफल ही रहा और बहू तो कभी उनकी बात मानेगी ही नहीं ये उन्हें अच्छे से पता था।


तो अब सारा गुस्सा बिमला जी ने मोहन का फैसला सुनकर भी चुपचाप बैठे सुशील जी पर निकालना शुरू कर दिया। उन्हें लग रहा था कि थोड़ी कोशिश तो सुशील जी को भी करनी चाहिए मोहन को समझाने की।


पर सुशील जी बोले,"मैं तो बरसों से जानता था कि ये दिन आएगा। जब मैं अपने माता पिता को तुम्हारे द्वारा अपमानित होकर वृद्धाश्रम में जाने से नहीं रोक पाया था तभी से मैं इस दिन का इंतजार कर रहा था। मुझे पता था मेरा भी यही भविष्य होगा क्योंकि जब बबूल का पेड़ बोएंगे तो कांटें तो मिलेंगे ही। अब तुम भी जाने की तैयारी करो।"



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