Mrugtrushna Tarang

Others

4  

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बाँस की डलियाँ - ११

बाँस की डलियाँ - ११

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चोट खाये हुए घायल शेर की तरह उस नरपिशाच ने कॉरल के गले का फंदा और जोर से कसा। और कॉरल के गर्दन का सर्वाइकल कॉड टूट गया। और वो बेहोश हो गई।गर्दन चटखने की आवाज़ ने उस नराधम की राक्षसी हँसी को ठहाकों में बदल दिया। लंबा अट्टहास्य करते हुए उसने कॉरल के दोनों हाथों को कसकर लोखंडी चारपाई से बांध दिए।


अधमरी सी कॉरल के एक एक करके सारे कपड़ें फटते चले गए। मानों फाड़ने वाले के मन में भरा ज्वालामुखी का लावा शांत करने का बस एक यही मार्ग बचा हो।हैवानियत की सारी हदें पार कर चुका वो नरपिशाच अपने दाँतों से कॉरल के कोमल बदन पर चित्रकारी करने लगा।और तो और उस दाँतों का प्रयोग छोड़, अब उसने अपने निजी हथियार को तेज कर हाइएस्ट हॉर्सपावर का प्रयोग किया। और बार बार वह कॉरल की इज़्ज़त से खेलने लगा। 


हर बार वो नया तरीका आज़माता। और कॉरल को गालियाँ देता हुआ सुनाता -"मेरी माँ ने तुम्हें बेटी माना था। तुमनें इन्कार क्यों किया? अब भुगतने को हो जा तैयार। अपनी 'ना' का जश्न।

हा ... हा ... हा ... हा ... हा ...


ठहाकों का पावर धीरे धीरे कम होते जा रहा था। उसकी आँख के कोने में लगी बोबपिन कि पॉइंट उसे दर्द का एहसास दिला रही थी।आँख में कुछ चुभता हुआ उसने महसूस किया। वो दर्द से कराहने लगा। पर उसकी चीख सुनने के लिए उसके इर्दगिर्द कोई भी न था।तब उसका ध्यान कॉरल की ओर गया। वह उसे उठाने लगा। एक डॉक्टर ही उसे उस बेरहम दर्द से बचा सकता था। पर कॉरल तो अधमुई सी सोई पड़ी थी।कॉरल उसके काम नहीं आने वाली, ये जानकर वो कॉरल पर थूंकने लगा। बारी बारी से उसे बहोत सारी गंदी गंदी गालियाँ देने लगा।


उसका रुमाल रक्तधार से भर गया। तब वो वहाँ से जल्द से जल्द भागना चाहता था। ताकि वह समय रहते अपनी घायल आँख का इलाज करवा सकें।लेकिन,अपने उसूलों के ख़िलाफ़ भी तो नहीं जा सकता था।उसूल तोड़ना मतलब अपनी बर्बादी को दावत देना। जो उसे कतई मंजूर न था।उसने कॉरल को और दस बारह घुसे - लातें मारी।पर,डॉ कॉरल उस वक्त जिंदा भी थी या नहीं उसका ख़याल उसने नहीं किया। और, उसी हाल में न छोड़ते हुए उसने केरोसिन के दिये से उसे जलाया। और फिर उसे घसीटते हुए क्लिनिक के बगल वाले बोटोनिकल गार्डन में ले गया। और वहाँ उसे कुछ ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।प्लांटेशन के लिए पहले से ही वहाँ कई सारे गढ्ढे खोदे हुए थे। गार्डन के आख़िरी कोने में उसे एक बड़ा सा गड्ढ़ा दिखा। बस उसीमें उसने कॉरल को गाड़ दिया।


और,अपने पास रखें बैग में से बाँस की डलियाँ निकाली। और उस पर लगा दी। डलियों के साथ वहाँ रखें कुछ पत्ते भी का बिछा दिए।और आनन फानन में वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।एक और मिशन को कामयाब होने पर इतरा रहा था। दूसरी ओर ख़ुदको लगे घाव को सहलाते हुए कॉरल को कोसे जा रहा था।अपनी बायीं आँख पर हुए ज़ख़्म को नासूर होने से बचाना चाहता था। इसलिए कॉरल के रूम की ओर बिना देखें अपनी आँख पर रुमाल दबाये वहाँ से भाग खड़ा हुआ।


फादर पीटर के नाम की शाख़ का इस्तेमाल करके उसने सबसे पहले अपनी आँख का इलाज करवाया।कुछ दिन छुपकर वहीं पड़ा रहा।छन्दनपुर में डॉ. कॉरल के गायब होने की ख़बर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई।पर किसीको भी फादर पीटर पर शक़ नहीं गया।उसीका फायदा उठाते हुए जोसेफ लामा क्लिनिक में अन्जान बनकर सबसे मिलने गया। बेनमून एक्टिंग करके सबको एक बार फिर बेवकूफ बनाया। और एक्सीडेंट से आँख में ज़ख़्म होने पर ट्रिटमेंट करवाने विदेश जायेगा। ऐसी अफ़वाह फैला दी।फिर एक बार सबके इमोशन्स से खिलवाड़ करता हुआ सेंटीमेंट्स बटौरते हुए लामा क्लिनिक से रुख़्सत हो गया।

हमेंशा हमेंशा के लिए।

एक ही शहर या गाँव में एक से ज़्यादा कारनामें करने की उसकी आदत नहीं थी। तभी तो वो आज तक पकड़ा नहीं गया था।अपनी ज़िंदगी में पहली बार घायल करने वाले उस हादसे से उभरने के लिए फादर पीटर ने छन्दनपुर छोड़ने का प्लान पुख़्ता किया। और अपने दिमाग को सुपरफ़ास्ट रफ़्तार में लगा दिया। और नई शक़्ल के साथ इस बार नई आँख का इंतजाम भी तो करना था। हमेशा हमेशा के लिए।



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