Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

बालिका मेधा 1.15

बालिका मेधा 1.15

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मम्मा मुस्कुराते हुए, मुझे उत्सुक दृष्टि से देखने लगीं तो मैंने कहा - 

"मम्मा, पूर्वी वाले उस लड़के की हरकतों तथा निर्भया प्रकरण के बाद से मेरे मन में एक धारणा घर करने लगी थी कि हर पुरुष या लड़के को, लड़की या युवती से एक ही अपेक्षा होती है। मेरी बन रही इस धारणा में ही मैं इन दिनों में चरण से, नितदिन मिलते और साथ टीटी खेलते रही थी। मैंने देखा कि उसे मुझसे ऐसी कोई अपेक्षा नहीं होती थी। उसकी अपेक्षा मुझसे सिर्फ खेल को लेकर ही रहती थी। "

इस पर मम्मा ने बताया - "तुम्हें यह अनुभव हो जाना भी एक अच्छी उपलब्धि है। चलो आज मैं भी चरण के साथ खेलकर देखती हूँ। तुम उससे बात करके उसे क्लब बुला लो। 

मैंने कहा - मम्मी, मेरे पास चरण का नं. नहीं है।"

मम्मी ने आश्चर्य से मुझे देखा और पूछा - "फिर तुम दोनों इतने दिन साथ खेलने के लिए इकठ्ठे कैसे होते थे? क्या उसका ही फोन आया करता था?"

मैंने उन्हें बताया - 

"मम्मा, चरण के पास भी मेरा नं. नहीं है। हम रोज खेल के बाद अगले दिन खेलने का समय तय कर लेते थे। हममें अच्छी बात यह होती थी कि वह और मैं एक जैसे ही समय के पाबंद हैं। हम दोनों ठीक समय पर क्लब पहुँचते थे। हम दोनों जानबूझकर एक से तीन बजे का समय तय करते थे। यह दोपहर के भोजन का समय होने से, हमें क्लब की दोनों ही टेबल प्रायः खाली मिल जाती थी।"

मम्मी ने कहा - "यह तो बहुत ही अच्छी बात है। अन्यथा आजकल लड़के-लड़की सबमें पहले कोशिश एक दूसरे के नं. जानने की करते हैं। फिर अकारण फोन पर व्यर्थ की बातों में समय नष्ट करते हैं।"

इस पर मैंने पूछ लिया - "मम्मा, फिर किन कारणों से चरण ऐसे भिन्न तरह का लड़का है?

मम्मी ने कहा - उसे जानती नहीं होने से, मैं अनुमान से ही कह सकती हूँ कि कदाचित् वह भी तुम्हारी तरह, अपनी मम्मी या पापा से मार्गदर्शन प्राप्त करता होगा। तुम भी इस कारण से ही भिन्न तरह की लड़की हो।"

मैंने तब शिकायती स्वर में मम्मी से कहा - "मम्मा, मेरी उनसे इस भिन्नता का मेरी फ्रेंड्स, मजाक बनाया करती हैं।"

मम्मी ने पूछ लिया - "मेधा, क्या कहती हैं तुमसे वे फ्रेंड्स?"

मैंने बताया - "वे कहती हैं कि मेधा में लड़कपन तो आया ही नहीं है। बचपन के बाद सीधे ही यह परिपक्व स्त्री हो गई है।"

मम्मी ने कहा -" इसे तुम अनसुना कर दिया करो। उन लड़कियों की लड़कपन की परिभाषा गलत है। लड़कपन का अर्थ कदापि अनुशासनहीन, अविश्वसनीय या लापरवाह होना नहीं होता है।" 

मैंने जिज्ञासु होकर पूछा - "मम्मी, लड़कपन का सही अर्थ क्या होता है?"

मम्मा ने कहा - "अपने इस प्रश्न का उत्तर तुम ही देने की कोशिश करो, मेधा। इसकी संकेत (Hint) तुम्हें, मैं देती हूँ कि तुम्हारी (मैं) मम्मा, एक मैच्योर लेडी और (तुम) किशोरवय लड़की की दिनचर्या में, क्या अंतर तुम देखती हो?"

मैंने विचार किया फिर कहा - 

"मैं अभी पढ़ती हूँ। मैं अभी घर के और किचन के काम का कोई सीधा दायित्व अपने पर अनुभव नहीं करती हूँ। मैं अभी कमाने के लिए कोई काम नहीं करती हूँ। ऐसे दायित्व नहीं होने से, मैं पढ़ने के अपने कर्तव्य के अतिरिक्त अन्य किसी भी मानसिक दबावों से मुक्त रहती हूँ। अपने सोने, उठने कुछ भी खाने, पीने, खेलने और जो मुझे पसंद है, वह काम करने में स्वयं को स्वतंत्र पाती हूँ। यह इसलिए है कि यह उम्र मेरे लड़कपन की है। इससे भिन्न, मेरी मम्मा आप कमाने के लिए सर्विस करती हैं। घर और किचन के दायित्व पूरे करती हैं। मेरी मम्मा होने से पापा के साथ ही, मेरे भविष्य निर्माण का कर्तव्य अपने पर अनुभव करती हैं। समाज में रहने से पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवहार निभाती हैं। इन्हें करते हुए कई बार आप अपनी नापसंद एवं असुविधा की दिनचर्या रखने को विवश होती हैं। यह होना आपको, मैच्योर लेडी निरूपित करता है। (फिर प्रश्न करते हुए) मैंने ठीक बताया ना, मम्मा?"

मम्मी ने मुझे प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा - "कदाचित्! लड़कपन की इतनी ठीक परिभाषा तो मैं भी नहीं सोच पाती, मेधा!"

मैं संशय में रही थी कि मम्मी ने यह बात मुझे प्रोत्साहित करने के लिए कही है या वास्तव में, मैंने लड़कपन को इस कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है। 

अब मेरे दिमाग में एक प्रश्न रह गया था कि चरण या मेरी तरह के जिन बेटे-बेटी को अपने पापा-मम्मी से इस तरह का गाइडेंस नहीं मिलता है वे किन बातों से वंचित रह जाते हैं? इसे मम्मी से पूछने के लिए मुझे अन्य अवसर की प्रतीक्षा करनी थी। अभी मम्मी, मेरे साथ टीटी खेलने जाने में इंटरेस्टेड थीं। 

गाँव से मम्मी के लौटने के बाद जब हमने टीटी खेला तब मैंने मम्मी को पुनः सरप्राइज कर दिया था। मैं इन दिनों लगातार प्रैक्टिस में रही थी। मम्मी बहुत दिनों बाद खेल रही थीं। अतः मैंने मम्मा को उस दिन भी 21-11, 19-21, 21-19, 21-23, एवं 21-13 से हरा दिया था। 

हारने के बाद मम्मा ने मेरा हौसला यह कहकर बढ़ाया था कि मेधा, तुमने लगातार दो दिन में पूर्व यूनिवर्सिटी चैंपियन को हराया है। 

मम्मा के प्रोत्साहन देने की भावना से मैं परिचित थी। तब भी मैं उनसे अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए मजाक किया था - "मम्मा, आपको मुझसे हारने से दुःख तो नहीं हो रहा है?"

मम्मा ने दुखी दिखने का अभिनय करते हुए कहा - "हाँ मेधा कभी की चैंपियन मैं, अब 13 साल की बेटी से हारने लगी हूँ। यह मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है।"

मुझे विचार में पड़ा देख कर वे खिलखिला के हँस पड़ी थीं। फिर मम्मी ने कहा - "चल बुद्धू, मजाक करती है और मजाक समझती नहीं है। दुनिया में, किसी भी माँ-पिता को, अपनी संतान की अपने से अधिक उपलब्धि बुरी नहीं लगती है। अपने पुत्र-पुत्री को स्वयं से अच्छा बनते/करते देखना उन्हें गौरव प्रदान करता है।"

(क्रमशः)  


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