STORYMIRROR

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

बालिका मेधा 1.14

बालिका मेधा 1.14

5 mins
352

अपनी प्रशंसा और कल भी खेलने के लिए पार्टनर (चरण का) का मिल जाना मुझे अच्छा लगा था। मैंने अगले दिन दोपहर बाद 3 बजे का समय तय किया था। ऐसे हम साथ खेलने लगे थे। बेस्ट ऑफ़ फाइव का मैच हममें पूरे 5 गेम तक चला करता था। अधिकतर चरण ही जीत जाता था। कभी कभी मैं भी जीतती थी तब मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि शायद चरण ने मुझे जान-बूझकर जिता दिया है। ऐसे कराटे एवं टीटी के साथ मेरे दिन बिना समस्या के बीतने लगे थे। 

मम्मी के जाने के बाद छटवें दिन पापा ने मुझे कॉल पर बताया था कि दादा जी का स्वर्गवास हो गया है। अतः मम्मी-पापा का लौटना पंद्रह दिन बाद ही संभव हो सकेगा। 

दादा जी के न रहने एवं मम्मी-पापा का पंद्रह दिन और साथ न होने के विचार से मैं उस दिन अत्यंत व्यथित थी। पता नहीं यह चमत्कार कदाचित! मेरे व्यथित हृदय में खेलने से हुआ था, उस दिन चरण को मैंने बेस्ट ऑफ़ फाइव के मैच में हरा दिया था। उस दिन हमने दो घंटे गेम खेला था। अतः दूसरी बार भी हमने मैच खेला था। यह पहली बार हुआ जब मैंने चार सेट्स में ही चरण को हरा दिया था। चरण ने उस दिन मेरी प्रशंसा करते हुए कहा - मेधा तुमने अपने गेम में जबरदस्त सुधार (Improvement) लाया है।   

इसके उत्तर में मैंने कहा - चरण, मुझमें यह इम्प्रूवमेंट, अपने से अच्छे तुम जैसे प्लेयर के साथ खेलने से संभव हुआ है। 

चरण ने तनिक उदासी से कहा - मैं, लड़का हूँ वह भी तुमसे दो साल बड़ा, इससे मेरा गेम तुमसे अच्छा होना अचरज की बात नहीं थी। मैं आज स्तंभित (Amazed) इस बात से हूँ कि छह दिनों में तुमने अपने गेम में चमत्कारिक सुधार लाया है। 

मैंने उसे सांत्वना देने के लिए कहा - चरण, मैं अपनी मम्मा के साथ गेम खेलती रही हूँ। वह अपने समय में टीटी की यूनिवर्सिटी चैंपियन रही हैं। 

चरण ने आँखे बड़ी करते हुए प्रशंसा और अचरज के भाव दर्शाए थे। फिर मम्मी-पापा के वापस आने तक मैं और चरण, प्रति दिन दो दो घंटे टीटी खेला करते थे। लगातार की इस प्रैक्टिस में मेरे गेम में अभूतपूर्व सुधार आया था। कराटे में भी मेरा प्रदर्शन अच्छा होता जा रहा था। ऐसे तीन सप्ताह का अकेले का समय, मेरी पूर्व की भयाक्रांत करने वाली कल्पनाओं के विपरीत उपलब्धियों के साथ बीत गया था। 

इतना लंबा समय अकेले बिता देने से मुझमें साहस और आत्मविश्वास बढ़ गया था। मेरा भय कम हुआ था। लड़कों को लेकर, उनके खराब ही होने का मेरा भ्रम भी टूट गया था। मैंने मम्मी को इस विषय में कुछ कह कर न बताने का तय किया था। मन ही मन मेरा प्लान उनके साथ टीटी खेल कर उन्हें अचंभित (Surprised) कर देने का था। 

मम्मी के आ जाने के बाद दो दिन और मैंने चरण के साथ टीटी खेला था। फिर मैंने, उससे बता दिया था कि अगले दिन से मैं टीटी खेलने नियमित (Regular) नहीं आ पाऊँगी। उसके पूछने पर बताया था कि अब मेरी मम्मा वापस आ गईं हैं। उनके साथ खेलने आने का समय पहले से तय नहीं रहता है, इसलिए। 

इस पर चरण इच्छा जताई थी कि वह भी मेरी मम्मा के साथ टीटी खेलना चाहता है। तब मैंने उसको बताया था कि जिस भी दिन हमारा, एक ही समय में क्लब आने का संयोग बनेगा तब मम्मा के साथ तुम खेल लेना। उसने सहमति जताई थी। मम्मी-पापा गाँव से आने के बाद, ऑफिस के कामों में अति व्यस्त रहे थे। मम्मा ने वीक एंड पर मेरे कहने से खेलने का समय निकाला था। उस दिन जब मैंने उनके साथ खेला तो वे मेरी आशा अनुरूप सप्राइज़्ड रह गईं थीं। उन्होंने मेरी प्रशंसा करने के लिए, अनोखे शब्द प्रयोग किए और कहा - 

जिसके साथ मैं अभी टीटी खेल रही हूँ यह तुम, मेरी बेटी मेधा ही हो ना? 

उनकी प्रशंसा का यह भाव मुझे बहुत भाया था। मैंने उन्हें पहली बार हराने के बाद टेबल के उनके साइड जाकर उनके लिप पर हल्के से किस करते हुए कहा था - मम्मा, थैंक यू सो मच! मेरे नहीं चाहने पर भी आपने मुझे अकेले रहने को विवश किया था। इसका ही यह परिणाम है कि मेरा साहस, आत्मविश्वास बढ़ने के साथ ही मेरे खेल में भी निखार आ गया है। 

मम्मा ने कहा - लाचारी थी, तुम्हें अकेले छोड़ना पड़ा था मगर यह आँकलित खतरा (Calculated risk) था। यह मैंने तुम्हारे पापा की सहमति के बाद लिया था। मेधा मुझे प्रसन्नता है कि तुमने इसमें, हमारी आशानुरूप अनुशासन का परिचय दिया है। तुमने इस अवसर का सदुपयोग किया है। तुम्हारे बिताए इन दिनों के विवरण मैं तुमसे सुनना पसंद करुँगी। 

मैंने कहा - मम्मा जब भी आपको समय हो मैं आपको सब बताऊंगी। 

मम्मा ने कहा - कल रविवार है, कल हम तसल्ली से बात करेंगे। 

मैंने कहा - श्योर मम्मा!

अगले दिन भी पापा ऑफिस के काम में व्यस्त थे। तब मेरे कमरे में मम्मी और मैं बात कर रहे थे। मुझसे मम्मी ने पूछा - 

मेधा, पहले तुम यहाँ अकेले रहने तैयार नहीं थीं। फिर अप्रत्याशित रूप से तुम्हें, अकेले ही तीन सप्ताह का समय बिताना पड़ा। यह समय तुमने मुझे या पापा को कोई परेशानी बताए बिना बिता दिया। यह सब कैसे कर पाईं, तुम?

इस पर मैंने कहा - मम्मा, आपने जाने के पहले ही मेरे लिए समुचित प्रबंध (Proper arrangement) और बातें तय कर दीं थीं। उनमें रहते हुए मुझे ये दिन बिता पाने में कोई कठिनाई नहीं हुई थी। 

तत्पश्चात मैंने उनको, उन दिनों की अपनी दिनचर्या विस्तार से बता दी थी। 

तब मम्मी ने मेरी प्रशंसा करते हुए कहा - मेधा, तुम बहुत अच्छी बेटी हो। मैं स्वयं को एक अच्छी बेटी मानती रही हूँ मगर आज मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता है कि मेरी बेटी तुम, मुझसे भी अच्छी बेटी हो। तुम समझदार, संतोषी तो हो ही तुम्हारे लिए जो अनुशासन तय कर दिए जाते हैं उसमें तुम सरलता से रह लेती हो। 

मैं खुश हुई थी मैंने हँसते हुए कहा - 

मम्मा, आपसे मिलते मार्गदर्शन (Guidance) ने मुझमें हर परिस्थिति में अवसर खोजने की कला विकसित कर दी है। इन दिनों में मैंने जो किया वह तो मैं आपको बता चुकी हूँ। जो एक विशेष बात अभी मैंने नहीं बताई है, वह भी आपसे कहना चाहती हूँ। 

(क्रमशः)


Rate this content
Log in