STORYMIRROR

minni mishra

Others

4  

minni mishra

Others

बाल सखा

बाल सखा

2 mins
275

“फिर तुम, इतनी रात को ? ! देखो, शोर मत मचाओ। सभी सोये हैं..जग जायेंगे | तुम्हें पता है ना, समय के साथ सभी को नाचना पड़ता है | बच्चे सबेरे स्कूल जाते हैं, पति काम पर , और मैं...मूरख, अकेली दिन भर इस कोठी का धान उस कोठी करते रहती हूँ | 

सच कहती हूँ ,बचपन की सुनहरी यादें ,तुम्हारे साथ बिताये पल, मुझे हमेशा सताते रहता है | परंतु , मैं तुम्हारी तरह स्वच्छंद नहीं .. कि जहाँ चाहूँ, उड़ान भर सकूँ ।समय के साथ रिश्तों की अहमियत भी बदल जाती है | अब मैं बाल-बच्चेदार वाली हूँ और तुम, वही कुंवारे के कुंवारे ! तुम मर्द क्या जानो शादी के बाद हम महिलाओं में क्या सब परिवर्तन हो जाता है ! 

ओह ! फिर से शोर ! बस भी करो या..र ! लेकिन, तुम एक नंबर के जिद्दी हो, मुझे देखे बिना जाओगे नहीं ! ठीक है , अभी खिड़की के पास आती हूँ, देखकर तुरंत वापस लौट जाना | 

जैसे ही मैं खिड़की के पास पहुँची, एकाएक बिजली की कौंध से कमरे के अंदर उजाला हो गया ...! सामने अधखुली खिड़की से मुझे उसका वही नटखट चेहरा साफ़-साफ़ दिख गया | वर्षों से सीने में दबा प्यार फिर से उमड़ने लगा । अब मैं खुद को रोक न सकी । दरवाजा खोल बाहर निकलने लगी |

 दरवाजे की चरमराहट से पति जग गये । “मीरा... क्या हुआ? कहाँ जा रही हो ?” चिल्लाते हुए वो मेरे पीछे दरवाजे के निकट आ पहुँचे | सामने टकटकी लगाये उताहुल खड़ा मेरा बाल सखा ‘तूफान' और कमरे के अंदर ... सुरक्षा का ढाल लिए खड़े मेरे पति।

 हठात् दहलीज के बाहर निकले मेरे पैर .... फिर से कमरे में वापस कैद हो गए। मुझे इस तरह देख तूफान एकदम शांत हो गया ।शायद, अब वो समझ गया था कि औरत खोखले ख्वाबों में उड़ान भरने से ज्यादा ...खुद को महफ़ूज रखना अधिक पसंद करती है। ----


Rate this content
Log in