अतीत की परछाईयां

अतीत की परछाईयां

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*अतीत की परछाई*


आज कृष्णा की बहू दो टूक जवाब देकर मायके चली गई , यह कह कर "कि वो ऐसी किचकिच में नहीं रह सकती ..या तो आशू अलग घर लेकर रहे, नहीं तो वो अकेली ही भली"..

कृष्णा हैरान परेशान , बड़बड़ाती अन्दर बाहर कर रही थी ,आशू क्या कहे , वह विश्वास नही कर पा रहा था कि नेहा ऐसा फैसला ले सकती है,वह खुद सकते में था।

सिर्फ कैलाश जी मन्द मन्द मुस्कान के साथ सारे नजारों का आनंद ले रहे थे। कैलाश की मुस्कुराहट कृष्णा का गुस्सा बढ़ा रही थी...।

कृष्णा अन्तत: कैलाश पर बिफर पड़ी "तुम अजीब हो ,चेतना शून्य,भावहीन से, इस सब से तुम्हें फर्क नहीं पड़ता..कि "हमारे बेटा बहू घर छोड़कर अलग रहने जाना चाहते हैं"।

कैलाश ने मुस्कुराते हुये कहा "पड़ता है, पर मैं हमेशा कहता था, कि इतिहास स्वयं को दोहराता है,आज जब वो वक्त आ गया है ,तो स्वागत ही करो उसका ... अतीत की परछाई तो वर्तमान में पड़ती ही है , "ऐसी परिस्थिति जब हमारे वक्त आई थी, तब मेरी मां ने जो कहा था...वही तुम भी दोहराओ ना , कि "जिसमें बच्चों की खुशी"।


 


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