Sanjay Aswal

Others

5.0  

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अस्तित्व की झलक

अस्तित्व की झलक

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बारिश के झुरमुट में 

अपनी खिड़की से झांकते

दूर बादलों से घिरे आसमान में

भीगते पक्षियों को देख कर

मुझे प्रकृति के बदलाव 

व अपने भविष्य के 

अस्तित्व की झलक

बादलों के दर्पण में

साफ साफ दिखाई देती है,

ठहराव कहीं नहीं है 

यहां रिश्तों से बंधे 

धागों की गांठ

कुछ ढीली 

कुछ उलझी सी 

महसूस होती है।

खुद पर 

बदलते दौर में

भागती जिंदगी के पीछे

कहीं दूर जाने का डर

अस्तित्व का बिखराव,

ये भविष्य के लिए 

सजग भी करते हैं

और डराते भी हैं।

सदा परछाईं के पीछे 

भागते भागते

अब खुद परछाई की छाया मात्र

ना बन जाऊं कहीं मैं,

ये बदलाव है

जब धीरे धीरे 

समझ आने लगा है

 खुद को भी समझाने लगा हूं 

कि ये प्रकृति की चाल है ।

नए मंजर आएंगे

पुराने रास्ता देंगे

आने वाले कल को,

वर्तमान का हाथ पकड़ कर

भविष्य के 

सुनहरे अस्तित्व के लिए।


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