अस्तित्व की झलक
अस्तित्व की झलक
बारिश की झुरमुट में अपनी खिड़की से,
दूर बादलों से घिरे आसमान में,
भीगते पक्षियों को देख कर,
मुझे प्रकृति के बदलाव व,
अपने भविष्य के अस्तित्व की झलक,
बादलों के दर्पण में साफ दिखाई देता है,
ठहराव कहीं नहीं है,
और रिश्तों से बंधे धागों की गांठ,
कुछ ढीली सी महसूस होती है।
खुद पर , बदलते दौर में,
भागती जिंदगी के पीछे,
कहीं दूर जाने का डर,
अस्तित्व का बिखराव,
ये भविष्य के लिए सजग भी करते हैं,
और डराते भी हैं।
सदा परछाईं के पीछे भागते भागते,
अब खुद परछाई का अस्तित्व ना बन जाऊं कहीं मैं,
ये बदलाव है,
जब धीरे धीरे अब खुद को समझने लगा हूं ,
और प्रकृति की हर चाल को भी,
नए मंजर आएंगे,पुराने रास्ता देंगे,
आने वाले कल को,
वर्तमान का हाथ पकड़ कर,
भविष्य के सुनहरे अस्तित्व के लिए।
